Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

जोखिमभरा सफर कर रहे हैं प्रवासी मजदूर, Social distancing का कोई पालन नहीं

Advertiesment
हमें फॉलो करें जोखिमभरा सफर कर रहे हैं प्रवासी मजदूर, Social distancing का कोई पालन नहीं
, शनिवार, 16 मई 2020 (14:20 IST)
मुंबई। लॉकडाउन के चलते महाराष्ट्र में फंसे प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों तक पहुंचाने के लिए भले ही विशेष श्रमिक रेलगाड़ी और बसें चलाई जा रही हैं, लेकिन ज्यादातर कामगार घर लौटने के लिए ट्रक और टेम्पो जैसे वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे सामाजिक दूरी के नियम की धज्जियां उड़ रही हैं।
प्रवासी श्रमिक ट्रक और टेम्पो को अधिक सुविधाजनक मानते हैं, क्योंकि वे उन्हें उनके संबंधित राज्यों में उनके घर के करीब तक उतारते हैं। इसके उलट बसें उन्हें केवल राज्य की सीमा तक पहुंचाएंगी जबकि ट्रेन उनके गृह राज्य तक जाएंगी, जहां से उन्हें अपने घर पहुंचने के लिए वाहनों की व्यवस्था करनी होगी। हालांकि इन वाहनों में सफर सुरक्षित नहीं है, क्योंकि ये पूरी तरह भरे होते हैं जिसके चलते कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने का जोखिम बहुत ज्यादा होता है।
 
छोटे टेम्पो में करीब 20 व्यक्ति सवार होते हैं जबकि मध्यम आकार के टेम्पो में 25 से 40 लोग सफर कर रहे हैं। छोटे ट्रकों में 40 से 60 लोग जा रहे हैं जबकि बड़े ट्रकों में 100 से या उससे अधिक लोग सफर कर रहे हैं जिनमें से कई ऊपर बैठे होते हैं।
सूत्रों का कहना है कि ट्रक चालक मुंबई से दूरी के आधार पर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड तक के सफर के लिए प्रति व्यक्ति 1,500 से 4,500 रुपए तक वसूल रहे हैं। बातचीत में कई प्रवासी श्रमिकों ने कहा कि वाहन चालक मध्यप्रदेश के लिए 1,500 से 2,000, उत्तरप्रदेश के लिए 3,000-3,500 रुपए और बिहार के लिए 3,000 से 4,500 रुपए ले रहे हैं।
 
कई का कहना है कि उन्हें ट्रक जैसे वाहनों में मजबूरन सफर करना पड़ता है, क्योंकि श्रमिक विशेष ट्रेन में सफर के लिए उनकी अनुमति पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। सूत्रों ने कहा कि ज्यादातर वक्त अधिकारी ट्रक और टेम्पो में अवैध रूप से प्रवासियों को ले जाए जाने की घटना को नजरअंदाज करते हैं, जहां सामाजिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ रही होती हैं। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ पर सेना को खत ल‍िखकर क्‍या कहा ‘आनंद मह‍िंद्रा’