नंदिता दास ने सेंसर बोर्ड के सिद्धांतों को बताया खतरनाक

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फिल्म 'पद्मावत' को लेकर जितने विवाद पिछले कुछ दिनों में हुए हैं उससे पता चलता है कि खुद सेंसर बोर्ड ही चीज़ों को समझ नहीं पा रहा है। पूर्व सेंसर बोर्ड अध्यक्ष पहलाज निहलानी पर भी फिल्मों को सर्टिफिकेट ना देने के आरोप लगाए गए, लेकिन नए अध्यक्ष प्रसून जोशी के आने के बावजूद ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ है। इस बारे में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों ने सेंसर बोर्ड के खिलाफ आवाज़ उठाई है। अब इस लिस्ट में एक्ट्रेस-प्रोड्यूसर नंदिता दास का भी नाम जुड़ गया है। 
 
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में नंदिता दास ने अपनी आने वाली फिल्म और सेंसर बोर्ड के बारे में बातें की। नंदिता दास का कहना है कि सेंसर बोर्ड के फिल्मों को सर्टिफकेट देने के नियमों में खामी हैं क्योंकि कुछ मुट्ठीभर लोग यह तय नहीं कर सकते कि पूरा देश क्या देखना चाहता है। यह खतरनाक है कि संस्कृति के कुछ स्व-घोषित संरक्षक, लोगों को यह बताते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। कला को आगे बढ़ने के लिए आजादी की जरूरत होती है। सेंसर बोर्ड के सिद्धांत गलत हैं। 
 
अपनी फिल्म 'मंटो' के बारे में उन्होंने बताया कि मैंने फिल्म का विषय मंटो का चुनाव उनके धर्म और राष्ट्रीयता की वजह से नहीं किया बल्कि लेखक किस चीज के लिए आवाज़ उठाते थे, इस वजह से किया है। मंटो खुद को राष्ट्रीयता और धर्म की पहचान से ऊपर का इंसान मानते थे। वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े हीरो थे। यह फिल्म मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो  की बायोपिक है। इसमें मंटो के बारे में कुछ ऐसी बातें होंगी जो कुछ ने शायद सुनी होंगी और कुछ ने नहीं। 
 
इस फिल्म में मंटो का किरदार नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी निभा रहे हैं। मंटो के किरदार के लिए नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के चुनने के बारे में नंदिता ने कहा कि मैं एक ऐसा अभिनेता चाहती थी जो एक तरफ तो काफी अक्खड़ और स्वार्थी दिख सके, वहीं दूसरी तरफ संवेदनशील हो। जो आंखों के ज़रिये कई तरह के भावों को व्यक्त कर सकें। नंदिता, मंटो और नवाज़ुद्दीन के ग़ुस्से, हास्य और अहं भाव में समानता देखती हैं। 

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