नेहरूजी और पुस्तकें

Webdunia
ND
एक समय की बात है। नेहरूजी को पुस्तकों से बहुत प्रेम था। वे पुस्तकों की इतनी देखभाल और साज-संभाल रखते थे कि वे वर्षों नई-सी बनी रहती थीं।

एक बार लखनऊ में वे अपने मित्र मोहनलाल सक्सेना के यहाँ ठहरे। स्वभाव के अनुसार उनकी नजर उनकी पुस्तकों की अलमारी पर गई। अलमारी में पुस्तकें बहुत अस्त-व्यस् त, उलटी-सीधी पड़ी देखकर उन्हें बड़ी वेदना हुई। वे उनकी धूल झाड़-पोंछकर उन्हें व्यवस्थित करने लगे ।

जब मोहनलाल वापस आ ए, तो उनसे कहा- 'क्यों भाई मोहनला ल, तुम जब अपने घर की पूजा की मूर्तियो ं, तस्वीरों को साफ कर सकते हो तो पुस्तकों को क्यों नहीं करत े? यदि मूर्तियाँ और तस्वीरें तुम्हें मार्गदर्शन दे सकती है ं, तो पुस्तकों को भी जीवंत प्रतिमा से कम नहीं समझा जाना चाहिए ।'

मित्र से कही गई जवाहरलालजी की यह चुभती हुई उक्ति हम सब के लिए ह ै, जो पुस्तकों की कद्र नहीं करते।
Show comments

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमने तो इन 6 बातों का रखें ध्यान

जीने की नई राह दिखाएंगे रवींद्रनाथ टैगोर के 15 अनमोल कथन

मेरी अपनी कथा-कहानी -प्रभुदयाल श्रीवास्तव

07 मई: गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय रहे रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती

इस चाइनीज सब्जी के आगे पालक भी है फैल! जानें सेहत से जुड़े 5 गजब के फायदे

आइसक्रीम खाने के बाद भूलकर भी न खाएं ये 4 चीज़ें, सेहत को हो सकता है नुकसान