नई दिल्ली। कोरोनावायरस संक्रमण की निगरानी प्रणाली को स्थापित करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कम से कम 102 दिन के अंतराल में 2 रिपोर्ट में किसी व्यक्ति के संक्रमित पाए जाने की पुष्टि होने और इस अवधि के बीच उसी व्यक्ति की 1 रिपोर्ट में उसके संक्रमित पाए जाने के मामले को सार्स-सीओवी-2 के पुन: संक्रमण के तौर पर परिभाषित किया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन में यह कहा गया है।
आईसीएमआर के कहा है कि पुन: संक्रमण की पुष्टि के लिए संपूर्ण जीनोम अनुक्रम की भी आवश्यकता होगी। सार्स-सीओवी-2 के पुन: संक्रमण के मामले बहुत कम हैं। ऐसे में, वैज्ञानिकों ने निगरानी प्रणालियों की स्थापना की आवश्यकता के मद्देनजर पुन: संक्रमण की आसान महामारी विज्ञान परिभाषा विकसित की है।
'एपिडेमियोलॉजी एंड इंफेक्शन' पत्रिका में कैम्ब्रिज द्वारा प्रकाशित 'सार्स-सीओवी-2 पुन: संक्रमण : भारत द्वारा विकसित महामारी विज्ञान परिभाषा' अध्ययन के अनुसार सार्स-सीओवी-2 के संभावित पुन: संक्रमण की महामारी विज्ञान परिभाषा विकसित करने और भारत में इसकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए जांच की गई।
वैज्ञानिकों ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 का पुन: संक्रमण एक चिंता की बात है और इसे परिभाषित करने की आवश्यकता है, इसलिए पुन: संक्रमण की परिभाषा विकसित की गई और अभिलेख आधारित, टेलीफोन से किए गए सर्वेक्षण से इन मामलों की मौजूदगी का पता लगाया गया। अध्ययन में कहा गया है कि कम से कम 102 दिन के अंतराल में 2 रिपोर्ट में व्यक्ति का संक्रमित पाया जाना और इस बीच 1 रिपोर्ट में व्यक्ति के संक्रमित नहीं होने की पुष्टि होना सार्स सीओवी-2 के पुन: संक्रमण को परिभाषित करता है।
अध्ययन में कहा गया है कि निगरानी प्रणाली मजबूत करने के लिए सार्स-सीओवी-2 के पुन: संक्रमण की एक महामारी विज्ञान परिभाषा महत्वपूर्ण है। मौजूदा जांच इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद करती है और भारत में सार्स सीओवी-2 से संक्रमित हुए व्यक्तियों में से 4.5 प्रतिशत में पुन: संक्रमण पाया गया है। (भाषा)