नवरात्रि में देवी की आराधना

सब कार्य करें सिद्ध

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
ND

ॐ विधुद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां।
कन्याभि: करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।।

हस्तैश्चकृगदासिरखेट विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
विभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गा त्रिनेधां भजे।।

मैं तीन नेत्रों वाली दुर्गा देवी का ध्यान करता हूँ। उनके श्री अंगों की प्रभा बिजली के समान है। वे सिंह के कंधे पर बैठी हुई हैं एवं भयंकर प्रतीत हो रही हैं। हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा भगवती धारण किए हुए हैं।

तलवार एवं ढाल हाथ में लिए खड़ी हुई हैं एवं उनका स्वरूप ‍अग्निमय है तथा चंद्रमा का मुकुट धारण किए हुए है। ऐसी शोभायमान देवी को मैं ध्यान करके नमस्कार करता हूँ।

इस प्रकार भगवती का ध्यान करके नमस्कार करें। वे स्वयं प्रसन्न होकर आपको अभयदान दे देंगी। भगवती स्वयं कहती हैं-
एभि: स्तवैश्च मां नित्यं स्तोष्यतें य: समाहित:।
तस्याहं सकलां बाधां नाशर्शयएयाम्यसंशयम्। ।

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अर्थात जो एकाग्रचित्त होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा स्तवन करेगा, उसकी सारी बाधा मैं निश्चय ही दूर कर दूँगी। भगवती को इस प्रकार मनाने से अनेक प्रकार की बाधा नष्ट हो जाती है एवं जीवन सुखी हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को नौ रात्रि में देवी की आराधना अवश्य करना चाहिए एवं उनके महात्म्य को सुनना चाहिए। देवी का सप्तशती (दुर्गा सप्तशती) द्वारा पूर्ण पाठ करने से एवं उनके चरित्र का गुणगान करने से प्रसन्न होकर भगवती आपको संपूर्ण पापों से छुटकारा दिलाकर मोक्ष प्रदान करती हैं।

यहाँ तक कि लुटेरों से, राजा से, अग्नि से, जल से, शस्त्र से, शत्रुओं से कभी भय उत्पन्न नहीं होगा। भगवती भक्तों के लिए कहती है- विशेषकर चतुर्थी, अष्टमी, नवमी एवं चतुर्दशी को देवी महात्म्य को जो पढ़ेगा, उसके पाप नष्ट हो जाएँगे।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतस:।
श्रोए‍यन्ति चैव ये भक्त्या गम महात्यमुत्तमम। ।

ने तेषां दुष्कृतं किश्चिद्‍ दुष्कृतोत्था न चापद:।
भविष्यति न दारिद्रयं न चैवेष्टवियोजनम्।।

शत्रुतो न भयं तस्य दस्युतो वा न राजत:
न शस्त्रानलतोयौधात्कदाचित्सम्भविष्यति।।

भगवती स्वयं कहती हैं कि जो मेरे (उनके भक्तों के लिए) महात्म्य को पढ़ता है, उनके घर में कभी दरिद्रता नहीं होगी तथा उनको कभी प्रेमीजनों के बिछोह का कष्ट भी नहीं भोगना पड़ेगा। उन पर पापजनित आपत्तियाँ भी नहीं आएँगी। इतना ही नहीं उन्हें शत्रु से, लुटेरों से, राजा से, शस्त्र से, अग्नि से तथा जल की राशि से भी कभी भय नहीं होगा। भगवती के साधक को कभी कोई पीड़ा नहीं सताती।

माँ दुर्गा के उपासक जिस स्थान पर‍ जिस मंदिर में देवी महात्म्य अथवा दुर्गा का पाठ करते हैं, वहाँ देवी हमेशा विराजमान रहती हैं। ये जो नवदुर्गा उत्सव (शरद काल) है, इसमें जो भक्त देवी की आराधना करता है एवं भक्ति भाव से उन्हें पूजता है उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, सारी बाधाएँ खत्म हो जाती हैं। धन-धान्य की प्राप्ति होती है, नि:संतान को संतान भी मिलती है।

माँ भगवती कहती हैं -
यत्रेतत्पठयते सम्यङनित्यमायतने मम।
सदा न तद्धिमोक्ष्यामि सान्निध्यं तत्र में स्थितम्।।

शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
तस्यां ममैतन्महात्मयं श्रञत्वा भक्ति समन्वित:।।

माँ जगदम्बा के महात्म्य को जो भक्त श्रवण करता है, उसके शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित हो जाता है। सर्वत्र शांति कर्म में बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा होने पर माँ भगवती की आराधना करें, महात्म्य को पढ़ें, आपके सब विघ्‍न, भयंकर पीड़ाएँ शांत हो जाएँगी और जो भयंकर स्वप्न हैं वे सभी शुभ में बदल जाएँगे।

शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु महात्म्यं भृणुयान्मम।।
उपसर्गा: शमं यान्ति ग्रहपीडाश्च दारूणा:।
दु:स्वप्नं च नृभिदृष्टं सुस्वप्रभुपजायते।।

इस प्रकार भगवती की आराधना करें। वह जगदम्बा आपको अवश्य सूरत, यश, वैभव, शांति प्रदान करेगी।

ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुशवरा भीतीधरियन्ती शिवां भजे। ।

जो उदयकाल के सूर्यमंडल की-सी क्रांति धारण करने वाली हैं, जिनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं तथा जो अपने हाथों में पाश, अंकुश एवं अभयवर मुद्रा लिए रहती हैं उनको नमस्कार है।

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