कब और कैसे हुआ प्रभु यीशु का जन्म

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खुशी और उत्साह का प्रतीक क्रिसमस ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है। ईसाई समुदाय द्वारा यह त्योहार यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं ‍कि मसीह यीशु का जन्म कैसे हुआ?

अगर इसका जवाब हां है तो यकीनन यह अच्छी बात है और अगर नहीं है तो चलिए हम बताते हैं आपको कि मसीह यीशु का जन्म कब और कैसे हुआ?

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आज से हजारों साल पहले नासरत में गेब्रियल नामक एक स्वर्गदूत ने मरियम को दर्शन दिया और कहा कि तू पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, ‍उसका नाम यीशु रखना।

उस समय ‍मरियम यूसुफ की मंगेतर थी। यह खबर सुनते ही यूसुफ ने बदनामी के डर से मरियम को छोड़ने का मन बनाया। लेकिन उसके विचारों को जानकर उसी स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा कि मरियम पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती है उसे अपने यहां लाने से मत डर। स्वर्गदूत की बात मानकर यूसुफ मरियम को ब्याह कर अपने घर ले आया।

उस समय नासरत रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। ‍मरियम की गर्भावस्था के दौरान ही रोम राज्य की जनगणना का समय आ गया। तब नियमों के चलते यूसुफ भी अपनी पत्नी मरियम को लेकर नाम लिखवाने येरूशलम के बैतलहम नगर को चला गया। सराय में जगह न मिलने के कारण उन्होंने एक गौशाले में शरण ली।

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बैतलहम में ही मरियम के जनने के दिन पूरे हूए और उसने एक बालक को जन्म दिया और उस बालक को कपड़े में लपेटकर घास से बनी चरनी में लिटा दिया और उसका नाम यीशु रखा। पास के गरड़‍ियों ने यह जानकर कि पास ही उद्धारकर्ता यीशु जन्मा है जाकर उनके दर्शन किए और उन्हें दण्डवत् किया।

यीशु के जन्म की सूचना पाकर पास देश के तीन ज्योतिषी भी येरूशलम पहुंचे। उन्हें एक तारे ने यीशु मसीह का पता बताया था। उन्होंने प्रभु के चरणों में गिर कर उनका यशोगान किया और अपने साथ लाए सोने, मुर व लोबान को यीशु मसीह के चरणों में अर्पित किया।

यही वजह है कि हमें क्रिसमस की झांकियों में चरनी, भेड़, गाय, गरड़‍िए, राजा दिखाई देते हैं। क्रिसमस पर तारे का भी बहुत महत्व है। क्योंकि इसी तारे ने ईश्वर के बेटे यीशु मसीह के धरती पर आगमन की सूचना दी थी।

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