प्रभु येशू का जन्म और उनका बलिदान

Webdunia
ईसा मसीह
 
 
'यह मेरा प्रिय पुत्र है, इससे मैं प्रसन्न हूं, इसकी सुनो।' (मत्ती 17:5) मरिया, योसेफ की धर्मपत्नी थी, जो बढ़ई का काम करता था। वे नाजरेथ में रहते थे। एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने उसे दर्शन देकर कहा- 'प्रणाम, कृपापूर्ण, प्रभु आपके साथ है, धन्य हैं आप स्त्रियों में।' 
 
यह सुनकर मरिया चकित रह गई, परंतु स्वर्गदूत ने उन्हें सांत्वना देते हुए यह कहा कि वे ईश्वर की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। 


 
तब मरिया ने उत्तर दिया, 'देखिए, मैं प्रभु की दासी हूं, आपका वचन मुझमें पूरा हो।'
 
और उसी क्षण से वह ईश्वर की माता बन गई। कुछ समय के बाद मरिया और योसेफ अपना नाम लिखवाने बेथलेहेम गए और कहीं भी जगह न मिलने पर वे एक एकांत गुफा में आए, जो शहर से बाहर थी और वह यही स्थान था, जहां येशू का जन्म हुआ। 
 
मरिया ने उसे शिशु वस्त्र में लपेटा और चरनी में लिटा दिया। उसी समय उन्हें स्वर्गदूतों का मधुर गीत, ईश्वर की स्तुति करता सुनाई दिया-
 
'उच्च आकाश में ईश्वर की महिमा, और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति।'
 
पास ही पहाड़ियों के गड़रिये स्वर्गदूतों के निमंत्रण पर नन्हे येशू  की आराधना करने गए। और पूछा जा सकता है कि यह नन्हा येशू कौन है? यह येशू ख्रीस्त दुनिया का मुक्तिदाता है, ईश्वर का पुत्र, सच्चा ईश्वर और सच्चा मनुष्य।
 
संत योहन (1:34) लिखते हैं, 'मैंने देखा और इस बात की साझी देता हूं कि यही ईश्वर का पुत्र है।'
 
मिस्र में कुछ समय रहने के बाद वे नाजरेथ लौट आए, जहां योसेफ फिर से बढ़ई का धंधा करने लगा। जब येशू करीबन 30 वर्ष के हुए तो उन्होंने घर छोड़ दिया। अपना सुसमाचार सुनाना आरंभ किया, आश्चर्य के काम किए और अपनी कलीसिया की स्थापना की।
 
 

संत मत्ती ने लिखा, (4:23) 'येसु, सारे गलीलिया में घूम-घूमकर उनके सभाघरों में उपदेश देते, राज्य के सुसमाचार की घोषणा करते और लोगों के बीच हर तरह की बीमारी और सब प्रकार की दुर्बलताएं दूर करते थे। उनकी प्रसिद्धि सारे सीरिया में फैल गई।'
 
यह अकसर होता है कि जो लोग दूसरों के लिए कुछ अच्छा काम करते हैं, तो उनके अनेक शत्रु हो जाते हैं। उसी तरह से प्रभु येसु ख्रीस्त द्वारा किए जाने वाले भले कामों के कारण उनके भी अनेक शत्रु हो गए थे। उनका शिष्य, जिसका नाम यूदस था, उनके शत्रुओं से यहां तक मिल गया कि वह मात्र चांदी के 30 सिक्कों पर विश्वासघात करने को तैयार हो गया।
 
अब ऐसा हुआ कि पास्का पर्व के प्रीतिभोज के बाद, येशू जैतून पहाड़ पर प्रार्थना करने गए। जब वे प्रार्थना कर रहे थे, यूदस एक भारी भीड़ के साथ वहां आ पहुंचा, जिन्हें उसने यह संकेत दिया था, 'जिसे मैं चूमूं, वही येशू है, उसे पकड़ लेना और बांध लेना।' और येशू के पास जाकर उसने उसे चूमा।
 
येशू ने कहा, 'यूदस! चुंबन देकर मेरे साथ विश्वासघात करते हो?' तब सैनिक उसकी ओर लपके और उन्हें पकड़कर प्रधान याजक और पिलातुस के पास ले गए। वहीं पूरी रात और दिनभर, येशू निष्ठुर सिपाहियों की इच्छानुसार रहा। उन्होंने उसका मजाक उड़ाया, उस पर थूका, थप्पड़ मारे, कांटों का मुकुट बनाकर सिर पर रखा।
 
अंत में पिलातुस ने यहूदियों को खुश करने के लिए, जो कि येशू को क्रूस पर चढ़ाना चाह रहे थे, उनकी क्रूस की मौत की घोषणा की। अपने जख्मी कंधों पर भारी क्रूस उठाए येशू ने कलवारी पहाड़ी की यात्रा शुरू की। वे इतने कमजोर हो गए थे कि तीन बार क्रूस के नीचे गिरे।
 
कलवारी पहुंचने पर येशू के कपड़ों को बड़ी बेरहमी से खींचा गया और क्रूस पर ठोंक दिया गया। उनकी मां, संत योहन और कुछ धार्मिक स्त्रियां वहां थीं। उनके कुछ अनुयायी दूर खड़े होकर सब देख रहे थे। उन्हें अपने स्वयं की सुरक्षा की पड़ी थी।
 
पास खड़े यहूदियों ने उनका निरादर कर हंसी-मजाक उड़ाया, पर येशू ने उनके लिए प्रार्थना करते हुए कहा, 'हे पिता, उन्हें क्षमा कर दीजिए, क्योंकि उन्हें ज्ञात नहीं कि वे क्या कर रहे हैं।' और 3 घंटों की घोर प्राण पीड़ा के पश्चात येशू मर गए। मानव जाति को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने ऐसा किया। येशू की मृत्यु के बाद उनके कुछ शिष्य आए और उन्हें एक कब्र में दफना दिया। तीसरे दिन बड़े तड़के भूकंप आया, येशू महिमा और विजय के साथ कब्र से बाहर आए।
 
जब धार्मिक स्त्रियां आईं तो उन्होंने दो स्वर्ग दूतों को देखा, जिसने उनसे कहा, 'क्या आप येशू को खोज रहे हैं? वे यहां नहीं हैं, वे मृतकों में से जी उठे हैं।' 
 
उसी दिन संध्या के समय शिष्यगण यहूदियों के डर से द्वार बंद करके जमा हुए थे। वहीं येशू आए और उनके बीच खड़े होकर उनसे कहा, 'तुम्हें शांति मिले।' 
 
वे सहम गए और भय के मारे सोचने लगे कि हम कोई प्रेत देख रहे हैं।
 
येशू ने उनसे कहा, 'डरो मत, मैं ही हूं, मेरे हाथ और पैर देखो।' और उनके साथ वे अंतर्ध्यान हो गए।
 
येशू यह साबित करने के लिए कि वे सचमुच मृतकों में से जी उठे हैं, प्रेरितों को समझाने का कार्य पूर्ण करने और अपनी कलीसिया की स्थापना करने के लिए 40 दिनों तक इस दुनिया में रहे।
 
इसके बाद वे प्रेरितों को जैतून पहाड़ पर ले गए और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए स्वर्ग की ओर उड़ते चले गए, जब तक कि एक बादल ने उन्हें नहीं ढंक लिया। तब दो स्वर्गदूत दिखाई दिए और उनसे कहा, 'यही येशू, जिसे तुम अपने बीच से स्वर्ग की ओर जाते देख रहे हो फिर आएंगे, जैसे तुमने उस स्वर्ग की ओर जाते देखा है। तब वे समस्त मानवों का न्याय करेंगे।'
 
Show comments

Vasumati Yog: कुंडली में है यदि वसुमति योग तो धनवान बनने से कोई नहीं रोक सकता

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम जयंती पर कैसे करें उनकी पूजा?

मांगलिक लड़की या लड़के का विवाह गैर मांगलिक से कैसे करें?

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम का श्रीकृष्ण से क्या है कनेक्शन?

Akshaya-tritiya 2024: अक्षय तृतीया के दिन क्या करते हैं?

Aaj Ka Rashifal: पारिवारिक सहयोग और सुख-शांति भरा रहेगा 08 मई का दिन, पढ़ें 12 राशियां

vaishkh amavasya 2024: वैशाख अमावस्या पर कर लें मात्र 3 उपाय, मां लक्ष्मी हो जाएंगी प्रसन्न

08 मई 2024 : आपका जन्मदिन

08 मई 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Akshaya tritiya : अक्षय तृतीया का है खास महत्व, जानें 6 महत्वपूर्ण बातें