"लगान मेरे लिए हमेशा ही खास रहेगी क्योंकि इस फिल्म से मेरे कई लोगों से अलग तरीके के रिश्ते हैं। इसके पहले भी कई फिल्में की हैं। 3 इडियट्स की अगर मैं बात करूं तो मेरे मैडी से या फिर शरमन से बहुत अलग प्यारा सा रिश्ता है। आज भी है। लेकिन लगान में कुछ हुआ यूं कि हम 6 महीने सारे के सारे लोग एक साथ थे। भुज में हमने एक पूरी बिल्डिंग ले ली थी और उस बिल्डिंग में हम सारे लोग साथ में रहा करते थे। वे मेरे सह कलाकार या मेरे साथी कलाकार से ज्यादा पड़ोसी बन चुके थे। 6 महीने के लिए इन लोगों का साथ होना। बहुत अलग रिश्ते को जन्म दिया था।"
यह कहना है आमिर खान का जिनकी फिल्म लगान 20 साल पूरे कर चुकी है। कुछ चुनिंदा पत्रकारों से बातचीत करते हुए आमिर ने अपने शूट के दौरान और लगान में काम करने के समय हुई कई बातों का जिक्र मीडिया के साथ किया।
फैमिली वाली फीलिंग्स
आमिर आगे बताते हैं "हम बिल्कुल एक फैमिली की तरह साथ में रहा करते थे। हम थे, ब्रिटिश कलाकार थे, गुजरात के थिएटर आर्टिस्ट थे, जो हमारी फिल्म में काम कर रहे थे। भुज के गांव में हम एक साथ जाया करते थे, काम किया करते थे, शूट होता था और एक ही साथ वापस आ जाया करते थे। हम 200-300 लोग थे जो एक बड़े परिवार की तरह रहा करते थे। मुझे आज भी याद है भुज वालों ने मुझसे पूछा कि आप तो यह फिल्म शूट कर रहे हैं लेकिन हमें यह सब देखने को कब मिलेगी क्योंकि उस समय भुज में कोई सिनेमा हॉल भी नहीं हुआ करता था। मैंने उनको कहा कि आप परेशान ना हो, वादा है कि यह फिल्म सबसे पहले आप ही देखेंगे। वे लोग मुझ पर भरोसा भी नहीं करते थे। जबकि मैं बहुत ही संजीदा होकर उसे यह बात कह रहा था।
फिर जब समय हुआ फिल्म रिलीज का, तो उससे 2 या 3 हफ्ते पहले हम मैं, आशुतोष और 15-20 लोग कच्छ पहुंच गए। वहां पर जो भी पास में सिनेमाहॉल था, उसे बुक किया गया और सारे गांव वालों को बुलाया गया। हमारी फिल्म का जो पहला शो है वह मेरे दोस्त या घरवालों ने नहीं बल्कि इन कच्छ के लोगों ने देखा था।
गायत्री मंत्र और लगान की टीम
अब ऐसे में आपको एक और वाकया सुनाता हूं। सुबह-सुबह हम लोग अपनी बिल्डिंग से लोकेशन पर जाने के लिए सुबह चार बजे उठकर और तैयार होकर उस बस में बैठ जाया करते थे। सुबह चार बजे सबकी हालत खराब होती थी। कोई गिरता-पड़ता सोता हुआ उस बस में आकर बैठता था। पहले दिन ये लोग मुझे छोड़ कर चले गए और मैं बस के पीछे भाग रहा था कि बस रोको! खैर! सुबह चार बजे उठकर बस में बैठने का एक रूटीन सा हो गया और शायद हमारे कलाकारों में से एक अखिलेंद्र जी या कोई और था, पक्का तो याद नहीं है लेकिन किसी ने उस समय जो कैसेट प्लेयर हुआ करते थे, बस में, उसमें गायत्री मंत्र लगा दिया। 45 मिनटों में गायत्री मंत्र सुनते हुए जाते थे। सबको लगा कि इस गायत्री मंत्र को सुनने के बाद हमको बहुत अच्छा लगता है और हमारा दिन भी बड़े अच्छे से गुजरता है तो हम जब तक शूट के लिए इस लोकेशन पर जाते रहे तब तक गायत्री मंत्र सुनना हमारी आदत बन गया था।
जैसे ही हम लोग लोकेशन पर पहुंचा करते थे तो एक बड़ा सा हॉल था जिसमें सब बैठकर मेकअप किया करते थे। पॉल ब्लैकथॉर्न जो कि फिल्म में बड़ा दुष्ट नजर आता है और दोगुना लगान वसूलने की बातें करता है,लेकिन असल में 6 फुट 3 इंच का बहुत ही प्यारा इंसान है। सुबह जैसे मेकअप रूम में पहुंचे उसका काम शुरू हो जाता था। वह विनी द पू किताब पढ़ता था और उसमें लिखे डायलॉग जोर-जोर से पढ़ता था। वो समय बड़ा मस्ती वाला था।
रीना का पत्र
इस फिल्म के जरिए मुझे बहुत सारी बातें याद आती हैं, लेकिन एक खास बात हमेशा याद रहेगी और वह रीना से जुड़ी है। रीना उस समय कंप्यूटर साइंस पढ़ रही थी। चूंकि यह फिल्म बहुत बड़ी थी तो मैंने रीना से कहा कि तुम्हारी मदद की जरूरत पड़ेगी। उन्होंने कहा कि कभी प्रोडक्शन किया नहीं है और ना मैं प्रोडक्शन का हिस्सा रही हूं, कैसे करूंगी? मैंने उन्हें समझाया कि मुझे जरूरत है तुम्हारी, तो फिर उन्होंने अपना काम करना शुरू किया। वे सुभाष घई से मिली, वह अशोक ठकेरिया से मिली और उन्होंने अपना होमवर्क करना शुरू किया। मुझे आज भी याद है वह बड़ी ही कड़क निर्माता थीं। वह हम सब को डांट कर रखती थी। मतलब एक ऐसी लड़की जिसका नाता कंप्यूटर साइंस से रहा और फिल्म से दूर तक कहीं कोई नाता नहीं था, वह आमिर खान, आशुतोष गोवारिकर, अशोक मेहता जी, नकुल कामटे इन सभी को एकदम सीधा करके रखती थी। पूछती थी आपने शेड्यूल के हिसाब से से तीन दिन का कहा था, तो पांच दिन क्यों लग रहे हैं? इतना कड़क था उनका काम करने का तरीका कि हमें डर लगने लगा था। जब पूरी फिल्म बन गई तब उन्होंने हमें एक पत्र लिखा। रीना का वह पत्र पढ़कर मुझे रोना आ गया था। बहुत ज्यादा तो मुझे याद नहीं है, लेकिन अगर मुझे कभी वो पत्र मिल गया तो मैं आपसे जरूर शेयर करूंगा। लेकिन जितना भी मुझे याद आता है वह यह था कि रीना ने लिखा था कि वह बड़ी कड़क और बड़ी ही सख्त निर्माता रही हैं। लेकिन फिर भी वह हमें धन्यवाद करती है कि इस फिल्म की शुरुआत से लेकर अंत तक हम साथ में जुड़े रहे और एक बेहतरीन फिल्म बनाने में कामयाब रहे।
अवॉर्ड और मैं
मैं कभी भी पुरस्कारों को बहुत सीरियस नहीं लेता। इसके पीछे एक कारण है। यदि दंगल, लगान और 3 इडियट्स एक ही साल में रिलीज हुई होती तो आप बता पाएंगे कि इनमें से कौन सी ज्यादा अच्छी है? दस लोगों को लगान पसंद आएगी। कुछ को 3 इडियट्स पसंद आएगी। लोगों को एक फलाना कैरेक्टर पसंद आएगा, तो किसी को उस रोल की कोई और बात पसंद आएगी। फिल्मों का पसंद आना न आना बड़ा ही सब्जेक्टिव मैटर है। यह कोई खेल का मैदान तो है नहीं सबसे तेज कौन भागा। किसने फिनिश लाइन सबसे पहले क्रॉस की। इन पुरस्कारों को सीरियसली नहीं लेता हूं चाहे वो ऑस्कर ही क्यों ना हो। कौन सी फिल्म अच्छी है, आप कैसे तय करेंगे। तो बेहतर है ना कि हम एक-एक करके सारी ही फिल्मों को सेलिब्रेट करें। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि मुझे अवार्ड से कोई आपत्ति है। अब लता मंगेशकर जी का दीनानाथ पुरस्कार हो या फिर गोलापुड़ी अवार्ड। दोनों जगह चलकर गया और अवॉर्ड को मैंने अपने हाथों से लिया है। वो इसलिए क्योंकि मुझे लगा कि वहां सराहना की जा रही है। गोलापुड़ी अवार्ड हर एक को नहीं मिलता है। लता मंगेशकर जी भी प्रत्येक को अवॉर्ड नहीं देतीं। वहीं गया हूं जहां लगे मेरे काम की सराहना हो रही है, मुझे भी अवॉर्ड मिलना चाहिए, मैं भी तो हकदार हूं।
मेरे लिए ऑस्कर्स में जाना मार्केटिंग का ही हिस्सा था। देशवासियों ने तो मेरी फिल्म को देख लिया। अब दूसरे जगह पर जाकर विदेशियों को अपनी फिल्म दिखाना है तो यह एक अच्छा तजुर्बा रहा। ऐसे में मेरी फिल्म शॉर्टलिस्ट भी हो गई। फिल्म फॉरेन फिल्म कैटेगरी में पहुंच भी गई। मेरे लिए तो उसी में जीत हो गई।
आज का भुवन
अगर आज कोई लगान बनाना चाहता है तो हम तो बड़े खुश हो जाएंगे। मैं और आशुतोष तो बिना समय गवाएं सारे राइट्स दे देंगे। वैसे तो कई ऐसे अभिनेता हैं जो भुवन का रोल प्ले कर सकते हैं। रणबीर कपूर हैं, रणवीर सिंह हैं, विकी कौशल हैं, और भी कई नाम हैं, लेकिन मैं बड़ा खुश हो जाऊंगा कि चलो कोई तो बना रहा है लगान को। जब मैंने 20 साल पहले यह फिल्म बनाई थी तो बहुत बड़ा बीड़ा उठाया था। बहुत मेहनत की थी। अब देखता हूं। कौन इतना बड़ा बीड़ा उठाना चाहता है? तो आप बनाइए और मैं उस फिल्म का आनंद लेना चाहूंगा।