माता-पिता को रखोगे दुःखी तो कैसे रह पाओगे सुखी

मनीष शर्मा
ND
एक बूढ़े दंपति का इकलौता बेटा कौशिक उन्हें बीमार ॥अवस्था में रोता-बिलखता छोड़कर और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जंगल में चला गया। वहाँ बहुत ज्ञान और शक्तियाँ प्राप्त कर लेने के बाद भी उसके मन को शांति नहीं मिली।

एक दिन एक पेड़ के नीचे तप केदौरान एक मादा बगुले ने उस पर बीट कर दी। उसने क्रोध से बगुले को देखा तो वह भस्म हो गया। इसके बाद एक बार उसने पास के गाँव में जाकर एक गृहिणी से भिक्षा माँगी। इस बीच पति के आ जाने पर वह गृहिणी सब कुछ भूलकर उसकी सेवा में लग गई। अचानक ध्यान आनेपर वह भिक्षा लेकर बाहर आई।

कौशिक गुस्से से उससे बोला- तूने पति के लिए एक ब्राह्मण का अपमान किया है। गृहिणी- मेरा पहला धर्म पति की सेवा करना है। कौशिक- तुझे शायद ब्राह्मण की शक्तियों का अंदाजा नहीं है? गृहिणी- ब्राह्मण वह है, जो गुस्से पर काबू रख सके। वैसे भी मैं कोई मादा बगुला नहीं, जिसे आप भस्म कर दें। कौशिक हैरान रह गया कि यह घटना उसे कैसे पता चली।
  एक बूढ़े दंपति का इकलौता बेटा कौशिक उन्हें बीमार अवस्था में रोता-बिलखता छोड़कर और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जंगल में चला गया। वहाँ बहुत ज्ञान और शक्तियाँ प्राप्त कर लेने के बाद भी उसके मन को शांति नहीं मिली।      


गृहिणी आगे बोली- अभी आपका ज्ञान अधूरा है। यदि पूरा करना चाहते हैं तो मिथिला में धर्मव्याध से जाकर मिलें। इस पर वह मिथिला में धर्मव्याध की दुकान परपहुँचा जो कि एक कसाई था। वह कौशिक को अपने घर ले गया और वहाँ अपने वृद्ध माता-पिता के चरण स्पर्श कर बोला- ये मेरे लिए ईश्वर से भी बढ़कर हैं। इन्हें दुःखी रखकर मेरा ज्ञान और धन हासिल करना व्यर्थ है।

इनकी सेवा से मन को जो शांति और आनंद मिलताहै, वह और किसी तरह प्राप्त नहीं किया जा सकता। यही सीखने उस गृहिणी ने आपको मेरे पास भेजा है। इसलिए जाकर अपने असहाय माँ-बाप की सेवा कर अपना कर्त्तव्य निभाओ, तभी तुम्हारा ज्ञान सार्थक होगा। कौशिक को अपनी गलती समझ में आ गई।

दोस्तो, कहा गया है कि मातृ देवो भव। पितृ देवो भव। इसलिए माता-पिता की सेवा-पूजा देवता के समान करना चाहिए। इनके आशीर्वाद से आप कदम-कदम पर फलते-फूलते हैं। वैसे भी अपने माता-पिता की सेवा करना हर संतान का फर्ज है।

इसे निभाकर भी वह उन कष्टोंका कर्ज नहीं चुका सकता, जो उसके पालन-पोषण के दौरान उसके पालकों ने सहे थे। जो यह फर्ज पूरी निष्ठा से पूरा करते हैं, उनकी जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति होती है। लेकिन बहुत से लोगों के लिए तो उनका कॅरियर और व्यक्तिगत स्वार्थ ही सर्वोपरि होते हैं।अपने माता-पिता की भावनाओं, उनके सुख-दुःख से इनका कोई लेना-देना नहीं होता।

ये मानते हैं कि माता-पिता ने उन्हें पाल-पोसकर कोई अहसान नहीं किया। उन्हें संतान की गर्ज थी, इसके लिए हमारा फर्ज कैसा। हमने तो उन्हें नहीं कहा था कि हमें पैदा करो। इस तरह के तर्क देकर वे अपने माता-पिता को रोता-बिलखता छोड़ अपनी में लगे रहते हैं। यदि आप भी ऐसे ही तर्क देते हैं, तो जान लें कि इन तर्कों से आप अपनी सोच का घटियापन ही साबित करते हैं। ऐसे में आपसे कोई भी संबंध नहीं रखना चाहेगा।

सभी यही कहेंगे कि जो अपने माता-पिता का ही नहीं हुआ, वह हमारा क्या होगा। वैसे भी माता-पिता को दुःखी रखकर, उनकी भावनाओं को कुचलकर आज तक कोई सुखी नहीं रह पाया। सब-कुछ पाने के बाद भी उसका मन अशांत रहता है। वह समझ नहीं पाता कि ऐसा अपनों से उसकी बेरुखी की वजह सेहै। यदि आपके साथ भी ऐसा है, तो अपनी गलती को समय रहते सुधार लें, वरना बाद में पछताने के सिवाय कुछ नहीं कर पाएँगे।

और अंत में, आज पेरेंट्स डे है। कई बार व्यक्ति को कॅरियर के लिए माता-पिता से दूर रहना पड़ता है। तब वे भी मजबूरी को समझते हुए खुशी-खुशी उसे ऐसा करने की इजाजत भी देते हैं। इसलिए उनकी सहमति से कॅरियर संवारें, लेकिन यह ध्यान रखें कि उन्हें कोई कष्टन हो। तब आप हर तरह से संतुष्ट रहेंगे।

साथ ही आज से रोज सुबह उठने के बाद पालकों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेने से दिन की शुरुआत करें। यदि आप ऐसा करेंगे, तो आपके सारे सपने पूरे होते चले जाएँगे। अरे भई, तुम्हें अपने माता-पिता तभी याद आते हैं, जब बीवी मायके चली जाती है।
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