मिस टनकपुर हाजिर हो : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर
भारत में ऐसी कई हैरतअंगेज घटनाएं घटती हैं जिन पर फिल्म बनाने की प्रेरणा फिल्मकारों को मिलती है। भैंस से दुष्कर्म वाले मामले को लेकर विनोद कापड़ी ने 'मिस टनकपुर हाजिर हो' नामक फिल्म बनाई है। टनकपुर हरियाणा का एक गांव है जहां पर एक प्रतियोगिता भैंस विजयी होकर मिस टनकपुर बनती है। इस भैंस से बलात्कार के मामले में एक युवक को गांव के प्रधान ने फंसाया है क्योंकि इस उम्रदराज प्रधान की युवा पत्नी से उस युवक के नाजायज संबंध थे। 
 
उम्रदराज प्रधान पति के रूप में अपने कुछ कर्तव्य निभाने में नाकाम रहता है और इसका सारा गुस्सा युवा पर निकालता है। इस कहानी की पृष्ठभूमि में भ्रष्ट पुलिस और नेता, गांव में होने वाली राजनीति, वकीलों का लालच, अंधविश्वास को दिखाया गया है।
फिल्म का विषय ऐसा है जिस पर हार्ड-हिटिंग या व्यंग्यात्मक फिल्म बनाने की भरपूर संभावना थी, लेकिन लेखक और निर्देशक विनोद कापड़ी ने बीच का रास्ता चुना। उनकी फिल्म न तो व्यंग्य की तरह गुदगुदा कर सोचने पर मजबूर करती है और न ही ऐसा प्रहार करती है कि दर्शक हिल जाए। 
 
फिल्म को उन्होंने हल्का-फुल्का रखा है और कभी-कभी अश्लीलता की लाइन भी पार कर गए। इंटरवल तक तो उन्होंने कहानी को आगे बढ़ाए बिना कुछ सुने-सुनाए चुटकलों के जरिये फिल्म को खींच लिया है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म हांफने लगती है जिसे किसी तरह अंत तक खींचा गया है। 
 
फिल्म में कुछ बातें तारीफ के लायक भी हैं। कुछ प्रसंग ऐसे हैं जो हंसने को मजबूर करते हैं। जैसे तांत्रिक संजय मिश्रा द्वारा प्रधान को अजीब उपाय बताना, पुलिस थाने के कुछ सीन, भैंस की पहचान बताने के लिए ओम पुरी का अपने अफसर को तालाब में उतारना। ये सीन हंसाते जरूर हैं, लेकिन इनका समग्र प्रभाव फिल्म में नहीं आता है। कुछ संवाद अच्छे हैं। पृष्ठभूमि में कुछ लिखी लाइनें भी अच्छी हैं, जैसे प्रधान के घर के बाहर लिखा है 'घंटी एक ही बार बजाएं, खोलने वाला चल कर आता है, उड़ कर नहीं। ग्रामीण जीवन की झलक को भी बारीकी से पेश किया है। 

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अच्छे अभिनेता हो तो वे कमजोर स्क्रिप्ट के बावजूद फिल्म को थाम लेते हैं। 'मिस टनकपुर हाजिर हो' इसका उदाहरण है। अन्नू कपूर, ओम पुरी, रवि किशन, संजय मिश्रा बेहतरीन फॉर्म में नजर आएं। हृषिता भट्ट भी प्रभावित करती हैं। राहुल बग्गा के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। 
 
'मिस टनकपुर हाजिर हो' बुरी फिल्म नहीं है। इसे देखा जा सकता है। अफसोस इस बात का है कि कहानी में जो भरपूर संभावनाएं थीं उसे पूरी तरह भुनाया नहीं गया। 
 
बैनर : क्रॉसवर्ड फिल्म्स प्रोडक्शन, फॉक्स स्टार स्टुडियोज़
निर्माता : विनय तिवारी
निर्देशक : विनोद कापड़ी
संगीत : पलक मुछाल, सुष्मित सेन
कलाकार : अन्नू कपूर, हृषिता भट्ट, राहुल बग्गा, ओम पुरी, रवि किशन, संजय मिश्र 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 14 मिनट 23 सेकंड्स
रेटिंग : 2.5/5 

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