कोरोना आपदा में मिसाल बना बागली का गुरुकुल

Webdunia
मंगलवार, 31 मार्च 2020 (22:25 IST)
-कुंवर राजेन्द्रपालसिंह सेंगर (कुसमरा)
बागली। भारत इन दिनों कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। संपूर्ण देश में लॉकडाउन की स्थिति है। इंदौर इंदौर, भोपाल के साथ ही संपूर्ण देवास जिले में कर्फ्यू जारी है। वहीं नवरात्र भी जारी हैं। शासन के आदेश के बाद से से बड़े-बड़े मंदिरों में भी केवल पुजारी ही दोनों समय की आरती कर रहे है।
 
ऐसे में बागली का गुरुकुल पद्धति पर आधारित आवासीय संस्कृत अध्ययन केन्द्र वाग्योग चेतना पीठम् मिसाल बनकर उभरा है। लॉकडाउन और कर्फ्यू लगने के दौरान यहां पर कुल 49 में से 27 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे थे। जिन्हें मौजूदा परिस्थितियों में घर भेजने के स्थान पर यहीं पर रख लिया गया। साथ ही नवीनतम शिक्षण वर्ष के लिए प्रवेश प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया। 
 
दूसरी ओर जो बटुक विद्यार्थी घर पर थे, उन्हें वहीं रहकर अध्ययन करने और दोनों समय के नियमित कर्मकांड करने के लिए निर्देशित करके होमवर्क सौंपा गया। जिसका मूल्यांकन लॉकडाउन समाप्त होने पर किया जाएगा।  
 
कर रहे हैं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन : पीठम् के अधिष्ठाता मुकुंद मुनि पंडित रामाधार द्विवेदी ने पीएम मोदी की अपील के बाद कोरोना संक्रमण के मद्देजर सोशल डिस्टेंसिग को कठोरता से लागू किया और स्वयं भी उसका पालन आरंभ कर दिया। इन दिनों पीठम् पर बाहरी लोगों का आगमन और बटुक विद्यार्थियों का आश्रम परिसर से बाहर निकलना पूर्णतः प्रतिबंधित है। पालकों को सूचित कर दिया गया है कि ना तो कोई अपने बालक से मिलने आए और ना ही उनकी चिंता करें।
 
बैठते हैं एक-एक मीटर की दूरी पर : कोरोना बचाव की एडवाइजरी जारी होने के बाद से अब सभी विद्यार्थियों को अध्ययन-कर्मकांड शिक्षा एवं दैनिक हवनादि, योगाभ्यास और संध्या के लिए एक-एक मीटर की दूरी पर बैठने के लिए निर्देशित किया गया है।
 
शुरुआती समस्याओं के बाद अब बटुक स्वयं ही एक-एक मीटर की दूरी पर बैठकर दिन भर मास्क पहनकर रहते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए भगवान वागीश्वर विद्या हॉल में स्थापित दुर्गा माता को नवरात्र के दौरान मास्क पहनाया गया है। साथ ही प्रतिदिन औषधियुक्त जल से उनका और भगवान वागीश्वर सहित अन्य देवगणों का अभिषेक किया जाता है। 
 
दिनचर्या प्रातः 4 बजे होती है आरंभ : पीठम् की दिनचर्या प्रातः 4 बजे आरंभ होती है। जिसमें प्रत्येक बटुक को तड़के उठकर स्नानादि से निवृत होकर सर्वप्रथम योगाभ्यास और सूर्य नमस्कार करवाया जाता है। इसके उपरांत कर्मकांड व साहित्य का अध्ययन होता है। इसके उपरांत दैनिक हवनादि क्रियाएं होती हैं।
 
दोपहर में संस्कृत विषयों सहित वेद पढ़ाए जाते हैं। शाम को अध्ययन व संध्या के बाद दैनिक आरती और भोजन के बाद विद्यार्थियों को सोने के लिए भेज दिया जाता है। संक्रमण की एडवाइजरी के बाद अब कोई वस्तु या गेट आदि को छूने के बाद हैंडवॉश और साबुन से हाथ धोना अनिवार्य किया गया है। 
 
चंडी व दुर्गासप्तशती का पाठ व महामृत्युंजय मंत्र का जाप : पीठम् पर कोरोना वायरस संक्रमण के निवारण के लिए नवरात्र के दौरान प्रतिदिन चंडी व दुर्गासप्तशती का पाठ हो रहा है। साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी किया जा रहा है। पीठम् के अधिष्ठाता मुकुंद मुनि स्वयं संस्कृत में कहते हैं कि कोरोना विषाणुना रक्षणार्थ पर्याप्तान्तरेण उपविष्टाः चण्डीपाठकाः मुखपिधानेनयुताः वासन्तीयनवरात्रपर्वणि दुर्गासप्तशतीपाठं कुर्वन्ति, बागली नगरस्थे वाग्योग चेतना पीठम आश्रमे।
 
अर्थात कोरोना वायरस से रक्षा के लिए बागली के वाग्योग चेतना पीठम पर नवरात्र पर्व के दौरान पर्याप्त दूरी बनाकर रखने और मुंह पर कपडा बांधकर चंडी पाठ व दुर्गासप्तशती का पाठ करें। आश्रम के आचार्य पं. ओमप्रकाष शर्मा व पं. कनिष्क द्विवेदी ने बताया कि सनातन वैदिक पूजा पद्धति में षोडषोपचार पूजन का विधान है। जिसमें भगवान के हस्तप्रक्षालन का उल्लेख भी मिलता है।
जात्रफल, कंकोल, तुलसी व दूर्वा आदि औषधियों से हाथ धुलवाने और स्नान करवाने या अभिषेक करने में पंचामृत, गुलाब जल, भस्म, चंदन, केसर आदि का प्रयोग किया जाता है। साथ ही यजमान या पूजन करने वाले के लिए हेमाद्री स्नान का विधान है। 
 
किसी समय अस्तित्व का संघर्ष : बागली अनुभाग मुख्यालय पर स्थित संस्कृत पाठशाला एवं संस्कृत अध्ययन केन्द्र वाग्योग चेतना पीठम् का नाम अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है। यहां से कर्मकांड की शिक्षा ले चुके विद्यार्थियों ने इसकी पहचान राष्टीय स्तर पर बना दी है। बागली की संस्कृत पाठशाला किसी समय अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष भी कर चुकी है। लेकिन अब यह गरीब सवर्ण परिवारों के लिए रोजगार के समुचित अवसर प्रदान करती है।
 
यहां पर जिले सहित मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान व गुजरात के विद्यार्थी पाठशाला में प्रवेश के लिए लालायित रहते हैं। वाग्योग चेतना पीठम की गुरुकुल आधारित शिक्षण प्रणाली ने संस्कृत पाठशाला को नवजीवन दिया है। साथ ही सामान्य वर्ग के आरक्षण के अभाव में गरीब सवर्णों को रोजगार का आधार दिया है।
1951 में रखी गई थी नींव : जानकारी के अनुसार वर्ष 1951 में रियासतकाल में बागली राजपरिवार के पुरोहित रहे स्व. शंकरलाल त्रिवेदी के मार्गदर्शन में संस्कृत पाठशाला की नींव रखी गई थी। उन्होंने कई वर्षों तक शाला में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण भी किया, लेकिन वर्ष 1990 के दशक से पाठशाला में विद्यार्थियों की संख्या कम होने लगी। तब तत्कालीन प्रधान अध्यापक स्व. पंडित शम्भूनारायण पाराशर व सेवानिवृत शिक्षक पंडित रामाधार द्विवेदी ने जनपद शिक्षा केन्द्र परिसर में स्थित स्कूलों से संपर्क किया व बालिकाओं को संस्कृत अध्ययन के लिए प्रेरित किया।
 
इस कार्य में सेवानिवृत शिक्षिका मदनकुंवर सेंगर का भी योगदान रहा। 1998 में पंडित जीवनलाल अग्निहोत्री प्राच्य विद्या संस्थान का गठन हुआ। संस्था के संचालक तत्कालीन संस्कृत पाठशाला के प्रधान अध्यापक पंडित द्विवेदी नियुक्त हुए और संस्था में गुरुकुल आधारित कर्मकांड की शिक्षा आरंभ हुई।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख