COVID-19 : श्वसन तंत्र के जरिए प्रोटीन देना Corona मरीजों के स्वस्थ होने में मददगार

Webdunia
शुक्रवार, 13 नवंबर 2020 (20:22 IST)
लंदन। अस्पताल में भर्ती कोरोनावायरस (Coronavirus) के मरीज जिन्हें श्वसन तंत्र के माध्यम से प्रोटीन दिया गया, उन्हें संक्रमण के गंभीर लक्षण होने की कम आशंका देखी गई। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह अध्ययन बीमारी के खिलाफ नई उपचार रणनीति में सहायक हो सकता है।

ब्रिटेन के 9 अस्पतालों में कराए गए क्लीनिकल परीक्षण और लांसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित इसके परिणामों के अनुसार प्रोटीन इंटरफेरोन बीटा-1ए की खुराक श्वसन तंत्र के माध्यम से मरीज को देने पर कोविड-19 के उस पर पड़ने वाले रोग संबंधी नुकसानों को कम किया जा सकता है।

साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों समेत इस अध्ययन में शामिल अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन का निष्कर्ष यह साबित करता है कि अस्पतालों में भर्ती मरीजों के रोग से उबरने में यह उपचार लाभदायक हो सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बारे में अभी और अध्ययन करने की आवश्यकता है।

उन्होंने बताया कि प्रोटीन इंटरफेरोन बीटा वायरस संक्रमणों के प्रति शरीर की रोगप्रतिरोधक प्रतिक्रिया देने में मददगार होता है। पहले के अध्ययनों में सामने आया था कि नोवेल कोरोनावायरस इंटरफेरोन बीटा के स्राव को दबा देता है। नैदानिक परीक्षणों में भी यह पता चला कि कोविड-19 के मरीजों में इस प्रोटीन की सक्रियता घट जाती है।

नए अध्ययन में इंफरफेरोन बीटा का सूत्रण एसएनजी001 श्वसन तंत्र के जरिए सीधे फेफड़ों तक पहुंचाया गया तथा इसे कोविड-19 के मरीजों के लिए प्रभावी एवं सुरक्षित पाया गया। इन मरीजों की तुलना उन मरीजों से की गई जिनका उपचार प्लासेबो पद्धति से किया गया।

इस अध्ययन में 101 मरीजों को शामिल किया गया जिनमें से 98 का उपचार किया गया। इनमें से 48 को एसएनजी001 दिया गया जबकि 50 का इलाज प्लासेबो पद्धति से किया गया। परीक्षण की शुरुआत में 66 मरीजों को ऑक्सीजन देने की जरूरत थी।

अध्ययन के मुताबिक, जिन मरीजों को एसएनजी001 दिया गया उनकी नैदानिक स्थिति 15 या 16 दिन के भीतर बेहतर होने की संभावना दो गुनी पाई गई, जबकि प्लासेबो पद्धति से जिन 50 मरीजों का उपचार किया जा रहा था उनमें से 11 की हालत गंभीर हो गई अथवा मृत्यु हो गई।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन में नमूने का आकार कम था अत: इन निष्कर्षों को व्यापक आबादी पर लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर अध्ययन करने की अभी आवश्यकता है।(भाषा)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

मालेगांव विस्फोट मामला : 17 साल बाद सुनवाई पूरी, 323 गवाह, 34 बयान से पलटे, NIA की अदालत ने क्या सुनाया फैसला

BJP सांसद निशिकांत दुबे ने SC पर उठाए सवाल, धार्मिक युद्ध भड़का रहा सुप्रीम कोर्ट, बंद कर देना चाहिए संसद भवन

1 साल तक नियमित बनाए शारीरिक संबंध, मैसेज ने उड़ाए होश, ब्वॉयफ्रेंड निकला भाई

Mustafabad Building Collapse : कैसे ताश के पत्तों की तरह ढह गई 20 साल पुरानी 4 मंजिला इमारत, 11 की मौत, चौंकाने वाला कारण

क्या Maharashtra में BJP पर भारी पड़ेगा हिन्दी का दांव, क्या 19 साल बाद उद्धव और राज ठाकरे फिर होंगे एकसाथ

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: रामबन में बादल फटने से तबाही, कई घर क्षतिग्रस्त, पानी में बहे वाहन

रामबन में बादल फटने से तबाही, 3 की मौत, 100 से अधिक लोगों को बचाया गया

महंगा पड़ा ब्यूटी पार्लर जाना, गुस्से में पति ने काट दी चोटी

लद्दाख में थ्री डी प्रिंटिंग से बन रहे सेना के बंकर

कश्‍मीर में मौसम का कहर, एक तूफान में कश्‍मीरियों की सालभर की कमाई चली गई

अगला लेख