जेटली के सामने किसानों-निवेशकों को खुश करने की कठिन चुनौती

Webdunia
सोमवार, 29 फ़रवरी 2016 (08:10 IST)
नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली रविवार अपना तीसरा चुनौतीपूर्ण बजट पेश करेंगे। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री के समक्ष कृषि क्षेत्र और उद्योग जगत की जरूरतों के बीच संतुलन बैठाने की कड़ी चुनौती होगी। उनके समक्ष इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच सार्वजनिक खर्च के लिए संसाधन जुटाने का भी लक्ष्य होगा।
 
आयकर के मोर्चे पर बजट में संभवत: कर स्लैब में यथास्थिति कायम रखी जाएगी, जबकि इसमें कर छूट में बदलाव हो सकता है। एक के बाद एक सूखे की वजह से ग्रामीण क्षेत्र दबाव में है। इसकी वजह से वित्त मंत्री पर सामाजिक योजनाओं में अधिक खर्च करने का दबाव है। इसके अलावा उनको विदेशी निवेशकों का भरोसा भी जीतना होगा जो तेज सुधारों की मांग कर रहे हैं।
 
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। इस वजह से भी वित्त मंत्री के लिए दिक्कतें बढ़ी हैं। अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जीडीपी के 3.5 प्रतिशत पर रखने के पूर्व में घोषित लक्ष्य से समझौता किए बिना वे इसे कैसे करते हैं यह देखने वाली बात होगी।
 
माना जा रहा है कि जेटली कारपोरेट कर की दरों को चार साल में 30 से 25 प्रतिशत करने के अपने साल के वादे को पूरा करने के लिए भी कुछ कदम उठाएंगे। समझा जाता है कि वह कल बजट में इस प्रक्रिया की शुरआत करेंगे, जिसमें कर छूट को वापस लिया जाना शामिल होगा जिससे इस प्रक्रिया को राजस्व तटस्थ रखा जा सके। 
 
बढ़े खर्च को पूरा करने के लिए राजस्व बढ़ाने को वित्त मंत्री को अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने होंगे या नए कर पेश करने होंगे। सेवा कर कर दर को पिछले साल बढ़ाकर 14.5 प्रतिशत किया गया है। जीएसटी में इसके लिए 18 प्रतिशत की दर को जो प्रस्ताव है उसके मद्देनजर सेवा कर में कुछ बढ़ोतरी हो सकती है।
 
इसी तरह चर्चा है कि पिछले साल लगाए गए स्वच्छ भारत उपकर की तरह स्टार्ट अप इंडिया या डिजिटल इंडिया पहल के लिए धन जुटाने को लेकर नया उपकर लगाया जा सकता है। वित्त मंत्री के एजेंडा पर निवेश चक्र में सुधार भी शामिल होगा। 2015-16 में पूंजीगत खर्च इससे पिछले वित्त वर्ष से 25.5 प्रतिशत बढ़ा है। लेकिन जीडीपी के प्रतिशत के हिसाब से यह भी भी 1.7 प्रतिशत पर अटका हुआ है जिसे 2 प्रतिशत करने की जरूरत है।
 
उनके सामने बुनियादी ढांचा क्षेत्र में खर्च बढ़ाने की चुनौती होगी। इसके अलावा निजी निवेश वांछित रफ्तार से नहीं बढ़ने की वजह से सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की भी चुनौती होगी।
 
यह देखने वाली बात होगी कि जेटली अपनी जेब ढीली करते हैं या फिर मजबूती की राह पर ही कायम रहते हैं। यदि सरकार खर्च बढ़ाने का फैसला करती है, तो यह सुनिश्चित करने की चुनौती होगी कि वह कैसे धन को पूंजीगत निवेश में ला पाती है।
 
मूडीज इन्वेस्टर सर्विस के विश्लेषकों ने कहा कि यदि बजटीय मजबूती को जारी रखा जाता है, तो भारत का राजकोषीय ढांचा निकट भविष्य में अन्य रेटिंग समकक्षों की तुलना में कमजोर रहेगा। विदेशी निवेशकों ने इस साल अभी तक 2.4 अरब डॉलर के शेयर बेचे हैं। यह चीन के बाद एशिया में दूसरी सबसे बड़ी निकासी है।
 
वहीं म्यूचुअल फंड उद्योग का मानना है कि बजट में आयकर छूट सीमा 50,000 रपये बढ़ाकर तीन लाख रपये की जा सकती है।
 
उद्योग का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो इससे ग्राहकों के पास निवेश के लिए अतिरिक्त राशि बचेगी। बजट में जिंस आधारित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होगी और उनके लिए संरक्षण के उपाय करने होंगे। वैश्विक मांग में कमी तथा अत्यधिक आपूर्ति की वजह से ये क्षेत्र दबाव में हैं।
 
पिछले दो बजट में जेटली ने खर्च का हिस्सा सब्सिडी से दूर बुनियादी ढांचे की ओर स्थानांतरित किया है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन के अलावा उनके समक्ष बैंकों के पुन: पूंजीकरण भी चुनौती होगी।
 
सूखे और फसल के निचले मूल्य से कृषि क्षेत्र प्रभावित है। ऐसे में सरकार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर खर्च को जारी रखेगी, फसल बीमा का विस्तार करेगी और सिंचाई परिव्यय बढ़ाएगी।
 
माना जा रहा है कि सुधारों के मोर्चे पर वित्त मंत्री कुछ अन्य क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोलेंगे और रम आधारित क्षेत्रों मसलन चमड़ा और आभूषण को कुछ कर राहत देंगे।
 
कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट और अगले एक साल में इनमें बढ़ोतरी की कम संभावना के मद्देनजर सरकार आयातित कच्चे तेल, पेट्रोल और डीजल पर सीमा शुल्क को फिर लागू कर सकती है। 2011 में इसे हटा दिया गया था। उस समय कच्चे तेल के दाम बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए थे। पिछले साल के दौरान सोने का आयात बढ़ा है ऐसे में सरकार सोने पर आयात शुल्क बढ़ा सकती है। (भाषा)
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