Corona मामले में बड़ी खबर, मंदी की चपेट में दुनिया

Webdunia
शनिवार, 28 मार्च 2020 (13:06 IST)
वाशिंगटन। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनिया विनाशकारी प्रभाव का सामना कर रही है और स्पष्ट रूप से आर्थिक मंदी की गिरफ्त में आ गई है। हालांकि, आईएमएफ ने अगले साल सुधार का अनुमान जताया।
 
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हमने 2020 और 2021 के लिए वृद्धि की संभावनाओं का फिर से मूल्यांकन किया है। अब यह स्पष्ट है कि हम मंदी की गिरफ्त में हैं, जो 2009 जितनी या उससे भी बुरी होगी। हमें 2021 में सुधार की उम्मीद है।’
 
जॉर्जीवा आईएमएफ के संचालनक मंडल अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय समिति की बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित कर रही थीं। कुल 189 सदस्यों वाले इस निकाय ने कोविड-19 की चुनौती पर चर्चा की।
 
उन्होंने कहा कि 2021 में सुधार की गुंजाइश तभी होगी जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय हर जगह इस वायरस पर काबू पाने में सफल हो और नकदी की समस्या से कंपनियां दिवालिया न हों।
 
जार्जीवा ने एक सवाल के जवाब में कहा, ’अमेरिका मंदी में है। दुनिया की बाकी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी ऐसा है। और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का एक बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में है। कितना कष्टदायक है? हम 2020 के लिए अपने अनुमानों पर काम कर रहे हैं। नए अनुमानों के अगले कुछ हफ्तों में आने की उम्मीद है।'
 
आईएमएफ प्रमुख ने कहा, ‘विश्व अर्थव्यवस्था के अचानक बंद होने के दीर्घकालिक प्रभावों में एक महत्वपूर्ण चिंता दिवालिया होने और छंटनी के जोखिम को लेकर है। ये न केवल सुधार धीमा कर सकती है, बल्कि हमारे समाजिक ताने-बाने को भी नष्ट कर सकती है।’ उन्होंने कहा कि इससे बचने के लिए कई देशों ने उपाए शुरू किए हैं।
 
आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि उन्हें निम्न आय वाले 50 देशों सहित कुल 81 आपातकालीन वित्तपोषण अनुरोध प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक उभरते बाजारों की कुल वित्तीय जरूरत इस समय 2500 अरब डॉलर है। उन्होंने कहा कि ये अनुमान कम से कम हैं और इस जरूरत को इन देशों के भंडार और घरेलू संसाधनों से पूरा नहीं किया जा सकता है।
 
एक अन्य सवाल के जवाब में जॉर्जीवा ने कहा कि आईएमएफ 2020 के लिए मंदी का अनुमान लगा रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमारा अनुमान है कि यह काफी गहरा होगा और हम देशों से अत्यधिक आग्रह कर रहे हैं कि वे आक्रामक तरीके से कदम उठाएं ताकि हम अर्थव्यवस्था में ठहराव की अवधि को कम कर सकें।’ (भाषा) 

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