मुद्दों पर भारी घर

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- अरूण उपाध्याय
वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र में प्रचार के दिलचस्प नजारे और समीकरण देखने को मिल रहे हैं। परिसीमन में नई बनी इस सीट पर प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने नए चेहरों पर दांव खेला है। भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडे अभी दुर्ग नगर निगम की महापौर हैं, लिहाजा वे चुनाव के मुद्दे भी दुर्ग से लेकर गई हैं। दुर्ग को संवारने के बाद वैशाली को संवारने का मुद्दा जोरशोर से उछाल रही हैं। जबकि भिलाई नगर निगम के महापौर का चुनाव लड़ चुके कांग्रेस प्रत्याशी बृजमोहन सिंह मतदाताओं को सेवा का एक मौका देने पर विकास की गंगा बहाने का नारा देकर लुभा रहे हैं।

कांग्रेस ने नई सीट से अपने घर से प्रत्याशी चुनने की बात प्रचारित कर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है, मगर इस पर भाजपा अपनी प्रत्याशी सरोज की छवि को भारी मान कर चल रही है। सरोज भी मतदाताओं के सामने खुद को 'घर की बेटी' बता कर वोट बटोरने की कोशिश में जुटी हुई हैं।

दोनों प्रत्याशी छात्र नेता रहे हैं, इसलिए पुराने अनुभवों का उपयोग प्रचार और रणनीति बनाने में कर रहे हैं। इस सीट में भिलाई नगर निगम के कुछ वार्ड जुड़े हैं। साफ है, राजनीतिक समीकरण पार्षदों के रुख पर निर्भर है। करीब एक लाख 95 हजार मतदाताओं वाले इस इलाके में कहीं- कहीं वर्ग विशेष का दखल है। अतः ये भी वोट प्रभावित कर सकते हैं। पुरानी भिलाई विधानसभा सीट में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाला फरीदनगर वैशालीनगर में जुड़ गया है। इसके बाद भी वहाँ के 'मुस्लिम वोट' का रुख साफ नहीं है। इसी क्षेत्र से महापौर चुनाव में बदरुद्दीन कुरैशी ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में वोट मांगा था और पार्टी के बागी प्रत्याशी बृजमोहन सिंह के कारण वे हार गए थे। फरीदनगर के मतदाता बदली परिस्थिति में क्या करेंगे, कहा नहीं जा सकता।

इसके विपरीत बृजमोहन ने 3 0 हजार वोट बटोर कर महापौर चुनाव में अपनी ताकत दिखाई थी। भाजपा प्रत्याशी अपने कार्य क्षेत्र दुर्ग से आकर वैशालीनगर में अपनी पकड़ बना रही हैं। भाजपा को यकीन है कि उनके द्वारा दुर्ग शहर में किए गए विकास कार्यों से वैशालीनगर के मतदाता प्रभावित होंगे। इसके अलावा महिला प्रत्याशी के रूप में उन्हें मतदाताओं से समर्थन मिल सकता है। भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि महिला प्रत्याशी की वजह से क्षेत्र की महिलाएं बड़ी संख्या में प्रचार में जुट रही हैं। रथ पर सवार सरोज माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। सुबह से रात तक उनका कारवां चलता रहता है।

उनके समर्थन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सिलसिला चल रहा है, वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और सांसद स्मृति ईरानी को लाने की कवायद चल रही है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पैदल घूम- घूम कर मतदाताओं के घरों में दस्तक दे रहे हैं। बृजमोहन को पूर्व साडा अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है और वे आंदोलनों में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। उन्होंने हाइटेक की जगह लो प्रोफाइल पर रहकर प्रचार की रणनीति अपनाई है। कांग्रेस के कार्यकर्ता उनके साथ घूमकर मतदाताओं से व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर वोट मांग रहे हैं। बीच- बीच में सभा कर अपने मुद्दों को उछालते भी हैं।

भाजपा के एक बागी प्रत्याशी एलएम पांडे भी चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने भी वैशालीनगर से टिकट की दावेदारी की थी। उनकी उम्मीदवारी को भाजपा गंभीरता से नहीं ले रही है और मान कर चल रही है कि इससे अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी प्रत्याशी को फायदा होगा। उन्होंने महापौर चुनाव में भी पार्टी से टिकट मांगा था। खास बात यह है कि चुनाव मैदान में भाजपा या कांग्रेस के पास कोई प्रभावी व वजनदार मुद्दा नजर नहीं आ रहा है। प्रचार में कही जा रहीं बातें स्थानीय विषयों को प्रभावित करती हैं। भिलाई के केम्प क्षेत्र को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है, यह भी अब वैशालीनगर विस क्षेत्र में जुड़ गया है।

इस तरह परंपरागत वोटों का लाभ पार्टी को मिल सकता है। कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह है कि कुछ निष्कासित कांग्रेसी अब भाजपा प्रत्याशी के साथ घूमते नजर आ रहे हैं। सुभाष चंद्र बसपा के प्रत्याशी हैं और इसी पार्टी के बागी प्रत्याशी जान निसार अख्तर मैदान में हैं। इस तरह बसपा का समीकरण गड़बड़ा सकता है। तीसरी शक्ति का वजूद नहीं होने की वजह से चुनाव का फैसला भाजपा और कांग्रेस के बीच होना तय है।

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