ट्यूबलाइट फ्लॉप होने के 7 कारण

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सलमान खान की ट्यूबलाइट बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हो गई है और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को इससे करारा झटका लगा है। वितरक और सिनेमाघर मालिक तगड़ी कमाई की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ईद पर दनादन हिट देने वाले सलमान भी ईद पर चूक गए। दरअसल फिल्म ऐसी थी ही नहीं कि किसी को पसंद आती, लिहाजा फिल्म का पिटना निश्चित था। पेश है फिल्म के असफल होने के 7 कारण... 
 
1) फिर वही कहानी 
लगता है कि निर्देशक कबीर खान को बजरंगी भाईजान के बाद अगली फिल्म की जल्दी थी। ईद और सलमान का फायदा वे छोड़ना नहीं चाहते थे। ताबड़तोड़ उन्होंने कहानी चुनी जो 'लिटिल बॉय' पर आधारित थी। बॉय का रोल उन्होंने पचास पार सलमान को थमा दिया। इससे कहानी के इमोशन ही बदल गए। 'ट्यूबलाइट' देख लगता है कि बजरंगी भाईजान को ही बदले हुए अंदाज में देख रहे हैं। उसमें एक छोटी बच्ची, यहां एक छोटा बच्चा। वहां पाकिस्तान तो यहां चीन। यह तो जनता को सरासर बनाने की कोशिश की गई है। 

2) बेदम स्क्रिप्ट 
ट्यूबलाइट लेखन के मामले में अत्यंत ही कमजोर है। स्क्रिप्ट तो लगता है नौसिखिए ने लिखी है। फिल्म में 'यकीन करने' पर इतना ज्यादा जोर दिया गया है कि यकीन शब्द से ही यकीन हट गया। लक्ष्मण (सलमान) खान को जो मिलता है वह बस एक ही बात बोलता है- यकीन रखो, चाहे गांधीजी हो, जादूगर हो या बन्ने चाचा हो। यह बात जरूरत से ज्यादा और जबरदस्ती बिना सिचुएशन के फिल्म में घुसाई गई है जिससे दर्शक झल्ला जाते हैं। स्क्रिप्ट ऐसी लिखी गई है कि इमोशन दर्शकों के दिल को छूते ही नहीं। सब कुछ बनावटी लगता है। लक्ष्मण कभी ट्यूबलाइट बन जाता है तो कभी समझदार। यानी कि लेखकों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक उसका किरदार लिखा। चट्टान हिलाने और भूकंप आने वाले सीन तो हास्यास्पद हैं। फिल्म में मनोरंजन का नामोनिशान नहीं है जबकि आम दर्शक सलमान की फिल्म का टिकट सिर्फ मनोरंजन के लिए खरीदता है। यही कारण है कि सिंगल स्क्रीन दर्शक (जो कि सलमान की ताकत है) ने इस फिल्म को सीधे-सीधे रिजेक्ट कर दिया। 
 
 

3) रोने वाला सलमान 
कमर्शियल फिल्म पसंद करने वाले अपने हीरो को रोते देखना पसंद नहीं करते। वो भी बिना किसी कारण के। 'ट्यूबलाइट' में सलमान को बेहद भोला दिखाया गया है, यहां तक ठीक है। लेकिन फिल्म में वे रोनी सूरत लिए घूमते रहते हैं जो बेहद अजीब लगता है। उनका किरदार ठीक से नहीं लिखा गया। उनका किरदार बनावटी लगता है। यह सलमान की इमेज को बिलकुल भी सूट नहीं होता। मोहम्मद जीशान अय्यूब उन्हें फिल्म में खूब चांटे मारते हैं, भला उनके फैंस यह बात कैसे पसंद करते हैं। सलमान कहीं से भी फिल्म में हीरो नहीं लगते। क्लाइमैक्स में भी सब कुछ अपने आप हो जाता है। पूरी फिल्म देखने के बाद लगता है कि हीरो ने कुछ नहीं किया। सिर्फ यकीन किया और चमत्कार होते गए। लक्ष्मण के किरदार में सलमान मिसफिट लगे। इस किरदार के लिए युवा हीरो की जरूरत थी। 
 

4) नो हीरोइन नो रोमांस 
फिल्म में हीरोइन का रोल भले ही महत्वहीन हो, लेकिन बड़ी और कमर्शियल फिल्म के लिए उसका होना जरूरी होता है। 'ट्यूबलाइट' रिलीज होने के पहले किसी को पता ही नहीं था कि सलमान के अलावा फिल्म में और कौन है। चीनी अभिनेत्री झू झू को बहुत कम लोग जानते हैं। फिल्म में सलमान और उनका रोमांस भी नहीं है। बोझिल होती फिल्म में हीरोइन और रोमांस की कमी दर्शक महसूस करते हैं। 
 
 

5) कबीर ने उड़ाया फ्यूज 
ट्यूबलाइट की असफलता के लिए कबीर खान को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। उनके पास बड़ा बजट था, साधन थे, सलमान खान जैसा हीरो था, बावजूद वे ढंग की फिल्म नहीं बना पाए। कबीर ने कहानी गलत चुनी। उसका भारतीयकरण गलत तरीके से किया। स्क्रिप्ट लिखने वालों में उनका भी नाम है और यहां वे बुरी तरह असफल रहे। निर्देशक के रूप में न वे युद्ध के दृश्य अच्‍छी तरह पेश कर पाए और न इमोशनल सीन। पूरी फिल्म में नकलीपन बुरी तरह हावी रहा जो कि निर्देशक की कमजोरी को दर्शाता है। वे सलमान के किरदार और कहानी को दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाए। ज्यादातर किरदार स्टीरियो टाइप लगे और यह फिल्म कम 'नुक्कड़' नामक टीवी धारावाहिक ज्यादा लगा। कबीर के प्रस्तुतिकरण में कल्पनाशीलता का अभाव नजर आया। रिलीज होने के चंद दिन पहले उन्होंने फिल्म की लंबाई पन्द्रह मिनट कम भी की, इससे पता चलता है कि वे भी फिल्म से संतुष्ट नहीं थे। 
 

6) बढ़ी हुई टिकट दर 
बाहुबली ने सफलता की ऊंचाइयों को क्या छुआ, सभी उसका रिकॉर्ड तोड़ने में जुट गए। आसान बात यह लगी कि टिकट रेट बढ़ा दो। कई सिनेमाघरों ने पचास प्रतिशत टिकट रेट बढ़ा दिए। इससे लोगों ने बजाय पहले दिन फिल्म देखने के रिपोर्ट का इंतजार किया। जैसे ही फिल्म समीक्षकों और आम दर्शकों की नकारात्मक रिपोर्ट आई दर्शकों ने फिल्म देखने का इरादा छोड़ दिया। यही कारण है कि फिल्म जोरदार ओपनिंग नहीं ले पाई और न ही ईद के दिन भीड़ जुटी। यदि टिकट रेट कम होते तो संभव है कि फिल्म का व्यवसाय ज्यादा होता। 

7) संगीत, सेट, अभिनय सब औसत 
फिल्म के रिलीज होने के पहले एक भी गाना हिट नहीं हुआ। न फिल्म देखने के बाद कोई गाना याद रहता है। सारे गाने औसत दर्जे के थे। फिल्म का सेट निहायत ही नकली लगा। अभिनय के मामले में सलमान और सोहेल खान कमजोर रहे। नतीजा ये हुआ कि यकीन पर यकीन दिलाने वाली फिल्म ही यकीन नहीं दिला पाई। 
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