कैंसर को दी मात- मुमताज

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गुजरे जमाने की मशहूर तारिका मुमताज ने ब्रिटिश व्यवसायी मयूर वाधवानी से विवाह के पश्चात सिने इंडस्ट्री से नाता तोड़ लिया था। शत्रुघ्न सिन्हा के साथ फिल्म 'आँधियाँ' के जरिए उनकी परदे पर वापसी सुखद नहीं रही। बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह शोख-चुलबुली नायिका चंद वर्ष पूर्व कैंसर जैसी महाव्याधि की गिरफ्त से अपनी हिम्मत के बूते बाहर आई। इस त्रासदी के बारे में वे खुद बता रही हैं-

' कैंसर का मतलब हमेशा मौत नहीं होता। वर्ष 2000 में मुझे यह रोग हुआ। मैंने अपने बाएँ वक्ष में एक गठान-सी महसूस की, मैमोग्राफी से पता चला कि यह घातक रूप ले रही थी। ऑपरेशन के जरिए इसे हटाने का निर्णय लिया गया। मैं दिल को दिलासा दे रही थी कि जल्दी पता चल जाने के कारण यह कैंसर की गठान मेरी जान नहीं लेने वाली थी। कैंसर उपचार में शीघ्र लक्षणों की पहचान महत्वपूर्ण होती है। मैंने इस आपदा से निपटने हेतु खुद को तैयार करना शुरू किया। इंटरनेट पर जानकारियाँ एकत्र कीं। मित्रों, चिकित्सकों से विचार-विमर्श का दौर शुरू हुआ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मैं सकारात्मक चिंतन को विकसित करने लगी। निराशा हमेशा शरीर को कमजोर करती है। तनावरहित, खुशगवार मानसिक अवस्था से कैंसर को जीता जा सकता है। मैं खुद से कहती रही कि मुझे हर हाल में जीना है।

परिवार ने इस मुश्किल दौर के बीच मेरा हरसंभव साथ दिया। लंदन में कीमोथैरेपी के दौरान मेरे पति मयूर, बहन मलिका, नताशा और तान्या (पुत्रियाँ) साथ मौजूद थे। शारीरिक यंत्रणा के बावजूद परिवार जनों की हौसला अफजाई से मेरा यकीन गहरा हुआ कि मैं जिंदगीकी जंग जरूर जीतूँगी। रेडिएशन और कीमोथैरेपी के दुष्परिणाम यह हुए कि मेरे पूरे मुँह में छाले हो गए। भोजन हजम नहीं होता था और मुझे उल्टियाँ होने लगती थीं। फिर भी शरीर को पोषण देने हेतु भोजन आवश्यक था। मेरे सिर के बाल गिरने लगे। सारा घर मेरे बालों से भर जाता था। एक दिन मैंने अपने हेयर ड्रेसर को बुलाकर कहा कि वह मेरे सिर के सारे बाल साफ कर दे। उससे मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी- उसने रोते हुए मेरा मुंडन किया और अपने काम के पैसे भी नहीं लिए। मैं उन दिनों सिर पर स्कार्फ बाँधकर घूमती थी।

इस सबके बावजूद मुझे कभी हताशा महसूस नहीं हुई। बरसों से ग्लैमर जगत से दूर होने के कारण मुझे अपनी छवि की चिंता भी नहीं थी। मुझे पता था कि उपचार की अवधि पूरी होने के बाद मेरे बाल फिर उग आएँगे। मैं अपने आप को दिलासा देती रही कि मुझे तनावों से बचना चाहिए। प्रसन्नाचित्त रहकर ही मेरे शरीर और दिमाग को बीमारी से लड़ने की ताकत मिल सकती थी। इस मुश्किल समय में फिल्म जगत के कुछ लोग मुझसे मिलते-जुलते रहे। यश चोपड़ा, पूनम ढिल्लो, तलत अजीज, शत्रुघ्न सिन्हा- इन सबने मेरा हौसला बढ़ाया। इंटरनेट पर मेरे प्रशंसक भी दुआएँ भेजते रहे। मैं ईश्वर की शुक्रगुजार हूँ कि उसकी और सगे-संबंधियों की अनुकंपा के बूते पर मैं इस संकट से उबर पाई। आज मैं फख्र से कह सकती हूँ कि मैंने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी पर विजय पाई है।

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