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पागलपंती : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 22 नवंबर 2019 (15:36 IST)
अनीस बज्मी पिछले 25 वर्षों से फिल्में बना रहे हैं और उनका एक ही उद्देश्य है कि उनकी फिल्म देख दर्शक हंसे और खुशी-खुशी घर जाएं। 6 से 80 साल तक के दर्शक वर्ग के लिए वे फिल्म रचते हैं और कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता से दूर रहते हैं। 
 
यही कारण है कि उनकी फिल्में टीवी पर खूब देखी जाती हैं। नो एंट्री, थैंक यू, वेलकम, वेलकम बेक, रेडी जैसी फिल्मों को टीवी पर खासी टीआरपी मिलती है और ये फिल्में लगातार दिखाई जाती हैं। 
 
उनकी ताजा फिल्म 'पागलपंती' भी उसी शैली में बनाई गई है, जिसके लिए अनीस मशहूर है। जैसा की नाम से जाहिर है कि फिल्म में पागलपंती है और इसे गंभीरता से नहीं लेना है। दर्शक फिल्म का टिकट भी इसी उम्मीद से खरीदता है कि उसका फिल्म जम कर मनोरंजन करेगी। 
 
लेकिन 'पागलपंती' एक औसत फिल्म है। इसमें वो अनीस नजर नहीं आता जिसके लिए वे फेमस हैं। पागलपंती के लिए अनीस कुछ नया नहीं सोच सके हैं और उन्होंने अपने आपको दोहरा दिया है। 
 
अनीस ने कहानी को मजबूत करने के बजाय दृश्यों पर ज्यादा ध्यान दिया है, भले ही ये सीन कहानी में फिट हो रहे हो या नहीं। यदि सीन मजबूत होते हैं तो दर्शक कहानी पर ध्यान नहीं देते हैं। पागलपंती में कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है। 
 
अनीस की फिल्मों के किरदार महंगे कपड़े पहनते हैं, महल जैसे घरों में रहते हैं, महंगी कारों में घूमते हैं और दिमाग से पैदल होते हैं। फिल्म की लोकेशन भी शानदार होती है। पागलपंती में भी यही सब कुछ है। 
 
कहानी है राजकिशोर (जॉन अब्राहम) की जो बहुत ही 'अनलकी' है। एक पंडित का कहना है कि शनि इसके पीछे नहीं बल्कि इसकी गोद में बैठा है। जहां जाता है वहां काम बिगड़ जाता है। ऐसा ही एक किरदार अक्षय कुमार ने 'हाउसफुल' सीरिज में निभाया था। 
 
राजकिशोर और उसके दो दोस्त जंकी (अरशद वारसी) और चंदू (पुलकित सम्राट), गैंगस्टर्स वाईफाई भाई (अनिल कपूर) और राजा साहब (सौरभ शुक्ला) का करोड़ों का नुकसान कर देते हैं और बदले में उनके नौकर बन जाते हैं। नौकर बन कर भी उनका नुकसान पहुंचाना जारी रहता है और इस कारण दोनों गैंगस्टर्स मुसीबत में फंस जाते हैं। 
 
फिल्म में कलाकारों की भीड़ इकट्ठा की गई है। लोकेशन के रूप में इंग्लैंड है। कारें उड़ाई गई है। कॉमेडी की गई है। शेर को भी दिखाया है, लेकिन फिल्म अपने नाम के अनुरूप फनी नहीं बन पाई है। 
 
फिल्म में दो बड़ी खामियां हैं। इंटरवल के बाद फिल्म आकर एक जगह ठहर जाती है और कहानी गोल-गोल घूमने लगती है। दूसरी अखरने वाली बात है फिल्म की लंबाई। 165 मिनट की यह फिल्म आसानी से 30 मिनट छोटी की जा सकती है। कई गैर जरूरी दृश्य और गाने महज फिल्म की लंबाई ही बढ़ाते हैं।  
 
लेखक और निर्देशक के रूप में अनीस पूरी तरह फॉर्म में नजर नहीं आए। उनके कई सीन सपाट रहे जिनमें हंसी नहीं आती। जैसे फिल्म का शुरुआती दृश्य जिसमें पटाखों की दुकान में आग लग जाती है। दूसरी कुछ सीन हंसाते भी हैं जैसे शेर वाले सीन। 
 
संवाद कॉमेडी फिल्मों की जान होते हैं, लेकिन फिल्म के संवाद खास नहीं है। संगीत के मामले में यही हाल है। 
 
डांस और कॉमेडी करना जॉन अब्राहम के बस की बात नहीं है। जॉन को वैसे भी निर्देशक ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी है और वे दबे-दबे से ही रहे। कई दृश्यों में जॉन की असहजता साफ देखी जा सकती है। 
 
अरशद वारसी, अनिल कपूर और सौरभ शुक्ला जरूर अपने अभिनय के बूते पर दर्शकों को बांध कर रखते हैं और हंसाने में सफल रहे हैं। पुलकित सम्राट ने जम कर ओवर एक्टिंग की है। 
 
इलियाना डीक्रूज, कृति खरबंदा और उर्वशी रौटेला का काम खूबसूरत लगना था जिसमें वे सफल रही हैं। कृति खरबंदा को कुछ अच्छे सीन मिले हैं। इलियाना दूसरे नंबर पर रही हैं जबकि उर्वशी रौटेला इंटरवल के बहुत बाद नजर आती हैं और उन्हें बहुत कम संवाद मिले हैं। एक्टिंग के मामले में तीनों औसत रही हैं। 
 
कुल मिलाकर 'पागलपंती' एक टाइमपास मूवी है।
 
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, कुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक
निर्देशक : अनीस बज्मी
कलाकार : अनिल कपूर, जॉन अब्राहम, इलियाना डीक्रूज, अरशद वारसी, पुलकित सम्राट, कीर्ति खरबंदा, उर्वशी रौटेला, सौरभ शुक्ला
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 45 मिनय 
रेटिंग : 2/5 

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