ईस्टर संडे 2025: ईसा मसीह के पुनर्जीवित होने की घटना का वर्णन

WD Feature Desk
शनिवार, 19 अप्रैल 2025 (15:46 IST)
Easter sunday day 2025: क्रिसमस के दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ। बपतिस्मा डे पर उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से बाप्तिस्मा लिया। पाम संडे पर उन्होंने यरुशलम में प्रवेश किया, जहां उनका स्वागत हुआ। गुड फ्राइडे के दिन उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया और ईस्टर संडे के दिन वे पुनर्जीवित हो गए। जीवित देखे जाने की इस घटना को 'ईस्टर' के रूप में मनाया जाता है।ALSO READ: ईसाई समुदाय में बनते हैं ईस्टर के ये पारंपरिक व्यंजन
 
कहते हैं कि ईसा मसीह सूली पर 6 घंटे लटके रहे और आखिरी के 3 घंटे के दौरान संपूर्ण राज्य में अंधेरा हो गया था। शुक्रवार को ईसा मसीह को सूली दी गई। उस दौरान यीशु के क्रूस के पास उसकी मां, मौसी क्लोपास की पत्नी मरियम, और मरियम मगदलिनी खड़ी थीं। ईसा मसीह को सूली पर से उतारने के बाद उनका एक अनुयायी शव को ले गया और उसने शव को एक गुफा में रख दिया गया था। गुफा के आगे एक बड़ा सा पत्थर रखकर दिया गया था।
 
मरियम मगदलिनी ने रविवार की सुबह जब अन्धेरा था तब वह गुफा पर आई और उसने देखा कि गुफा से पत्थर हटा हुआ है। फिर वह शमौन पतरस और उस दूसरे शिष्य के पास पहुंची और उसने कहा कि वे गुफा से यीशु की देह को निकाल कर ले गए। सभी वहां पहुंचे और उन्होंने देखा की कफन के कपड़े पड़े हैं। सभी ने देखा वहां यीशु नहीं थे। तब सभी शिष्य चले गए, लेकिन मरियम मगदलिनी वहीं रही। 
 
रोती बिलखती मगदलिनी ने गुफा में फिर से अंदर देखा जहां यीशु का शव रखा था वहां उसने श्वेत वस्त्र धारण किए, दो स्वर्गदूत, एक सिरहाने और दूसरा पैताने, बैठे देखे। स्वर्गदूत ने उससे पूछा, तू क्यों विलाप कर रही है? तब मगदलिनी ने कहा कि वे मेरे प्रभु को उठा ले गए हैं। यह बोलकर जैसी ही वह मुड़ी तो उसने देखा कि वहां यीशु खड़े हैं। यीशु ने मगदलिनी से कहा- मैं अपने परमपिता के पास जा रहा हूं और तु मेरे भाइयों के पास जा। मरियम मग्दलिनी यह कहती हुई शिष्यों के पास आई और उसने कहा कि मैंने प्रभु को देखा है।- बाइबल यूहन्ना 20।....ऐसा भी कहा जाता है कि यीशु ने कुछ शिष्यों को भी दर्शन दिए। ALSO READ: ईस्टर संडे का क्या है महत्व, क्यों मनाते हैं इसे?
 
जिस जगह पर ईसा मसीह फिर से जिंदा होकर देखा गए थे उसी जगह पर यह चर्च बना है। इस चर्च का नाम है- चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर। स्कल्प्चर के भीतर ही ईसा मसीह को दफनाया गया था। माना यह भी जाता है कि यही ईसा के अंतिम भोज का स्थल है। वह गुफा और पत्थर आज भी मौजूद है। इसे खाली कब्र कहा जाता है।
 
बाइबल की मान्यता अनुसार ईसा, यह साबित करने के लिए कि वे सचमुच मृतकों में से जी उठे हैं, प्रेरितों को समझाने का कार्य पूर्ण करने और अपनी कलीसिया की स्थापना करने के लिए, 40 दिनों तक इस दुनिया में रहे। इसके बाद वे प्रेरितों को जैतून पहाड़ पर ले गए और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए स्वर्ग की ओर उड़ते चले गए, जब तक कि एक बादल ने उन्हें नहीं ढंक लिया। 
 
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ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कई तथ्‍यों के आधार पर कहा कि जीसस और मोजेज (मूसा) दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई थी। पंटियास जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाने के आदेश दिए थे वह यहूदी नहीं था वह रोम का गवर्नर था और उसके मन में ईसा के प्रति हमदर्दी थी। उसने सूली ऐसे मौके पर दी कि सांझ के पहले, सूरज ढलने के पहले जीसस को सूली से उतार लेना पड़ा। 
 
बेहोश हालत में वे उतार लिए गए। वे मरे नहीं थे। फिर उन्हें एक गुफा में रख दिया गया और गुफा उनके एक बहुत महत्वपूर्ण शिष्य के जिम्मे सौंप दी गई। मलहम-पट्टियां की गईं, इलाज किया गया और जीसस सुबह होने के पहले वहां से निकल लिए और फिर रविवार की सुबह मरियम मग्दलिनी ने उन्हें एक ऐसी कब्र के पास देखा जिसके बारे में कहा गया कि यह ईसा की कब्र है। बाद में ईसा मसीह श्रीनगर पहुंच गए। वहां वे कई वर्षों तक रहे और वहीं रौजाबल में उनकी कब्र है। कहते हैं कि वे 100 वर्ष से ज्यादा जिए थे।

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