इनके बिना कहानी पूरी नहीं होती...

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फिल्म इंडस्ट्री में कुछ चेहरे ऐसे भी आते हैं, जो सामान्य या अतिसामान्य होते हुए भी हमेशा के लिए दर्शकों के दिलों में बस जाते हैं। ये कलाकार भले ही फिल्म में लीड रोल न भी पाएँ, लेकिन इनके लिए खासतौर पर या तो रोल लिखे जाते हैं या फिर ये अपने अंदाज से उस रोल को खास बना देते हैं। यह भी सच है कि ऐसे अधिकांश कलाकारों को समानांतर फिल्मों में ही ज्यादा काम मिला करता था, लेकिन अब जबकि समानांतर फिल्मों की तरह ही लीक से हटकर फिल्में भी धड़ल्ले से बन रही हैं, तब ऐसे कलाकारों की बखत और भी ज्यादा हो गई है।

लाइफ इन मेट्रो में कोंकणा सेन शर्मा के पीछे पड़े, फूली आँखों और खुरदुरे चेहरे वाले इरफान खान को कोई नहीं भुला सकता। यह कहें कि इस पूरी फिल्म की ढेर सारी कहानियों में सबसे ज्यादा ध्यान इरफान और कोंकणा की ही कहानी आकर्षित करती है तो अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए। अपनी स्वाभाविक अभिनय क्षमता के चलते इरफान आज देश-विदेश दोनों जगह निर्देशकों की पसंद बने हुए हैं। ठीक इसी तरह "आजा नच ले" में विद्रोही तेवर दिखाने वाली दिव्या दत्ता हैं। शक्ल-सूरत और कद-काठी से बेहद सामान्य होते हुए भी इन लोगों में ऐसी कोई कशिश है कि वे पर्दे पर अपने कैरेक्टर के साथ अमिट से हो जाते हैं और लोग इनके कैरेक्टर को भुला नहीं पाते।

पिछले दिनों आई एक और फिल्म "ये साली जिंदगी" में दिखा दुबले-पतले अरुणोदय सिंह को भी आप इसी श्रेणी में रख सकते हैं। अरुणोदय हालाँकि बहुत ज्यादा फिल्मों में नहीं आए हैं, लेकिन शुरुआत से ही उन्होंने अपनी उपस्थिति से धमाका करके रख दिया है। इसी तरह गुलाल, नॉट अ लव स्टोरी जैसी फिल्मों में सशक्त भूमिका निभा चुके दीपक डोब्रियाल का नाम भी इसी श्रेणी में लिया जा सकता है। चेहरे-मोहरे से बेहद साधारण होने के बावजूद दीपक की असाधारण अभिनय क्षमता ने उन्हें निर्देशकों का प्रिय बना रखा है। इस तरह के अधिकांश नाम असल में थिएटर से निकले लोग हुआ करते रहे हैं, जो अब बड़े पैमाने पर कमर्शियल सिनेमा की भी पसंद बन गए हैं, वहीं नेहा धूपिया, अरशद वारसी तथा श्रेयस तलपड़े जैसे लोग भी हैं, जो बजाय लीड रोल के साइड रोल में ही ज्यादा चमक पाए।

अरशद के बिना तो मुन्नाभाई की कल्पना ही बेमानी लगती है, वहीं दो-तीन हीरो की फिल्म में भी श्रेयस जैसा इफेक्ट पैदा करते हैं, वो उन्हें भीड़ में भी सबसे अलग ला खड़ा करता है। जावेद जाफरी भी इसी तरह के कलाकार हैं। अनुभव और टैलेंट के मामले में ये किसी अभिनेता से कम नहीं हैं, लेकिन उन्हें लीड रोल की जगह हमेशा सेकंड या थर्ड लीड से ही संतोष करना पड़ा और उसमें वे पूरी तरह सफल भी हुए। "सिंग इज़ किंग" में सोनू सूद की ढेर सारी पलटन में सबसे ज्यादा ध्यान जावेद ही आकर्षित करते हैं, वो भी बेहद छोटे से रोल में। वैसे इस श्रेणी में किरन खेर को भी रखा जा सकता है। वे भी हीरो-हीरोइन की चमक के बीच अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहती हैं।

पिछले कुछ अर्से में बड़े पर्दे पर ऐसे कलाकारों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है और निर्देशकों ने उनकी प्रतिभा को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, बल्कि इनमें से कुछ नाम तो अब कई निर्देशकों की फिल्मों का अटूट हिस्सा-सा बन गए हैं। रोहित शेट्टी की फिल्मों में काम करने वाले संजय मिश्रा, मुकेश तिवारी, मुरली शर्मा तथा अश्विनी कलसेकर तथा प्रकाश झा की फिल्मों में काम करने वाले अखिलेंद्र मिश्र, यशपाल शर्मा, चेतन पंडित आदि। इनके अलावा राजपाल यादव, परेश रावल, रणवीर शौरी, मनोज जोशी तथा शरत सक्सेना जैसे नाम भी इस सूची का हिस्सा हैं। ये वो लोग हैं, जिन्हें लेकर निर्देशक उस रोल के बारे में निश्चिंत हो जाता है और ये छोटा होते हुए भी उस रोल को यादगार बना डालते हैं। इन सभी नामों की खासियत है, अभिनय का इनका अपना अंदाज और शानदार अभिनय क्षमता, जिसके चलते ये छोटे रोल में भी हीरो-हीरोइन से उन्नीस नहीं पड़ते।

असल में ये सारे चेहरे उन चेहरों में से हैं, जिनके लिए निर्देशक कहानी के किसी स्ट्राँग कैरेक्टर को चुन कर रखता है। उसे यकीन होता है कि फलाँ भूमिका में यही व्यक्ति फिट बैठेगा। इसलिए ही जरूरत पड़े तो इन लोगों के लिए विशेष रोल लिखे भी जाते हैं और फिल्म खत्म होने के बावजूद हीरो-हीरोइन के साथ-साथ ये चेहरे भी जेहन में गहरे छाए रहते हैं।

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