राधे श्याम फिल्म समीक्षा : प्रभास और कहानी ने किया निराश

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 11 मार्च 2022 (14:11 IST)
किसी फिल्म की खराब कहानी और स्क्रीनप्ले किस तरह से एक्टर्स, कोरियोग्राफर, सिनेमाटोग्राफर, संगीतकार और अन्य तकनीशियनों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं इसका उदाहरण है प्रभास की ताजा फिल्म 'राधेश्याम'। इस फिल्म को राधा कृष्ण कुमार ने लिखा और निर्देशित किया है और वे ही 'राधे श्याम' फिल्म को डूबोने के लिए जिम्मेदार हैं। एक लेखक के बतौर पर वे बहुत कन्फ्यूज नजर आए। 
विज्ञान के इस युग में जहां सभी तर्क के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश में लगे हुए हैं वहीं यह फिल्म वैज्ञानिक सोच को पीछे ढकेलते हुए भाग्य, भविष्यवाणी और ज्योतिष पर विश्वास करने के लिए कहती है। फिल्म का प्लाट ही अतार्किक और अवैज्ञानिक है जिस पर म्यूजिकल लव स्टोरी की इमारत खड़ी की गई है जो ढह जाती है। 
 
कहानी 1976 में सेट है। विक्रमादित्य (प्रभास) को भारत का नास्त्रेदमस कहा जाता है क्योंकि वह हाथ देखकर व्यक्ति का सटीक भविष्य बता देता है। आमतौर पर फिल्मों में ज्योतिष को धोती-कुर्ते में टीका लगाए टाइप्ड तरीके से दिखाया जाता है, लेकिन 'राधे श्याम' का विक्रमादित्य लड़कियों से फ्लर्ट करता है, शराब पीता है और पब जाता है। उसका कहना है कि उसके हाथ में प्यार और शादी की लकीर नहीं है। 
 
फिल्म की हीरोइन प्रेरणा (पूजा हेगड़े) एक डॉक्टर है जिसे ऐसी बीमारी है कि उसके पास ज्यादा दिन नहीं हैं। विक्रमादित्य उससे फ्लर्टिंग कर नजदीकियां बढ़ाता है और भविष्यवाणी करता है कि प्रेरणा का जीवन बहुत लंबा है। यह सुन प्रेरणा के चाचा (सचिन खेड़ेकर) नाराज होते हैं और उसे इस तरह की बातों पर यकीन नहीं करने के लिए कहते हैं। भविष्यवाणी सच होती है या नहीं इसके लिए क्लाइमैक्स का इंतजार करना पड़ता है। 
फिल्म का पहला घंटा झेला नहीं जा सकता। जिस तरह से कैरेक्टर्स को एक के बाद एक पेश किया जाता है, मनोरंजन के लिए दृश्य रचे गए हैं वो बेहद सतही है। कहानी बिलकुल आगे नहीं बढ़ती और लगातार ऐसे दृश्य सामने आते हैं जिनका कहानी से कोई लेना-देना नहीं है। एक घंटे बाद ही कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन दर्शकों को न कहानी में रूचि रहती है और न ही स्क्रीन पर चल रहे घटनाक्रमों में।
 
राधा कृष्ण कुमार ने पूरी फिल्म को फेअरीटेल की तरह बनाया है। हर सीन को खूबसूरत बनाने के चक्कर में वे यह बात भूल गए कि यह कहानी में फिट होता है या नहीं। इससे फिल्म अपना प्रभाव तुरंत खो देती है। 
 
स्क्रीनप्ले में कई गलतियां हैं। जब प्रेरणा के बारे में विक्रमादित्य भविष्यवाणी कर देता है कि उसकी मौत अभी नहीं होगी तो प्रेरणा के चाचा प्रेरणा से लड़ते हैं जबकि प्रेरणा को इस भविष्यवाणी से उम्मीद बंध जाती है। होना तो यह चाहिए था कि भले ही यह बात झूठ साबित हो, लेकिन तसल्ली के प्रेरणा का उत्साह बढ़ाया जा सकता था। 
 
विक्रमादित्य के हाथ में जब लव लाइन नहीं है तो वह क्यों प्रेरणा से नजदीकियां बढ़ाता है? प्यार का लव लाइन से क्या लेना-देना? यह तो हो जाता है क्योंकि किसी का इस पर बस नहीं है। विक्रमादित्य अचानक प्रेरणा और अपने परिवार को छोड़ने का क्यों फैसला लेता है? प्रेरणा को जब विक्रमादित्य का एक अहम राज पता चल जाता है तो वह इस बारे में उससे क्यों बात नहीं करती? विक्रमादित्य इतनी सटीक भविष्यवाणी कैसे करता है? कौन सी विद्या उसे प्राप्त है? ऐसे कई प्रश्न फिल्म देखते समय दिमाग में कौंधते रहते हैं जिनके कोई जवाब नहीं मिलते। 
फिल्म के अंत में कर्म को प्रमुखता देते हुए भविष्यवाणी और किस्मत वाली बात को संभालने की कोशिश की गई है, लेकिन बात नहीं बनती क्योंकि 95 प्रतिशत फिल्म में तो आप 'किस्मत' और 'भविष्यवाणी' का गुणगान करते रहते हैं। 
 
निर्देशक के रूप में भी राधा कृष्ण कुमार निराश करते हैं। विक्रमादित्य एक्सीडेंट के बाद घायल अवस्था में अस्पताल के अंदर 'हीरोगिरी' करते हुए चलता है तो उसे नर्सेस और सपोर्टिंग स्टाफ देखते रहते हैं, कोई मदद के लिए आगे नहीं आता। यानी निर्देशक का ध्यान फिल्म को 'स्टाइलिश' बनाने में रहा और वे बेसिक बातें भी भूल गए। राधा कृष्ण कुमार का प्रस्तुतिकरण भी दमदार नहीं है। दृश्यों को वे सही तरीके से जोड़ नहीं पाए हैं। कहने को तो यह लव स्टोरी है, लेकिन इसमें इमोशन्स नहीं है।  
 
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी, लोकेशन्स, कोरियोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक, गाने जबरदस्त हैं। तकनीशियनों ने अपने काम में 100 प्रतिशत दिया है। फिल्म आंखों को सुकून देती है। कुछ दृश्य बेहतरीन तरीके से फिल्माए गए हैं। 
 
लव स्टोरी में प्रभास फिट नहीं लगे। जो किरदार उन्होंने निभाया है उससे उनकी उम्र ज्यादा लगती है। जिस तरह की 'लवर बॉय' हरकतें प्रभास से करवाई गई हैं, वो उनके व्यक्तित्व पर सूट नहीं होती और उनकी असहजता एक्टिंग में नजर आती है। पूजा हेगड़े सुंदर लगी हैं और उनका आत्मविश्वास उनकी एक्टिंग में झलकता है। सचिन खेड़ेकर का किरदार सही नहीं लिखा गया है। भाग्यश्री, कुणाल रॉय कपूर, मुरली शर्मा सहित सपोर्टिंग कास्ट के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था।  
 
प्रभास का कहना है कि वे अत्यंत सावधानी के साथ स्क्रिप्ट का चुनाव करते हैं, लेकिन 'राधे श्याम' जैसी फिल्म उनके सिलेक्शन पर सवाल खड़े करती है। 

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