Corona से जंग, इंसानियत, समर्पण और त्रासदी की तीन कहानियां...

Webdunia
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020 (19:46 IST)
वैश्विक महामारी कोरोना (Corona) कोविड-19 से लड़ाई के दौरान जहां इंसानियत के चेहरे नजर आ रहे हैं, वहीं अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उका समर्पण उन्हें इंसान से भी ऊपर उठा रहा है। इसी दौर में कुछ ऐसी कहानियां भी सामने आती हैं, जिनके बारे में सुन-पढ़कर आंखें खुद-ब-खुद गीली हो जाती हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही तीन कहानियों के बारे में, जिनमें इंसानियत भी है, समर्पण भी है और त्रासदी भी है...
 
इंसानियत : ऐसी ही एक कहानी है एक पुलिस अधिकारी की, जो जरूरतमंदों के लिए अपने घर से खाना बनवाकर लाते हैं और उन्हें जरूरतमंदों के बीच बांट देते हैं। ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी हैं इंदौर के सूबेदार संजय जादौन, जो अपने घर से जरूरतमंदों के लिए भोजन बनवाकर ला रहे हैं। उन्हें खाने के साथ ही पानी, दूध आदि भी उपलब्ध करवा रहे हैं। अपनी ड्‍यूटी के साथ ही शहर के बंगाली चौराहे पर जादौन अपने सूबेदार साथी काजिम हुसैन रिजवी के साथ यह सामाजिक जिम्मेदारी भी उठा रहे हैं।
 
जादौन के मुताबिक तीन दिन पहले जब वह अपनी ड्यूटी करके घर जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि कई लोगों तक कर्फ्यू के दौरान भोजन नहीं पहुंच पा रहा है, तो उन्होंने निश्चय किया इनके लिए कुछ करना चाहिए। हालांकि उनका मानना है कि शासन-प्रशासन जरूरतमंद लोगों के लिए अच्छी व्यवस्था कर रहा है। 
 
समर्पण की अद्‍भुत मिसाल : दूसरी कहानी एक ऐसे डॉक्टर की जो भाई की मौत के बाद भी ड्‍यूटी करते रहे। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया डॉक्टरों में ऐसे लोग भी हैं जो घर से निकल नहीं रहे हैं। दूसरी ओर, डॉ. सोलंकी जैसे लोग भी हैं, जिनके भाई की मौत हो गई और वे फिर भी ड्यूटी पर आ गए और काम करते रहे।
...और बहन ने किया भाई का अंतिम संस्कार : आपदा के इस दौर में ऐसी घटनाएं भी सामने आ रही हैं, जिनकी सहज ही कल्पना नहीं कर सकते। दरअसल, प्रियंका का भाई पुष्पेन्द्र उर्फ शिवम वर्मा अपने साथी राहुल सिंह के साथ इंदौर से रीवा लौट रहा था। लेकिन, विदिशा के पास एक सड़क हादसे में शिवम की मौत हो गई। 
 
इसी बीच, मृतक के शव को पुलिस ने बहन प्रियंका को सौंप दिया और सतना के नारायण तालाब स्थित मुक्तिधाम में बहन ने अपने भाई का अंतिम संस्कार किया। शिवम इंदौर में एमबीए की पढ़ाई कर रहा था। शिवम के पिता की कई वर्ष पहले मौत हो चुकी है। इस बहन ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जिस छोटे भाई की कलाई पर वह राखी सजाती है, उसे एक दिन अपने ही हाथों से मु‍खाग्नि देनी पड़ेगी। 
 

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