अच्छे हो तो उजड़ो बुरे हो तो आबाद रहो!

मनीष शर्मा
ND
एक बार गुरु नानकदेवजी अपने शिष्यों के साथ घूमते-घूमते एक गाँव में ठहरे। वहाँ के सज्जन लोगों ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। अगले दिन वहाँ से चलते समय उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया- 'उजड़ जाओ।' यह सुनकर उनके सभी शिष्य दंग रह गए, लेकिन कहा कुछ नहीं। शाम होते-होते वे दूसरे गाँव में पहुँच गए। वहाँ के दुर्जन लोगों ने नानकजी और उनके शिष्यों का खूब तिरस्कार किया।

अगले दिन वहाँ से रवाना होते समय नानकजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया- 'आबाद रहो।' अब शिष्यों से चुप नहीं रहा गया। एक बोला- आपके आशीर्वाद हमारी समझ के परे हैं। जिन्होंने हमारी खूब आवभगत की, उन्हें आपने 'उजड़ जाने' का और तिरस्कार करने वालों को 'आबाद रहने' का आशीर्वाद दिया। इसमें क्या रहस्य है, कृपया बताएँ। इस पर नानकजी मुस्कराते हुए बोले- मैंने सज्जन लोगों को उजड़ जाने का आशीर्वाद इसलिए दिया ताकि वे दूसरी जगह जाकर वहाँ भी सज्जनता फैलाएँ और दुर्जन जहाँ हैं, वहीं आबाद रहें ताकि दूसरी जगह का माहौल दूषित न हो।

दोस्तो, सही तो है। अच्छी बातें, अच्छे विचार, अच्छे गुण जितने ज्यादा फैलें, उतना ही अच्छा है। इसके लिए जरूरी है कि ऐसे लोग जो सकारात्मक सोच रखते हों, जो चरित्रवान और संस्कारित हों, वे एक जगह के न होकर इधर-उधर भ्रमण करते रहें जिससे कि वे जहाँ जाएँ, वहाँ का माहौल भी सकारात्मक हो जाए।
जिन्होंने हमारी खूब आवभगत की, उन्हें आपने 'उजड़ जाने' का और तिरस्कार करने वालों को 'आबाद रहने' का आशीर्वाद दिया। इसमें क्या रहस्य है, कृपया बताएँ।


इसलिए यदि आप कुछ अच्छा कर रहे हैं तो चुप होकर न बैठें, लोगों को बताएँ। अकसर सज्जन व्यक्ति अपने अच्छे कार्यों को दूसरों को बताने में झिझकते हैं। इससे तो काम चलेगा नहीं। जो अच्छा है, सच्चा है, उसके बारे में तो बच्चे-बच्चे को जानना चाहिए। गुरु नानकदेवजी जैसी महान आत्माएँ यदि अपने उपदेशों के माध्यम से अच्छी बातों को फैलाती नहीं, सिर्फ अपने तक सीमित रखतीं तो सोचें कि क्या यह समाज के नजरिये से ठीक होता?

वैसे भी आज का युग प्रचार का युग है। इस प्रचार युग में बुरी बातें जिस तेजी से फैल रही हैं, उतनी तेजी से अच्छी बातें नहीं। इसलिए आज जरूरत है कि अच्छी बातें भी फैलें। इसके लिए अच्छे लोगों को ही तो आगे आना पड़ेगा ना। यदि सज्जन सिर्फ यह सोचकर चुप बैठेंगे कि अंततः जीत सत्य की होगी, तो दुर्जन हावी होंगे ही ना। इसलिए यदि आप सकारात्मक सोच रखते हैं, तो इसे सकारात्मक तरीके से लोगों तक पहुँचाएँ, ताकि माहौल सुधरे।

हम इस बात पर ज्यादा जोर इसलिए दे रहे हैं कि कई बार सज्जन लोग अपना दायरा सीमित रखने में ही भलाई समझते हैं। वे दुर्जन प्रवृत्ति के लोगों से दूरी बनाकर रखते हैं, रखना चाहते हैं। इनका सोच रहता है कि कौन पंगा ले। अरे भई, जो भटके हुए हैं, उन्हें राह कौन दिखाएगा? इसलिए बेहतर है कि उन्हें कोसने की बजाय सही राह दिखाई जाए, तभी आप अपना फर्ज पूरा करेंगे।

तो आज गुरु नानकदेवजी के प्रकाश पर्व पर आप प्रण करें कि आप अच्छी बातों को फैलाने के मौके तलाशते रहेंगे और जब भी अवसर मिलेगा, आप उन्हें फैलाने से चूकेंगे नहीं। वैसे जहाँ तक गुरुमंत्र के पाठकों का सवाल है, तो वे इस तरह का कोई मौका नहीं चूकते। हमारे कई पाठक इन गुरुमंत्रों की चर्चा अपने मित्र-परिजनों से करते रहते हैं। इसके बारे में वे हमें सूचित भी करते हैं।

कई पाठकों ने तो गुरुमंत्र से प्रभावित होकर नईदुनिया की प्रतियाँ अपने मित्र-परिजनों के यहाँ शुरू करवाई हैं। हमारे कई पाठक तो अच्छे गुरुमंत्रों की फोटोकॉपी कराकर अपने परिचितों को भेजते हैं। इसी तरह नईदुनिया के इंटरनेट संस्करण और हिन्दी पोर्टल वेबदुनिया के पाठक ई-मेल के माध्यम से गुरुमंत्र की लिंक का आदान-प्रदान करते रहते हैं।

हम देश-विदेश के अपने ऐसे सभी पाठकों के शुक्रगुजार हैं। हकीकत में तो गुरुमंत्र का उद्देश्य भी वही है, जो नानकजी चाहते थे यानी अच्छी बातें फैलें। यह काम आप और हम मिलकर ही कर सकते हैं। हमें उम्मीद है कि आप इस काम में हमारा लगातार इसी तरह सहयोग करते रहेंगे ताकि सभी के जीवन में प्रकाश फैलता रहे। प्रकाश पर्व की लख-लख बधाइयाँ।
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