पाताल लोक रिव्यू

समय ताम्रकर
बुधवार, 20 मई 2020 (09:15 IST)
पाताल लोक के मेकर्स को यदि 'सेक्रेड गेम्स' से प्रेरित होकर अपनी सीरिज बनानी थी तो थोड़ा रूक कर बनाते क्योंकि अभी भी अनुराग कश्यप की सीरिज का सुरुर छाया हुआ है। 
 
सेक्रेड गेम्स का लीड कैरेक्टर एक इंस्पेक्टर था जिसे अपने आपको साबित करना था। डिपार्टमेंट से उसके रास्ते में बाधाएं पैदा की जाती हैं, लेकिन वह डटा रहता है और अपना काम करके ही मानता है। 
 
कुछ ऐसा ही किरदार 'हंड्रेड' में लारा दत्ता का भी है। पाताल लोक का लीड कैरेक्टर हाथीराम चौधरी भी इसी किरदार का विस्तार है। 
 
हाथीराम को दर्द है कि उसका बाप उसे बेवकूफ समझता था और बेटे का भी यही खयाल है। इस पुलिस ऑफिसर को एक ऐसे केस की जरूरत है जिसके जरिये वो अपने आपको साबित कर सके कि जो दिख रहा है वो वैसा नहीं है। 
 
एक सेलिब्रिटी टीवी एंकर संजीव मेहरा की हत्या की साजिश करते चार लोग पकड़े जाते हैं। वे संजीव को क्यों मारना चाहते थे? कौन इसके पीछे है? ये हाईप्रोफाइल मामला हाथीराम को मिलता है और वो इस उलझी हुई डोर को सुलझाने में लग जाता है। 
 
हाथीराम के निजी जीवन की परेशानियां भी हैं। युवा हो रहा है बेटा हाथ बाहर है। गलत संगत में है और हाथीराम से सीधे मुंह बात नहीं करता। पत्नी कमाई बढ़ाने के लिए उलजलूल स्कीम सामने लाती रहती है।  
 
हाथीराम की डिपार्टमेंट में साख नहीं है, शायद इसीलिए यह केस उसके हाथ लगा है कि हाथीराम इसे सुलझा नहीं पाएगा।  
 
इन सबके बीच हाथीराम इस केस की कड़ी से कड़ी जोड़ता रहता है। साथी के रूप में उसे अंसारी का साथ मिलता है जो उसके ही डिपार्टमेंट में हैं और जल्दी ही बड़ा अफसर बनने वाला है। 
 
सुदीप शर्मा द्वारा लिखी गई इस सीरिज में कई बातों को समेटा गया है जिनमें से कुछ असरदायक हैं, कुछ रूटीन तो कुछ बेअसर। 
 
मुस्लिमों को लेकर पूर्वाग्रह, जातिगत समीकरण, राजनीतिक हितों को साधने के लिए किसी भी हद तक जाते नेता जैसी बातें हम पहले भी देख चुके हैं। पाताल लोक में गहराई और बढ़ा दी गई है। 
 
टीवी एंकर के जरिये मीडिया का कान भी मरोड़ा गया है। धन्ना सेठ किस तरह चैनल चलाते हैं। गरीबों के हमदर्द और अन्याय के लिए सरकार को घेरने वाले पत्रकार महज सेटिंगबाज हैं। हालांकि यहां गहराई में नहीं पहुंच पाए हैं। 
 
संजीव मेहरा की हत्या की साजिश रचने वाले चार अपराधियों का अतीत भी दिखाया गया है जो बहुत लंबा है और प्रभाव नहीं छोड़ता। केवल चौंकाने के लिए कुछ सीन रखे गए हैं। 
 
इन चारों के जरिये लेखक और निर्देशक ने पंजाब में चल रहा जंगल राज, उत्तर प्रदेश में चल रहे राजनीतिक दांवपेच और गुंडागर्दी तथा बच्चों के साथ अनैतिक संबंधों को दर्शाया है। 
 
हिंसा और सेक्स के छौंक के साथ इन्हें दिखाया गया है। और ये छौंक इसलिए लगाया गया है क्योंकि कहानी के साथ इन किरदारों के अतीत का बहुत ज्यादा जुड़ाव नहीं है। केवल वो परिस्थितियां दिखाई गई है जिनकी वजह से वे अपराध के कीचड़ में उतरे। 
 
धर्म, जाति, भ्रष्टाचार, हिंसा और राजनीति के तानेबाने को इन अपराधियों की पृष्ठभूमि के जरिये बुना गया है। भारत के धूल भरे ग्रामीण इलाकों से लेकर साउथ दिल्ली के पाश बंगलों और ऑफिस की हलचल को अच्छे से दिखाया गया है। यही कारण है कि फॉर्मूलाबद्ध होने के बावजूद पाताल लोक दर्शकों की रूचि बनाए रखती है। 
 
पाताल लोक का क्लाइमैक्स थोड़ा निराश करता है। हाथीराम जब केस की तह तक पहुंचता है तो कुछ खास सामने नहीं आता। अचानक संजीव मेहरा और चार अपराधी खोखले लगते हैं। 
 
जिस तरह से इस क्राइम थ्रिलर में हाइप पैदा किया गया है उसका अंत उस स्तर तक नहीं पहुंच पाता। चिप्स के उस पैकेट को खोलने की फीलिंग आती है जिसे में चिप्स कम और हवा ज्यादा रहती है।
 
पाताल लोक का निर्देशन अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय ने किया है। लेखक ने जो सोचा है उससे ज्यादा कही उन्होंने दिखाया है। उनका प्रस्तुतिकरण शानदार है। 
 
लेखक और निर्देशक के काम को और निखारा है सीरिज की एडिटर संयुक्ता कज़ा ने। उनकी एडिटिंग कहानी को धार देती है और उत्सुकता बनाए रखती है। 
 
जयदीप अहलावत लीड रोल में है और कहना होगा कि उन्होंने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया है। कैरेक्टर रोल में तो अपना प्रभाव छोड़ते रहे हैं, लेकिन लीड रोल में भी वे पूरे आत्मविश्वास से भरे नजर आए। अपने खुरदरे चेहरे का उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया और हाथीराम के चरित्र को यादगार बनाया। 
 
नीरज काबी एक काबिल कलाकार हैं। सेलिब्रिटी टीवी पत्रकार की भूमिका को उन्होंने बखूबी उकेरा है। ये उनकी काबिलियत ही है कि उन्हें कम संवाद दिए गए और ज्यादातर समय उन्होंने चेहरे से ही अपने भाव पेश किए हैं। 
 
गुल पनाग, अभिषेक बैनर्जी, स्वास्तिका मुखर्जी, ईशवाक सिंह, विपिन शर्मा, आकाश खुराना, राजेश शर्मा सहित सारे कलाकारों ने अपने अभिनय के बूते पर सीरिज का स्तर ऊंचा किया है। 
 
पाताल लोक सीरिज एक बार फिर हमारा सामना उस भयावह सिस्टम से कराती है जिसे हम सड़ा-गला मानते हैं, जबकि वो सिस्टम ओवर-आइलिंग किया हुआ बढ़िया तंत्र है जिसका पुर्जा-पुर्जा जानता है कि उसे क्या करना है और जो पुर्जा काम का नहीं होता, फौरन बदल दिया जाता है। 
 
 
* निर्माता : क्लीन स्लेट फिल्म्स
* निर्देशक : अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय
* कलाकार : जयदीप अहलावत, गुल पनाग, नीरज काबी, स्वास्तिका मुखर्जी, अभिषेक बैनर्जी, विपिन शर्मा, आकाश खुराना, राजेश शर्मा
* अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर उपलब्ध
* सीज़न: 1 * एपिसोड : 9
* 18 वर्ष से ऊपर वालों के लिए 
रेटिंग : 3/5 
 
 

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