बनी रहेगी कलगी तो लगती रहेगी कलगी

मनीष शर्मा
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संत कबीर के दर्शन करने उनके घर पहुँचे एक व्यक्ति को जब उनके शवयात्रा में जाने की जानकारी मिली तो उसने श्मशान जाकर ही उनसे मिलने का निर्णय लिया। जब उसने कबीर की पत्नी से उनकी पहचान पूछी तो वे बोलीं कि उनके सिर पर कलगी लगी है।

श्मशान पहुँचने पर उसने देखा कि अंतिम संस्कार में शामिल होने आए अधिकतर लोगों के सिर पर कलगी है। वह दूर खड़ा हो गया। उसने देखा कि समय बीतने के साथ धीरे-धीरे लोगों के सिर पर से कलगी गायब होती जा रही है। दाह संस्कार के बाद जब सभी पास की नदी में स्नान करके लौटे तो केवल एक ही व्यक्ति के सिर पर कलगी रह गई थी।

उस व्यक्ति ने तुरंत पहचान लिया कि यही कबीर हैं। वह उनके चरणों में गिरकर बोला- महाराज, मैं आपसे ज्ञान लेने आया था लेकिन वह तो मुझे आपके दर्शन मात्र से ही मिल गया। श्मशान में आकर लोगों के मन में वैराग्य पैदा होता है, उसे जगत मिथ्या लगने लगता है। इससे उसके सिर पर ज्ञान की कलगी आ जाती है।
  संत कबीर के दर्शन करने उनके घर पहुँचे एक व्यक्ति को जब उनके शवयात्रा में जाने की जानकारी मिली तो उसने श्मशान जाकर ही उनसे मिलने का निर्णय लिया। जब उसने कबीर की पत्नी से उनकी पहचान पूछी तो वे बोलीं कि उनके सिर पर कलगी लगी है।      


यह वैराग्य भाव क्षणिक ही रहता है। इसके खत्म होते ही कलगी गायब हो जाती है। लेकिन आपके सिर पर तो ज्ञान रूपी स्थायी कलगी है, क्योंकि आपको संसार की नश्वरता का ध्यान हर वक्त रहता है। उसी भाव के दर्शन करके मैं धन्य हो गया, तृप्त हो गया।

दोस्तों, किसी शवयात्रा में शामिल होते समय हम सभी के मन में अचानक 'मसानिया वैराग' जाग उठता है। तब हमें सारी भाग-दौड़ बेकार लगने लगती है क्योंकि हमें समझ में आ जाता है कि एक दिन हमें भी ऐसे ही यहाँ आना है। तब बेकार की मारा-मारी क्यों, ऊँच-नीच क्यों, अमीरी-गरीबी क्यों, अपना-पराया क्यों? यानी अचानक हम किसी संत-महात्मा जैसी बातें, जैसा व्यवहार करने लगते हैं।

लेकिन यह मसानिया वैराग अल्पकालिक और मरघट की सीमा तक ही सीमित रहता है। वहाँ से बाहर पाँव रखते ही व्यक्ति की बुद्धि दोबारा घूम जाती है या यूँ कहें कि वापस अपनी जगह पर आ जाती है और तब फिर उसी मारा-मारी में लग जाता है, जिसे थोड़ी देर पहले वह धिक्कार रहा था। लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें यह क्षणिक भाव भी पैदा नहीं होता।

वे ऐसे समय में भी यह सोच-विचार नहीं कर पाते कि आखिर वे किस भाग-दौड़, किस दुनियादारी में लगे हैं। उनके पास इतना समय भी नहीं होता कि वे किसी के दुःख में ठीक तरह से संवेदना के दो शब्द कह सकें। वे ऐसे अवसरों पर शामिल भी होते हैं तो केवल लोकलाज के कारण सिर्फ मुँह दिखाने के लिए। और वहाँ जाकर भी लगे रहते हैं अपने मोबाइल से।

यदि आप भी ऐसा करते हैं तो इससे आपकी छवि खराब ही होती है। सभी आपको दिखावटी समझने लगते हैं। तब वहाँ आपके लिए सिर पर कलगी लगती नहीं, उतर जाती है। वैसे भी गमगीन माहौल में मोबाइल का बजना या उस पर बात करना यह दर्शाता है कि आप कितने लापरवाह, अशिष्ट और स्वार्थी हैं। इस तरह आपका एक मूर्खतापूर्ण कदम आपको लोगों की नजरों में गिरा देता है।

इससे बचने का तरीका यही है कि ऐसे समय या तो मोबाइल बंद कर दिया जाए या जरूरी हो तो साइलेंट मोड में कर दिया जाए ताकि किसी को तकलीफ न हो। बाद में आप मिस्ड कॉल को देख सकते हैं। और यदि आपको पहले से पता है कि कोई जरूरी कॉल आने वाला है तो दिखावा करने जाना ही क्यों। बाद में जाकर संवेदना व्यक्त कर सकते हैं।

वैसे भी जिस आपाधापी की वजह से आपके पास दो घड़ी का भी समय नहीं है तो इसका मतलब यह हुआ कि आप भोगों को नहीं, भोग आपको भोग रहे हैं। मायाजाल में फँसकर आप भूल रहे हैं कि काल कभी व्यतीत नहीं होता, व्यक्ति व्यतीत हो जाता है। उसकी तृष्णा जीर्ण-शीर्ण नहीं होती, वह खुद जीर्ण-शीर्ण हो जाता है।

इसलिए अच्छा यही है कुछ क्षणों के लिए ही सही पर दुनियादारी को भूलें। कहा भी गया है कि श्मशान और मंदिर में मनुष्य के मन में जो और जैसे भाव आते हैं, वैसे हर वक्त रहें तो मनुष्य कभी गलत पथ पर न चले, कुछ भी गलत न करे।

जब गलत नहीं करेगा तो उसके सिर पर कलगी हमेशा बनी रहेगी और उस कलगी के सहारे वह जीवन पथ पर सफलताओं की अनेक कलगियाँ अपनी टोपी में लगवाता जाएगा। क्यों भई, ये दूल्हे के सेहरे की कलगी क्या दर्शाती है?
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