शाक्त सम्प्रदाय में नवदुर्गा का महत्व

शाक्त धर्म का उद्देश्य

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मार्कण्डेय पुराण में परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों की रक्षार्थ बताया गया है। जो देवी की नौ मूर्तियाँ-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।

सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है। शक्ति ही धर्म है। शक्ति ही सत्य है। शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं।

हिंदुओं के दो प्राचीन सम्प्रदाय हैं- शैव और वैष्णव। शाक्त सम्प्रदाय को शैव संप्रदाय के अंतर्गत माना जाता है। शाक्तों का मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं।

सिंधु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लो कप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।

शाक्त सम्प्रदाय में दुर्गा के संबंध में 'श्री दुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें 108 देवीपीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों का खास महत्व है।

अकसर जिक्र होता है कि माँ दुर्गा के साथ भगवान भैरव, गणेश और हनुमानजी हमेशा रहते हैं। प्राचीन दुर्गा मंदिरों में आपको भैरव और हनुमानजी की मूर्तियाँ अवश्य मिलेंगी। दरअसल भगवान भैरव दुर्गा की सेना के सेनापति माने जाते हैं और उनके साथ हनुमानजी का होना इस बात का प्रमाण है कि राम और शिव का काल एक ही रहा होगा। फिर भी यह शोध का विषय है।

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