'हाथी मेरे साथी' के निर्देशक प्रभु सोलोमन ने बताया कैसा था घने जंगलों में फिल्म की शूटिंग करने का अनुभव

रूना आशीष
शनिवार, 20 मार्च 2021 (11:33 IST)
हमारी इंसानी जिंदगी में आसपास कई ऐसे जानवर रहते हैं जो हमारे बहुत काम के होते हैं। हम उन जानवरों का दूध पीते हैं,  उनके होने के फायदे भी होते हैं। लेकिन यहां पर मैं उन जानवरों की बात नहीं कर रहा बल्कि मैं बात कर रहा हूं आज के समय में दुनिया के सबसे बड़े जानवर हाथियों के बारे में।

 
अगर आज के समय में देखा जाए तो देश में जितने भी जंगल है लगभग 50 प्रतिशत इन हाथियों की वजह से हैं। अब आप पूछेंगे कैसे तो यह जो हाथी है, लगभग 70 से 80 किलोमीटर रोज चलते हैं। एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक जाते हैं और इसी तरीके से इकोसिस्टम में जो प्लांटेशन का साइकिल है, उसे आगे बढ़ाने में मदद करते हैं।
 
पालतू जानवर के नाम पर डॉग या कैट हैं इनकी जनसंख्या हमेशा बढ़ेगी। लेकिन इंसान जिस तरीके से जंगल में रहने वाले इन जंगली जानवरों की जिंदगी में घुसता चला जा रहा है उसके बाद पूरे पर्यावरण को नुकसान होने वाला है और मेरी फिल्म हाथी मेरे साथी उसी बारे में है। यह कहना है 'हाथी मेरे साथी' फिल्म के निर्देशक प्रभु सोलोमन का। जिन्होंने हाल ही में वेबदुनिया से खास बातचीत की। 

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प्रभु सोलोमन आगे बताते हैं कि हर जानवर जरूरी है। हर जानवर की अपनी आवश्यकता होती है। पर्यावरण को आगे बनाए रखने में। लेकिन यहां में हर जानवर की बात तो नहीं कर सकता तो अपनी फिल्म के जरिए में हाथियों की बात कर रहा हूं क्योंकि अगर वह नहीं बचेंगे तो फिर यह इंसान के लिए भी खतरा बन जाएगा इंसानों की नस्ल भी खत्म हो सकती है।
 
अपनी इस फिल्म के लिए रेनफॉरेस्ट में शूट किया है। कुछ बातें शेयर करें।
हम लोगों ने इस फिल्म को शूट करने के लिए बहुत ही घने जंगलों में जाकर शूटिंग की है और यह एक्सपीरियंस में बता ही नहीं सकता शब्द कम पड़ेंगे इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। हम लोग सुबह शूट पर जाते थे तो बड़ा डर लगता था कि कहीं एक बड़े ही जहरीले बिच्छू का सामना ना करना पड़ जाए या फिर आसपास से रेंगने वाले कई जीव या रेप्टाइल गुजरते रहते थे।
 
कहीं बड़ी दूर से टाइगर रिजर्व एरिया था तो वहां पर टाइगर की आवाज आती थी। दो-तीन किलोमीटर दूर कहीं जंगली हाथियों के भागने की आवाज आती थी। इसका अपना एक रोमांच भी हुआ करता था और जितने भी एक्टर्स है वह कलाकार कम वह क्रू मेंबर ज्यादा हो गए थे क्योंकि हमें जंगलों के अंदर जाकर शूट करने का काम पड़ा था और वहां पर हमें कोई आरामदायक चीज, आरामदायक जगह तो मिलने नहीं वाली थी तो हम सब लोग मिलकर खुद खाना पकाते थे।
 
आराम करने के लिए किसी पेड़ की छाया में जाते थे या फिर थोड़ी हिम्मत दिखाकर पेड़ के ऊपर जाकर वहीं आराम कर लिया करते थे, कभी कभी रात बिताने का मौका भी पड़ जाता था। लेकिन जितने भी कलाकार थे, हम सबके लिए इस तरीके की शूटिंग जिंदगी में पहली बार की गई शूटिंग थी जिसने हमें बहुत कुछ सिखा दिया। 
 
तो जंगल ने आपको क्या सिखाया?
जंगल ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। हमारी पूरे गुरु और पूरी टीम से पूछो तो शायद एक शब्द एक लाइन में बताना उनके लिए भी मुश्किल हो जाए। अब वहां पर कोई नेटवर्क नहीं था। कोई फोन काम नहीं कर सकता था। फेसबुक तो बहुत दूर की बात है हम फेस टू फेस बात कर रहे थे और इतनी सारी बातें हम कर पाए क्योंकि ध्यान भटकाने के लिए कोई चीज होती ही नहीं। हम सब आपस में एक दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे।
 
आपको ऐडवेंचर डॉक्यूमेंटरीज के प्रेजेंटर बेयर ग्रिल्स उनकी किसी टिप्स ने मदद की।
मैं उनको बचपन से देखता आया हूं। मैंने उनको डिस्कवरी पर या नेशनल ज्योग्राफिक ऐसे चैनल पर देखा है और हमेशा उनको फॉलो किया है। सच कहूं तो मेरी सबसे बड़ी इच्छा अब यही है कि एक दिन वो मेरे कैमरा के सामने आकर कैद हो जाए। जिस दिन मौका मिलेगा, मैं बेयरिंग ग्रिल पर एक फिल्म बना लूंगा। वह मेरे हीरो होंगे।
 
जब आप जंगल में शूट कर रहे थे तो सच बताइए आपके एक्टर्स में क्या कोई तब्दीलियां आई है?
बिल्कुल बहुत ज्यादा तब्दीली आई है। हम लोगों ने वहां पर 100 दिन तक शूट किया है। पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक मेरे एक्ट्रेस बहुत बदल चुके थे। एक मिसाल के तौर पर पुलकित सम्राट की बात करता हूं, जब आया था तो एकदम टिपिकल बॉलीवुड हीरो की तरह पेश आता था, लेकिन 100 दिन बाद उसे देख कर मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि यह वही पुलकित है वह बहुत ज्यादा जमीन से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा था। 
 
मैं सभी लोगों से बातें करता था। कहीं कोई एटीट्यूड नहीं था। उसके बहुत अच्छे स्वरूप को मैंने देखा। उसके अंदर एक बहुत ही अच्छा इंसान छुपा है मुझे उसके दर्शन हुए। हम सारे ही लोग आपस में एक टीम के रूप में हो गए थे। ऐसा लगता ही नहीं था कि हम कोई अलग-अलग लोग हैं। ऐसा लगता था कि हम एक बड़े परिवार का हिस्सा बन गए हैं।
 
आपके साथ दो जाने-माने कलाकार हैं, राना दग्गुबाती तो रहे हैं। बहुत बड़ा नाम है वहीं पर श्रेया पिलगांवकर भी ओटीटी प्लेटफार्म का चमकता सितारा हैं, इन दोनों को एक साथ काम करवाने में क्या आपको कोई मशक्त करना पड़ी।
बिल्कुल उलटा हुआ वह लोग मुझे देखते रहे और वह मेरे साथ हो लिए। होता कुछ यूं है कि मैं जब भी शूट कर रहा होता हूं तो निर्देशक होने के बावजूद भी मैं वह निर्देशक वाली बात और वैसा एटीट्यूड अपने साथ नहीं लेकर चलता हूं और जब इस फिल्म की शूट की बात करूं तो मैं आसपास के जो आदिवासी है, उनसे बात करना था। उनसे जाकर हिल मिल रहा था। उनके साथ खाना खा रहा था। बैठ कर उनकी बातों में भी शरीक हो जाता था। 
 
तो जब मुझे इस तरीके से कलाकार काम करते हुए देखते हैं तो खुद मेरे साथ आ जाते हैं। वह खुद मुझे देखने लग जाते हैं। वैसे भी मैं उन निर्देशकों में से आता हूं जो किसी को भी बदलने में विश्वास नहीं रखते हैं। आप को देखकर सामने वाला खुद बदल जाए तो ज्यादा बेहतर होता है।
 

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