बाल दिवस विशेष : गुम हो रहा है बचपन, आखिर कौन है जिम्मेदार?

Webdunia
जितेंद्र वेद
बाल दिवस, हर साल मनाया जाने वाला त्योहार। पर लगता है दुनिया में धीरे-धीरे बच्चों का अकाल पड़ता जा रहा है। पहले बचपन यानी चौदह-पंद्रह साल तक, पर गतिशील समाज में बचपन सिकुड़ता जा रहा है। टीन-एज गोया उम्र के दौर से गायब हो गई है। हर जगह बच्चों में परिपक्वता सालने लगी है।
 
पिछली पीढ़ी जिन बातों के बारे में पंद्रह-सोलह की उम्र में सोचती थी, उन बातों के बारे में नई पीढ़ी दस-ग्यारह में ही रूबरू होने लगी है। हायर सेकंडरी स्कूल की नौवीं कक्षा को पढ़ाते-पढ़ाते कई बार लगता है कि समय ज्यादा ही तेजी से भागने लगा है। कौन जिम्मेदार है इस गुम होते बचपन के लिए?
 
सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है अभिभावकों की, पर दुर्भाग्य से बच्चे अभिभावकों की अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने के माध्यम बन गए हैं। हर अभिभावक अपने बच्चों में अल्बर्ट आइंस्टाइन, राजकपूर, हेमामालिनी या न जाने कौन-कौन खोज रहा है। परिणामस्वरूप बेतहाशा सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं, जिनका उपयोग कम, दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है। नेट पर जो कुछ उपलब्ध है, वह किसी भी बच्चे को कभी भी परिपक्व बना सकता है।
 
दूसरा करियर की चूहा-दौड़ बच्चे को बच्चा रहने ही नहीं दे रही है-वे बेचारे पैदा होने के साथ ही आईआईटी, आईआईएम के साए में सांस लेने लगते हैं। मां-बाप ने उनके दिमाग में एक भूत का प्रवेश करा दिया है- जो रात में भी उन्हें डराता रहता है। वे ख्याली पुलाव पकाकर अपने बचपन को कुचलने के लिए आमादा है।
 
दूसरी जिम्मेदारी है अध्यापकों की, पर इनके लिए बच्चे 'इमेज बिल्डिंग एक्सरसाइज'का हिस्सा बन गए है। हमारा छात्र यदि दिल्ली,बम्बई,खड़गपुर या कानपुर जाएगा तो हमारी छवि तो बन ही जाएगी। हर कंकर को शंकर बनाने का हमें शौक होने लगा है। इस पूरी भागमभाग से बच्चा न तो भाग पा रहा है, न ही अपने-आप को समायोजित कर पा रहा है। हर जगह इंजीनियर बनाने की दुकानें खुल गई हैं, जो 9-10 साल के बच्चों में भ्रम पैदा कर रही है, गोया दुनिया में फकत एक काम बचा है?
 
सरकार कहां कम है- उसने सात के बजाय पूरे पन्द्रह आईआईटी खोलकर बच्चों को ज्यादा ही रेत के महल बनाने के लिए छोड़ दिया है। पहले तो इससे स्तर ही कम हो रहा है, शिक्षा का अवमूल्यन हो रहा है और बच्चों में भ्रम।
 
सबसे ज्यादा तो कमाल फिल्मों ने किया है। इसके कारण उन बातों के बारे में बतियाने लगे हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती मीडिया बच्चों पर ज्यादा से ज्यादा हावी होती जा रही है। बच्चों को काउच पोटेटो में तब्दील किया जा रहा है। समाज के बाजारीकरण के कारण कम्पनियों का ध्यान बेचने पर हो गया। इस बेचने की प्रक्रिया के एकमात्र हथियार है ये नौनिहाल।
 
हर व्यक्ति को कुछ-न-कुछ बेचना है और सबका ध्यान इन बच्चों पर है शायद पालकों की जेब में से धन निकालना इनके ही बस की बात है। स्थिति यहां तक आ गई है कि बच्चे मम्मी-पापा को बतलाते हैं कि क्या खरीदा जाए और कैसे?
 
मेरी समस्या यह नहीं है कि बच्चे इतने समझदार क्यों है बल्कि इतनी जल्दी क्यों है? बचपन एक बार जाने के बाद वापस नहीं आएगा? जिंदगी का शायद सबसे स्वर्णिम अध्याय यही है। इसलिए इसको गवारा होना न जाने क्यों अच्छा नहीं लग रहा।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

ये 10 फूड्स खाकर बढ़ जाता है आपका स्ट्रेस, भूलकर भी ना करें इन्हें खाने की गलती

खाली पेट पेनकिलर लेने से क्या होता है?

बेटी को दीजिए ‘इ’ से शुरू होने वाले ये मनभावन नाम, अर्थ भी मोह लेंगे मन

खाने में सफेद नमक की जगह डालें ये 5 चीजें, मिलेगा परफेक्ट और हेल्दी टेस्ट

Hustle Culture अब पुरानी बात! जानिए कैसे बदल रही है Work की Definition नई पीढ़ी के साथ

सभी देखें

नवीनतम

विश्व जनसंख्या दिवस 2025: जानिए इतिहास, महत्व और इस वर्ष की थीम

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे पर पढ़ें जनसंख्या के प्रति जागरूकता के लिए 25 प्रेरक नारे, कोट्स और अनमोल वचन

सावन में हुआ है बेटे का जन्म तो लाड़ले को दीजिए शिव से प्रभावित नाम, जीवन पर बना रहेगा बाबा का आशीर्वाद

बारिश के मौसम में साधारण दूध की चाय नहीं, बबल टी करें ट्राई, मानसून के लिए परफेक्ट हैं ये 7 बबल टी ऑप्शन्स

इस मानसून में काढ़ा क्यों है सबसे असरदार इम्युनिटी बूस्टर ड्रिंक? जानिए बॉडी में कैसे करता है ये काम

अगला लेख