काफी पुरानी बात है। पं. जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान थे। दिल्ली में हिन्दी की प्रतिष्ठित कवयित्री महादेवी वर्मा के सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया गया था। पं. नेहरू भी उस समारोह में सम्मिलित हुए थे ।
उस समारोह में कविता पाठ के दौर भी चले। नेहरूजी ने बड़े मन से पूरे कार्यक्रम का आनंद लिया। जब वे चलने को हुए तो समारोह के आयोजक ने उनसे प्रार्थना क ी, ' इस शुभ अवसर पर कृपया आप भी कुछ बोलिए ।'
नेहरूजी ने तुरंत प्रश्न किय ा, ' क्या मैं भी कविता पढू ँ?'
आयोजक चुप रह गए। फिर नेहरूजी उठकर माइक पर पहुँचे और कहने लग े, ' क्या कहू ँ? महादेवीजी है ं, यहाँ बैठी हैं और जोरों से बैठी हैं ।'
उनके ऐसा कहते ही सारी सभा में ठहाके लगने लगे और इससे पहले कि लोगों की हँसी शांत ह ो, नेहरूजी मंच से उतरकर चल दिए।