नवरात्रि आत्ममंथन का पर्व

- गोविंद बल्लभ

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सृष्टि के आरंभ से ही शक्ति आराधना का क्रम प्रारंभ हो गया या यू ँ कहें कि शक्ति की आराधना से ही यह सृष्टि प्रारंभ हुई। भारतीय संस्कृति में चित्त की शुद्धि एवं भावों की शुद्धि के साथ स्वास्थ्य ठीक-ठीक रखने के लिए तिथि, त्योहार एवं पर्वों का विधान है।

इस कारण नवरात्रि उपासना का विशेष महत्व है। इसमें पूजा-आराधना, दर्शन आदि से चित्त एवं भावों की शुद्धि की जाती है तो व्रत से शरीर को ठीक रखा जाता है। अन्नमय कोश से साधना की आनंदमय कोश तक की यात्रा को निर्विघ्न संपन्न करने में भी नवरात्रि उपासना अपना विशेष महत्व रखती है। शक्ति आराधना की परंपरा में आद्याशक्ति भगवती दुर्गा के प्राकृतिक कठिन रहस्य को समझाया गया है। मंत्र, तंत्र और यंत्र तीनों विध िया ँ हैं शक्ति उपासना में।

शास्त्रों में कहा है कि लौकिक एवं अलौकिक दोनों सुख प्राप्त होते हैं शक्ति आराधना से 'कलौ चंडी विनायकौ' अर्थात कलियुग में चंडी एवं गणपति की उपासना सभी प्रकार का फल देने वाली है। कुछ वर्षों से प्रायः यह देखने में आ रहा है कि लोग नवरात्रि उपासना को केवल नौ रूपों की उपासना मान बैठते है परंतु भगवती आदिशक्ति दुर्गा अपनी समग्र शक्तियों को नौ रूपों में लिए हुए पृथ्वी पर प्रत्यक्ष फलदायी होकर उतर आती है।

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दुर्गा सप्तशती तथा मार्कण्डेय पुराण में मा ँ दुर्गा के प्रथम, मध्यम और उत्तर तीन चरित्र कहे गए हैं। प्रथम चरित्र के ऋषि ब्रह्मा देवता महाकाली, छंद गायत्री, शक्ति नंदा, बीज रक्त दंतिका, अग्नितत्व तथा स्वरूप ऋग्वेद हैं। इस चरित्र में मेधा ऋषि द्वारा राजा सुरथ और समाधि राजा को भगवती माता की महिमा बाताते हुए मधु और कैटभ दैत्यों के वध के सुंदर प्रसंग हैं। मध्यम चरित्र में देवताओं के तेज से देवी शक्ति का प्रकट होना तथा महिषासुर दैत्य के वध का लोमहर्षक वर्णन है।

मध्यम चरित्र के ऋषि विष्णु भगवान हैं, देवी महालक्ष्मी हैं, छंद उष्णिक है शक्ति शाकम्भरी, दुर्गा बीज, यजुर्वेद स्वरूप एवं वायु तत्व है। उत्तर चरित्र में रुद्र ऋ षि, महासरस्वती देवता, छंद अनुष्टुप, शक्ति भीमा, भ्रामरी बीज, तत्व सूर्य एवं स्वरूप सामवेद है। इसमें देवताओं द्वारा भगवती आदि शक्ति की विशेष स्तुति, चंड-मुंड, शुंभनिशुंभ, रक्तबीज वध, सुरथ एवं वैभ्य को देवी द्वारा दिए गए वरदान आदि का अद्भुत वर्णन है।

नवरात्रि उपासना नौ दुर्गा का प्रत्यक्ष दर्शन है इसीलिए महर्षि मार्कण्डेय इन्हें नव मूर्तियों के रूप में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री के रूप में व्यक्त करते हुए, कौमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, सुभद्रा एवं चण्डिका नव कन्य ाए ँ तथा ब्रह्माणी, वैष्णवी, रौद्री, माहेश्वरी, वाराही, नारसिंही, कार्तिकी और इन्द्राणी नव शक्त ियाँ बताकर आराधना करने को कहते हैं, शक्ति उपासना एवं सनातन वैदिक धर्म में आस्थावान इन नौ रात्रों में माँ को प्रसन्न करने के लिए विशेष आराधना करते हैं।

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