नस चढ़ने से नहीं, नशा चढ़ने से खुलेगा नसीब

मनीष शर्मा
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एक बार बेला नाम का अनपढ़ जाट गुरु गोविंदसिंह के पास नौकरी के लिए पहुँचा। गुरु ने उसे घोड़ों की देखभाल का काम सौंपते हुए कहा कि हम तुम्हें पढ़ाएँगे। तुम्हारा पहला पाठ है 'वाह भाई बेला, न पहचाने वक्त, न पहचाने बेला।' इसे तुम्हें रोज रटना है। बेला पूरी लगन से ऐसा करने लगा। इस पर एक शिष्य ने गुरु से पूछा- आपने इसे यह कैसा पाठ दिया है।

गुरु बोले- जिसने बेला यानी वक्त को नहीं जाना, उसने दुनिया को भी नहीं जाना। यदि यह अपने नाम का अर्थ ही जान ले तो इसका बेड़ा पार हो जाएगा। दिन गुजरने लगे। गुरुजी बेला को और भी उपदेश देने लगे। एक अन्य शिष्य ने गुरु से शिकायती अंदाज में कहा- आप हमें उपदेश क्यों नहीं देते। गुरु ने जवाब देने की बजाय शिष्य को एक घड़ा भाँग तैयार कर उससे कुल्ला करने को कहा। शिष्य ने ऐसा ही किया। तब गुरु ने पूछा- तुम्हें नशा चढ़ा कि नहीं।

शिष्य ने कहा- नहीं। इसके बाद उन्होंने बेला को बुलाया जो गुरु के दिए गए पाठ को रटे जा रहा था। उसे देखकर लग रहा था कि जैसे वह नशे में हो। गुरुजी बोले- जैसे भाँग शरीर में अंदर जाने के बाद ही असर करती है, वैसे ही जब आप किसी अच्छी बात को आत्मसात करते हो, दिल में उतार लेते हो, तभी वह असर करती है। इस व्यक्ति में सीखने की ललक है। ऐसे व्यक्ति को नहीं सिखाऊँगा तो किसे सिखाऊँगा।
  एक बार बेला नाम का अनपढ़ जाट गुरु गोविंदसिंह के पास नौकरी के लिए पहुँचा। गुरु ने उसे घोड़ों की देखभाल का काम सौंपते हुए कहा कि हम तुम्हें पढ़ाएँगे। तुम्हारा पहला पाठ है 'वाह भाई बेला, न पहचाने वक्त, न पहचाने बेला।' इसे तुम्हें रोज रटना है। बेला पूरी लग      


दोस्तो, सही तो है। अच्छी बात का असर तभी संभव है जब वह दिल में उतर जाए। वर्ना एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दी जाए या फिर सिर्फ तोते की तरह रट ली जाए तो वह आचरण में नहीं आती। अधिकतर लोग केवल दिखावे और नाम के लिए अच्छी-अच्छी बातों को रटकर दूसरों के सामने उन्हें दोहरा देते हैं। ऐसी बातें सिर्फ उनकी जुबान पर होती हैं, व्यवहार में नहीं।

ऐसे लोग सोचते हैं कि अच्छी-अच्छी बातें करके नाम कमाया-चलाया जा सकता है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। केवल बातों से नाम नहीं होता। वह होता है काम से। यदि आपकी बातें अच्छी और कर्म बुरे होंगे तो आपका नाम चलेगा तो नहीं, डूब जरूर जाएगा। इसलिए अच्छी बातें करने के साथ ही उन पर अमल भी करें।

दूसरी ओर, जब तक आपके अंदर किसी काम को करने का नशा न हो, ललक न हो, लगन न हो, तब तक आप उस काम को बखूबी अंजाम नहीं दे सकते। एक योग्य व्यक्ति में कुछ करने का, कर दिखाने का नशा होता है। उसे अपने लक्ष्य के सिवाय न कुछ सूझता है, और न ही कुछ नजर आता है। काम के नशे में चूर ऐसा व्यक्ति ही कॅरियर में बहुत दूर तक जाता है यानी वह बहुत आगे बढ़ता है। क्योंकि ऐसे व्यक्ति सभी को उसी तरह पसंद आता है जैसे गुरु गोविंदसिंह को बेला आया था।

गुरु ने उसकी सीखने की ललक को जान लिया था। और जिसमें ललक हो वह काम में पूरी तरह खो जाता है, डूब जाता है। काम के प्रति ललक वाले ऐसे लोगों को सभी अपनी पलक पर बैठाकर रखेंगे न। इसी कारण ललक या लगन को योग्यता और अयोग्यता का पैमाना भी माना गया है।

इसके बाद भी बहुत से लोग आपको ऐसे मिल जाएँगे जो जिंदगी में हासिल तो बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कोई लक्ष्य दो, काम दो, तो उन्हें उसका नशा ही नहीं चढ़ता बल्कि काम के बारे में सुनते ही उनकी नस चढ़ जाती है यानी उन्हें काम का तनाव हो जाता है, हाथ-पाँव में दर्द होने लगता है। अब नस चढ़ने से तो काम बनने से रहा। इससे तो उलटे नस-नस ढीली पड़ जाती हैं माने हौसले पस्त हो जाते हैं।

हौसलों की बुलंदी के लिए तो काम का नशा चढ़ना जरूरी है ताकि उस काम को अंजाम देने के लिए नस-नस फड़क उठे, तभी नसीब खुलेगा, खुलता है, चमकेगा, चमकता है, जागेगा, जागता है। यदि आपने यह बात आत्मसात कर ली तो फिर तो हर बेला आपकी होगी, हर वक्त आपका होगा, नाम आपका होगा।

और अंत में, आज गुरु गोविंदसिंहजी की जयंती है। गुरुजी के अंदर जुनून था, लगन थी मातृभूमि के लिए मर-मिटने की। यही उन्होंने दूसरों में भी पैदा की। यदि अपने काम को लेकर ऐसी ही लगन और ललक आपके अंदर जाग्रत हो गई फिर तो आप बड़ी से बड़ी सफलता भी सरलता से प्राप्त कर लेंगे। प्रकाश पर्व की लख-लख बधाई।
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