Fighter review: रितिक रोशन- दीपिका पादुकोण के ग्लैमर और कमजोर स्क्रिप्ट के बीच फाइटर

फाइटर में बड़े स्टाऱ बड़ा बजट, ग्लैमरस प्रेजेंटेशन, एरियल एक्शन तो है, लेकिन ये कमजोर नींव (स्क्रिप्ट) पर टिके हुए हैं

समय ताम्रकर
गुरुवार, 25 जनवरी 2024 (13:56 IST)
Fighter review: सिद्धार्थ आनंद हाल ही के सफलतम फिल्म निर्देशक हैं जिन्होंने बैक टू बैक बैंग-बैंग, वॉर और पठान जैसी हिट फिल्में दी हैं। लार्जर दैन लाइफ फिल्म बनाना उन्हें पसंद है जिसमें वे हीरो-हीरोइनों को ग्लैमरस तरीके से पेश करते हैं। उनका प्रस्तुतिकरण इतना चकाचौंध भरा होता है कि उसके पीछे फिल्म की कमजोरियों को वे बड़ी आसानी से छुपा लेते हैं। उनकी ताजा फिल्म 'फाइटर' भी इसी लाइन पर चलती है। 
 
'फाइटर' में थोड़ा बदलाव ये नजर आता है कि इस बार फिल्म में सिद्धार्थ ने सच्ची घटनाओं को भी जोड़ा है। पुलवामा में भारतीय जवानों पर अटैक हुआ था जिसका जवाब एयर स्ट्राइक के जरिये भारत की ओर से दिया गया । इस घटना के इर्दगिर्द 'फाइटर' का प्लॉट बुना गया है और हकीकत के साथ कल्पना को जोड़ा गया है। 
 
एरियल एक्शन फिल्म की बात होती है तो टॉम क्रूज की 'टॉप गन' का उदाहरण सामने आता ही है और इस फिल्म से कई फिल्ममेकर इंस्पायर्ड हुए हैं, संभव है कि सिद्धार्थ आनंद को भी 'फाइटर' बनाने की प्रेरणा और आइडिया यही से मिला हो। 
 
एरियल एक्शन फिल्म बनाना आसान नहीं है। बड़े बजट के साथ कई तकनीशियनों और एक्सपर्ट्स की भी जरूरत पड़ती है और सबसे बड़ी बात ये कि दृश्य स्क्रीन पर सजीव लगने चाहिए क्योंकि दर्शक फौरन खामियां पकड़ लेते हैं। 'फाइटर' ने अपने इस मजबूत पाइंट के साथ कोई समझौता नहीं किया है और 'एरियल एक्शन सीन' इसका सबसे बड़ा प्लस पाइंट है। ये दृश्य बिग स्क्रीन और थ्री डी इफेक्ट्स के साथ दर्शकों को अच्छा अनुभव देते हैं। 

 
'फाइटर' की शुरुआत सिद्धार्थ आनंद स्टाइलिश तरीके से करते हैं। ना सिर्फ हीरो पैटी (रितिक रोशन) बल्कि हीरोइन मिनी (दीपिका पादुकोण) की एंट्री पर भी उन्होंने खासी मेहनत की है। 
 
एयरफोर्स, एयरक्रॉफ्ट, प्रोटोकॉल्स से दर्शकों को थोड़ा परिचित कराया है। हालांकि ये दृश्य बहुत गहराई लिए हुए नहीं है। इसके बाद पुलवामा वाली घटना और भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक को दिखाने के बाद एक और मिशन को दिखाया है। 
 
इस मिशन को फिल्म में बार-बार जताया गया है कि यह बहुत बड़ा है, लेकिन वैसा प्रभाव नजर नहीं आता। इसलिए पैटी-मिनी और उनके साथियों का यह कारनामा दमदार नहीं लगता। 
 
फिल्म फर्स्ट हाफ में लड़खड़ाती है, खासतौर पर तब जब हल्के-फुल्के दृश्य आते हैं क्योंकि एंटरटेनमेंट को ध्यान में रख कर ये पेश किए गए हैं, लेकिन दर्शकों का खास मनोरंजन नहीं होता। 
 
फिल्म का हीरो पैटी उदास है क्योंकि अतीत में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जिससे वह उबर नहीं पा रहा है। हीरो की उदासी को खासा लंबा खींचा गया है जिसका पूरी फिल्म पर होता है। होना ये था कि इस उदासी से हीरो को जल्दी निकालना था। 
 
सेकंड हाफ में फिल्म तेज स्पीड पकड़ती है और लंबे क्लाइमैक्स में हाई ऑक्टेन एक्शन, दुश्मन से लड़ाई, एरियल स्टंट, देश प्रेम की भावना का तड़का लगाया गया है। इसके जरिये फिल्म का स्तर ऊंचा उठाने की कोशिश की गई है, लेकिन कमजोर लेखन के कारण ऐसा नहीं हो पाया। 


 
पैटी और मिनी का रोमांटिक ट्रेक थोड़ा हट कर है। पैटी की तरफ मिनी आकर्षित है, लेकिन पैटी में थोड़ी हिचकिचाहट है। इसको लेकर दोनों के बीच बातचीत वाले कुछ सीन अच्छे हैं तो कुछ प्लेन हैं। अंत में पैटी का दिल क्यों बदल जाता है, इसका कोई जवाब नहीं है। 
 
मिनी के एयर फोर्स में शामिल होने से उसके मां-बाप खुश नहीं है। ये सीक्वेंस फिल्म में जबरदस्ती जोड़ा गया है और 'लड़कियां लड़कों से कम नहीं है' वाली बात को हाइलाइट करने की कोशिश की गई है जो असर नहीं छोड़ती है। 
 
पैटी और उसके सीनियर रॉकी (अनिल कपूर) की टकराहट को फिल्म में अच्छे से उभारा गया है। पैटी बेस्ट फाइटर पॉयलट है, इसे रॉकी प्लस पाइंट मानता है और माइनस पाइंट भी। क्यों? इसका जवाब फिल्म अच्छे से सामने रखती है।  
 
विलेन के रूप में अपरिचित चेहरा (रिषभ साहनी) सामने आता है जो फिल्म की कमजोर कड़ी है। दमदार या स्टार एक्टर इस रोल में होता तो यह फिल्म के लिए बेहतर होता क्योंकि लार्जर दैन लाइफ फिल्म में विलेन भी 'तगड़ा' होना चाहिए। दमदार विलेन की कमी फिल्म में महसूस होती है। 
 
देश प्रेम वाल सीन थोपे हुए लगते हैं। उनमें गरमाहट नहीं है। इसलिए दर्शकों के अंदर भावनाओं का ज्वार नहीं उमड़ता। 
 
स्क्रीनप्ले की कमजोरी फिल्म में रह रह कर उभरती रहती है। लेखन की कमी के कारण 'फाइटर' अच्छी और बुरी फिल्म के बीच हिचकोले खाती रहती है। 
 
निर्देशक सिद्धार्थ आनंद चमकीले प्रस्तुतिकरण से दर्शकों को लगातार चौंकाते रहते हैं। यहां भी उन्होंने यही कोशिश की है, लेकिन बात अधपकी सी लगती है। 
 
सिद्धार्थ के पास बॉलीवुड का हैंडसम हीरो और ब्यूटीफुल हीरोइन थी और उनके ग्लैमर का जमकर उपयोग किया गया है। दोनों को स्टाइलिश तरीके से लगातार दिखाया गया है। रितिक और दीपिका के स्क्रीन प्रजेंस के जरिये सिद्धार्थ दर्शकों को जकड़ने की कोशिश करते हैं।
 
फिल्म के तीनों लीड एक्टर्स रितिक रोशन, दीपिका पादुकोण और अनिल कपूर को पर्याप्त फुटेज मिले हैं। रितिक रोशन का अभिनय औसत से ऊपर है। वे अपने रोल को ज्यादा गहराई नहीं दे पाए। दीपिका पादुकोण की एक्टिंग बढ़िया है। छोटे-छोटे दृश्यों में वे बड़ा असर छोड़ती हैं। अनिल कपूर एक बार फिर फॉर्म में नजर आए। करण सिंह ग्रोवर, संजीदा शेख, अक्षय ओबेरॉय ने अपना काम ठीक किया। छोटे रोल में आशुतोष राणा असर छोड़ते हैं लेकिन शरीब हाशमी को कुछ करने का मौका नहीं मिला। विलेन के रूप में ऋषभ साहनी निराश करते हैं। ना उनका लुक अच्छा है और न ही उनकी एक्टिंग।  
 
फिल्म की टेक्नीकल टीम का काम बहुत ऊंचे स्तर का है। सारे इफेक्ट्स प्रभाव छोड़ते हैं। सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग जबरदस्त है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की थीम को सिंक करता है। कुछ संवाद सुनने लायक हैं। फिल्म के दो गाने हिट है। 'इश्क जैसा कुछ' और 'शेर खुल गए' उम्दा कोरियोग्राफी के कारण बार-बार देखे जा सकते हैं।
 
'फाइटर' में बड़े स्टाऱ बड़ा बजट, ग्लैमरस प्रेजेंटेशन, एरियल एक्शन तो है, लेकिन ये कमजोर नींव (स्क्रिप्ट) पर टिके हुए हैं। 

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