बॉलीवुड अभिनेता अली फजल और ऋचा चड्ढा कई सालों से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं। इस जोड़ी को फैस काफी पसंद करते हैं। हाल ही में ऋचा चड्ढा और अली फजल ने स्पॉटिफाई ऐप पर एक पॉडकास्ट- वायरस 2062 के जरिए नया काम शुरू किया है।
ऋचा की माने तो पॉडकास्ट पर ही मजेदार बात होती है। इसी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए ऋचा ने कहा कि बहुत नई और अनूठी पहल थी मेरे लिए और एक नई तरीके का अनुभव था। क्योंकि इस बार मुझे दिखाई नहीं देना था बल्कि अपनी आवाज के जरिए जो श्रोता है उसके मन में छाप छोड़नी थी यानी मेरी आवाज ऐसी हो जो उसके कानों के भीतर से जाए और उनके दिमाग पर असर छोड़े।
उन्होंने कहा, अमूमन होता यूं है कि हम कार्टून फिल्म देखते हैं। कार्टून फिल्म में आवाज भी दी जाती है। लेकिन मजेदार बात यह होती है कि उसमें आपको एक बहुत ही प्यारे से किसी जानवर की आवाज देनी होती। जबकि यहां पर मेरा सारा दारोमदार अपने आवाज़ पर था। बहुत नए तरीके की बात थी। मेरे लिए लेकिन मजेदार था।
वहीं अली फजल का कहना है कि इस बार जब मैं पॉडकास्ट कर रहा हूं तो मुझे अपने श्रोताओं को अपनी आवाज से इस बात का एहसास दिलाना है कि मैं जो कह रहा हूं वह सही है। उन्हें अपने साथ लेकर उस दुनिया की सैर कराने है और उस दुनिया का वासी बनाना है। जिस दुनिया को मैं और मेरे साथी कलाकार आवाज के जरिए रच रहे हैं।
कपल के तौर पर यह बहुत समय बाद आपने एक साथ कुछ किया है।
अली - मुझे तो बहुत मजा आया। ऋचा के साथ हम लोग काम भी कर रहे थे लेकिन रिश्ते में होने का मतलब यह नहीं है कि हमारी प्रोफेशनल लाइफ में कोई बहुत तब्दीलियां आई हो।
ऋचा - मैंने फुकरे की थी फुकरे टू भी की थी जिसमें अली के साथ काम किया था। लेकिन सिर्फ अली के साथ नहीं बल्कि उसमें और भी कई लोग थे। हां, कभी ऐसा मौका मिले कि मुझे अली के साथ अकेले काम करना पड़े, ऐसी कोई फिल्म मिले तो मुझे बहुत ही अच्छा लगेगा क्योंकि मैं भी चाहती हूं कि ऐसा हो। इसके लिए अगर मुझे कुछ लिखना भी पड़े तो मैं वह भी करने को तैयार हूं। अली के साथ काम करना है और अकेले उसी के साथ काम करना है।
अली - वैसे बहुत कम लोग यह जानते हैं कि ऋचा को लिखना बहुत पसंद है और वह बहुत ही बेहतरीन लेखक हैं। वायरस 2062 दरअसल कहानी है। एक डॉक्टर और उसके मरीज के बीच की। ऋचा इसमें डॉ गायत्री राठौर बनी हैं जो अपने क्लीनिक पर पहुंचती है और उनके सामने एक मरीज बैठा होता है जो कहता है कि वह 2062 साल से आया है और वह भविष्य के बारे में कुछ बताना चाहता है। जाहिर है ऋचा को लगता है कि या तो यह शख्स नशे में है या फिर इसे मानसिक बीमारी है।
वेबदुनिया से बात करते हुए अली ने बताया कि पैंडेमिक का समय किसी के लिए भी अच्छा नहीं था। हम चारों ओर देखते हैं और कई कहानियां सुनते हैं, दुख भी होता है और परेशानी में भी आते हैं। पीड़ा भी होती है। कहीं मैंने यह देखा कि अमीर और अमीर हो गए और गरीब और गरीब हो गए। लेकिन इस पूरे समय में अगर हमें किसी ने बचाए रखा था तो वह कला और संस्कृति थी।
शायद कला और संस्कृति को अगर हम पकड़ कर चलें तो कई सारी बातों को नजरअंदाज करके जिंदगी को अपने तरीके से देख सकते हैं। नई तरीके की कहानियां लोगों को बता सकते हैं और अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन फिर भी मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि टेक्नोलॉजी ने हम सभी को एक साथ जोड़े रखा। हम काम ना होते हुए भी आपस में बातें कर सकते थे, देख सकते थे, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते थे।
रिचा आप एनिमल लवर है आपके घर में भी दो बिल्लियां रहती हैं। पूरे लॉकडाउन के समय में क्या आपको कोई विशेष ध्यान रखना पड़ा अपनी पालतू बिल्लियों का।
मेरे घर में मेरी दो बेटियां रहती हैं और बड़े आराम से रहती हैं। कभी-कभी तो इनके एटीट्यूट को देखकर लगता है कि मैं उनके लिए कमाती और काम करने के लिए जाती हूं। लेकिन पैंडेमिक के दौरान मेरी बिल्लियां बड़ी खुश थी। उनको लगता था कि मम्मी पूरा दिन घर पर ही रहती हैं तो उनका उठना, बैठना भागना, एक दूसरे के साथ खेलना या फिर मेरे आसपास उछल कूद मचाना यानी सुबह से लेकर शाम तक हमारे आस पास हो गया था।
अब अली भी क्योंकि मेरे साथ रहने लगे हैं तो वह भी मेरी बेटियों से दोस्ती कर रहे हैं। लेकिन जहां तक बात है इस दौरान यानी पैंडेमिक के दौरान और लॉकडाउन के दौरान जानवरों का क्या हुआ तो यह तो खुश है लेकिन सड़क पर रहने वाले जो स्ट्रे एनिमल थे उनकी हालत में जरूर सोचने वाली बात हो गई थी। हालांकि मुंबई बहुत ही अच्छी जगह है क्योंकि यहां पर लोग सुबह चार बजे उठकर जाते थे और सड़कों पर बिस्किट और खाने की चीज इन जानवरों को खिला दिया करते थे ताकि भूखे ना रहे।
मैं जहां रहती हूं, वह समुद्र के बिल्कुल पास में है। मैं देख सकती हूं समुद्र तट। मैंने वहां देखा कि जो नारियल पानी बेचने वाले लोग हुआ करते थे बीच पर वह लोग आपस में पैसा इकट्ठा करके खाना लेकर आते थे और बीच पर रहने वाले जितने भी एनिमल्स थे, उन्हें खाना खिलाया करते थे। कितनी खूबसूरत बात है ना।