लॉकडाउन में चलाया 600 किमी रिक्शा, 9 रिश्तेदार के साथ पहुंचा 'घर'

Webdunia
शुक्रवार, 5 जून 2020 (12:20 IST)
महोबा। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए राष्ट्र व्यापी 'लॉकडाउन' के दौरान अपने घरों को लौटने वाले लाखों प्रवासी मजदूरों में महोबा जिले के बरा गांव का रामचरन भी शामिल है, जो अपने 9 रिश्तेदारों को रिक्शे में 600 किमी का सफर कर दिल्ली से बरा गांव तक लाया। अब वह इस 'रिक्शे' को लॉकडाउन की निशानी के तौर पर सहेज कर जीवन भर रखना चाहता है।
 
महोबा जिले के कबरई विकास खंड के बरा गांव का रामचरन पेशे से मजदूर है। जनवरी के प्रथम सप्ताह में कैंसर से पत्नी चंदा की मौत के बाद उसके इलाज की खातिर लिए कर्ज के करीब एक लाख रुपये चुकाने की खातिर वह अपने 6 साल के बच्चे को लेकर साढू व भतीजे के परिवारों के साथ बेलदारी की मजदूरी करने दिल्ली चला गया था।
 
लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद उसे गांव वापस आने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ेगी। दिल्ली जाने से पहले वह अपनी पांच साल की बच्ची आरती और 12 साल के बेटे दयाशंकर को 65 वर्षीय मां रज्जी के पास घर छोड़ गया था।
 
रामचरन बताता है, 'पत्नी चंदा काफी समय से कैंसर की बीमारी से ग्रस्त थी और इसी साल जनवरी के प्रथम सप्ताह में इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई।'
 
उसने बताया, 'गांव में साहूकारों से 5 रुपए प्रति सैकड़े ब्याज की दर से एक लाख रुपए कर्ज लेकर उसका (पत्नी) इलाज भी करवाया, लेकिन बाद में पैसे के अभाव में इलाज बंद हो गया और उसकी मौत हो गई।'
 
यही कर्ज भरने के लिए मकर संक्रांति के बाद वह अपने छह साल के बेटे रमाशंकर को लेकर मजदूरी करने दिल्ली चला गया और वहां मकान निर्माण में बेलदारी की मजदूरी करने लगा था।
 
रामचरन ने बताया, 'कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए अचानक 25 मार्च से लागू लॉकडाउन से मजदूरी बंद हो गयी। एक हफ्ते तक तो किसी तरह समय गुजर गया, लेकिन इसके बाद बच्चे तक को भी तीन दिन रोटी नहीं नसीब हुई।'
 
बकौल रामचरन, 'लॉकडाउन घोषित होने पर सभी प्रकार के वाहन बंद हो गए थे और साथी मजदूर पैदल अपने घरों को वापस होने लगे थे। ऐसी स्थिति में मैंने अपने भवन निर्माण के ठेकेदार से मदद मांगी। ठेकेदार ने गांव लौटने के लिए बालू-सीमेंट ढोने वाला एक ठेला रिक्शा मुफ्त में दे दिया।'
 
वह बताता है कि इसी रिक्शे में वह अपने साढ़ू और भतीजे के परिवार को लेकर तथा गृहस्थी का कुछ सामान लादकर 7 मई को दिल्ली से चला और 14 मई को घर पहुंचा।
 
उसने कहा, 'करीब 600 किलोमीटर के सफर में कई जगह पुलिस ने हम पर डंडे भी बरसाए, लेकिन कोसीकलां की पुलिस ने इंसानियत दिखाई। वहां की पुलिस ने सभी नौ लोगों को खाना खिलाने के बाद रिक्शा सहित एक ट्रक में बैठाकर आगरा तक भेजा। फिर आगरा से गांव तक हम रिक्शे से ही घर आए।'
 
वह बताता है कि बारी-बारी से तीनों पुरुष रिक्शा खींचते थे, कई बार परिवार की दो महिलाओं ने भी रिक्शा खींचा था। रामचरन कहता है कि यह रिक्शा लॉकडाउन की निशानी है। यदि यह रिक्शा न होता तो वह परिवार के साथ अपने घर न आ पाता। इसीलिए इसे जीवन भर सहेज कर रखूंगा। (भाषा)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

भाजपा नेता शाजिया इल्मी पर 25000 का जुर्माना, याचिका में छिपाए थे तथ्य

वक्फ बिल से नीतीश कुमार को लगा झटका, मुस्लिम नेता छोड़ रहे हैं पार्टी

जामनगर से द्वारका, 170 किलोमीटर की पदयात्रा पर अनंत अंबानी

बिहार में है शराबबंदी, फिर भी 9 साल में चली गई 190 लोगों की जान

1000 करोड़ की राजस्व वसूली करने वाले इंदौर नगर निगम की गाड़ियां कुर्क

सभी देखें

नवीनतम

UP और दिल्ली-NCR में भूकंप के झटके, नेपाल में भी कांपी धरती

MP : सतपुड़ा अभयारण्य में इंडियन बाइसन को देखकर भागा बाघ, वीडियो वायरल

चीन के पलटवार पर क्या बोले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

शेयर बाजार में भारी गिरावट से कोहराम, निवेशकों के 10 लाख करोड़ रुपए डूबे

मोहम्मद यूनुस से मिलते समय मुस्कुराए PM मोदी, लगे हाथ नसीहत भी दे डाली

अगला लेख