साँवरिया : भंसाली की सबसे कमजोर फिल्म

समय ताम्रकर
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निर्माता-निर्देशक : संजय लीला भंसाली
संगीत : मोंटी शर्मा
कलाकार : रणबीर कपूर, सोनम कपूर, सलमान खान, रानी मुखर्जी, ज़ोहरा सहगल
रेटिंग : 2/5

संजय लीला भंसाली की ‘साँवरिया’ एक प्रेम कहानी है। इस प्रेम कहानी में गुलाबो (रानी मुखर्जी) रणबीरराज (रणबीर कपूर) को चाहती है। राज, सकीना (सोनम कपूर) को चाहता है और सकीना ईमान (सलमान खान) को। सबका प्रेम सच्चा है।

कहानी के मुख्य किरदार हैं रणबीर और सकीना। सपनों के एक शहर में रणबीर एक रात पुल पर सकीना को देख उस पर फिदा हो जाता है। दोनों के बीच दोस्ती हो जाती है। सकीना राज को सिर्फ अपना दोस्त मानती है, लेकिन वह सकीना के लिए जान भी देने को तैयार है।

राज को मुलाकात की दूसरी रात पता चलता है कि सकीना ईमान नामक एक शख्स को चाहती है जो सकीना को छोड़कर कहीं चला गया है और एक वर्ष बाद लौटने वाला है। वह दिन आने ही वाला है। राज, सकीना को यकीन दिलवाने की पुरजोर कोशिश करता है कि ईमान नहीं आने वाला, लेकिन ईमान वापस आता है और सकीना को लेकर जाता है।

कहानी तीन दिन और तीन रात की है। सवा दो घंटे की छोटी अवधि के बावजूद फिल्म बेहद लंबी लगती है, क्योंकि फिल्म में बोरियत से भरे कई दृश्य हैं। कहने को तो फिल्म एक प्रेम कहानी है, लेकिन रोमांस फिल्म से गायब है।

सकीना ईमान को चाहती है जो फिल्म में से गायब है। राज सकीना को चाहता है, लेकिन सकीना को उससे प्यार नहीं है और पूरी फिल्म इनके ही इर्दगिर्द घूमती है। कहानी कुछ इस तरह की है कि दर्शकों की सहानुभूति न सकीना के साथ हो पाती है और न ही राज के साथ। सिर्फ संवादों के जरिये कहानी को आगे बढ़ाया गया है, लेकिन संवादों में भी उतना दम नहीं है।

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फिल्म की पटकथा में कई खामियाँ हैं। राज को बेहद अच्छा इनसान बताया गया है। जब उसे पता चल जाता है कि सकीना उसे नहीं चाहती तब भी वह उसके पीछे क्यों पड़ा रहता है? सकीना क्यों राज से पीछा नहीं छुड़ाती?

शहर की सुनसान गलियों में रातभर सकीना और राज घूमते हैं, गाते हैं क्या उन्हें कोई नहीं देखता? जबकि सकीना अपने घरवालों से बेहद डरती है। राज के बारे में भी कुछ नहीं बताया गया है। वह कौन है? कहाँ से आया है? उसका क्या मकसद है?

यहीं हाल ईमान के किरदार का भी है। वह सकीना को छोड़कर कहाँ गया, क्यों गया, कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया। ईमान और सकीना के बीच बहुत कम दृश्य रखे गए हैं। दर्शकों को समझ में नहीं आता कि कब दोनों एक-दूसरे के प्रति इतने आकर्षित हो गए।

सलमान और सोनम की जोड़ी किसी भी दृष्टि से नहीं जमती। दोनों के बीच की उम्र का फासला साफ नजर आता है।

निर्देशक संजय लीला भंसाली शायद अपने काम के प्रति आत्ममुग्ध हो गए या फिर अतिआत्मविश्वास के शिकार। उन्हें लगा कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं वह दर्शकों को पसंद आएगा। फिल्म के सेट और भव्यता कहानी पर हावी हो गए। एक जैसे सेट और लाइट व शेड के कारण फिल्म मोनोटोनस लगती है।

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रणबीर कपूर का अभिनय पहली फिल्म के हिसाब से ठीक है। सोनम कपूर कुछ एंगल से सुंदर लगती हैं और कुछ से साधारण। रणबीर के मुकाबले में उनका अभिनय कमजोर है। सलमान खान बिलकुल नहीं जमे। उनकी छोटी-सी भूमिका देख उनके प्रशंसक निराश होंगे। रानी मुखर्जी का अभिनय बेहतरीन है, लेकिन उनकी भूमिका को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया गया है। ज़ोहरा सहगल प्रभावी हैं।

मोंटी शर्मा द्वारा संगीतबद्ध किए गीतों में ‘साँवरिया’ और ‘जब से तेरे नैना’ अच्छे बन पड़े हैं। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है। कुल मिलाकर ‘साँवरिया’ संजय लीला भंसाली की सबसे कमजोर फिल्म है। न इसमें क्लास वाली कोई बात है और न ही मास के लिए कुछ है।
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