या देवी सर्वभूतेषू...

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॥ या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥

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कहत े है ं क ि शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है।...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है।

माँ पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर माँ प्रकृति है। जहाँ भी सृजन की शक्ति है वहाँ प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए माँ को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।

अनादिकाल की परम्परा ने माँ के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। वेदों में दुर्गा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं। फिर भी पुराणकारों ने सभी का संबंध दुर्गा से जोड़ दिया।

माँ पार्वती का मूल नाम सती है। ये सती शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। शक्ति का अब अर्थ ताकत होता है। पुराणों अनुसार माँ पार्वती के पिता का नाम दक्ष प्रजा‍पति और माता का नाम मेनका है। पति का नाम शिव और पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हैं।

इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है। राजा दक्ष प्रजापति को हिमालय इसीलिए कहा जाता है कि उनका राज्य हिमालय क्षेत्र में ही था। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मर्केण्डेय पुराण में मिलती है।

इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं सिद्धियाँ और शक्तियाँ। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियाँ हैं। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत हैं शक्तियाँ। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है।

॥ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥

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