लौट आए पुरानी स्टाइल के पोस्टर!

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एक समय सारे फिल्मी पोस्टर हाथ से ही बनाए जाते थे। यूँ तो हॉलीवुड में भी आरंभिक दौर में हाथ से पेंट किए गए पोस्टर ही फिल्म के प्रचार में काम आते थे लेकिन फिर जल्द ही वहाँ फोटोग्राफ आधारित पोस्टर बनने शुरू हो गए थे। फिर कम्प्यूटर का चलन आने से पोस्टरों की शक्ल-सूरत और उन्हें बनाने का तरीका सभी बदल गया।

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फिल्म से पहले फिल्म के पोस्टर आते हैं और टीवी के 'प्रोमो' तथा सिनेमाघरों में दिखाए जाने वाले ट्रेलर के जमाने से भी पहले पोस्टर ही किसी आने वाली फिल्म की पहली झलक दिखाते थे। अब हालाँकि फिल्म के प्रचार में पोस्टरों का महत्व पहले के मुकाबले काफी कम हो गया है, फिर भी इनका अस्तित्व कायम है। बल्कि इन दिनों फिल्मी पोस्टरों के अंदाज में एक बदलाव भी देखा जा रहा है।

हाल में आई 'रॉकस्टार' तथा अगले साल आने वाली 'राउडी राठौड़' के पोस्टर पुराने जमाने के पोस्टरों की याद दिलाते हैं, जो अस्सी के दशक के बाद गायब हो गए थे। ये हाथ से बने पोस्टरों की परंपरा के लौटने की सूचना दे रहे हैं।

एक समय सारे फिल्मी पोस्टर हाथ से ही बनाए जाते थे। यूँ तो हॉलीवुड में भी आरंभिक दौर में हाथ से पेंट किए गए पोस्टर ही फिल्म के प्रचार में काम आते थे लेकिन फिर जल्द ही वहाँ फोटोग्राफ आधारित पोस्टर बनने शुरू हो गए थे। फिर कम्प्यूटर का चलन आने से पोस्टरों की शक्ल-सूरत और उन्हें बनाने का तरीका सभी बदल गया।

इधर भारत में अस्सी के दशक तक हैंड पेंटेड पोस्टरों का ही चलन रहा। इन पोस्टरों में कलाकार की कल्पनाशीलता फिल्म की थीम को चार चाँद लगाती थी। हॉलीवुड के शुरुआती दौर में फिल्म स्टूडियो किसी डिजाइन को फाइनल करता था और फिर उसी डिजाइन पर हाथ से बनाए गए पोस्टर सभी दूर इस्तेमाल में लाए जाते थे।

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इसके विपरीत भारत में अलग-अलग स्थानों पर स्थानीय कलाकार किसी फिल्म के पोस्टर बनाते थे। यही कारण है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में जाने पर एक ही फिल्म के अलग तरह के पोस्टर भी देखने को मिलते थे। कई बड़े कलाकारों ने फिल्म पोस्टर पेंट किए हैं, जिनमें मकबूल फिदा हुसैन भी शामिल हैं।

आज याद करें तो वे पुराने पोस्टर कुछ नकली, कुछ भड़कीले लगते हैं लेकिन सच कहें तो आधुनिक मशीनी परफेक्शन के विपरीत इन हाथ से बने पोस्टरों के खुरदुरेपन का अपना आकर्षण था। ये सिर्फ फिल्म का कोई सीन दर्शाने के बजाए फिल्म का मूड प्रतिबिंबित करते थे। फिल्में भले ही फॉर्मूले में बँधी हों मगर उनके पोस्टरों में रचनात्मकता झलकती थी।

जब डिजिटल प्रिंट का दौर शुरू हुआ तो देखते ही देखते सारे पोस्टर इसी विधि से बनने लगे। हाथ से पोस्टर बनाने वालों का रोजगार छिन गया। कुछ साल हुए कुछ डिजाइनरों ने पुरानी यादों को भुनाने के लिए थैलों, पर्दों, सोफा कवरों आदि पर पुराने फिल्मी पोस्टरों की छपाई करना शुरू किया। अब ऐसा लगता है कि निर्माताओं का रुझान पुनः हाथ से बने पोस्टरों की ओर हो रहा है।

हाल ही में जब 'राउडी राठौड़' का पहला पोस्टर डिजाइन करने की बात चली, तो तय हुआ कि यह सत्तर के दशक की याद दिलाने वाला होना चाहिए। अतः फिल्म के हीरो अक्षय कुमार की रफ-टफ छवि को उभारने वाले पोज के साथ चटख रंगों का प्रयोग करते हुए 'फौलाद की औलाद' और 'इलाका तेरा, धमाका मेरा' जैसी टैगलाइन पोस्टरों में डाली गई।

' रॉकस्टार' के पोस्टरों में फिल्म का नाम तो आधुनिक अंदाज में दिया गया लेकिन रणबीर कपूर व नरगिस फाखरी की छवि पुराने हैंड पेंटेड पोस्टरों वाले अंदाज में है। लगता है कि जिस तरह सत्तर-अस्सी के दशकों की फिल्मों के रीमेक बनाने की होड़ लगी है और उस जमाने का फैशन भी लौट रहा है, उसी तरह फिल्मी पोस्टरों में भी वह दौर लौटने की तैयारी में है।

- विश्वास गोयल


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