Life in the time of corona: माफ़ कीजिए… उपकार कीजिए

नवीन रांगियाल
संसद बंद है। अदालत बंद है। मंदिर- मस्ज़िद बंद हैं। डॉक्टरों पर दबाव बढ़ रहा है। पुलिस पर दबाव बढ़ने लगा है। देश में अस्पताल कम हैं। पलंग बेहद कम हैं। डॉक्टर भी, नर्स भी।

पुलिस और डॉक्टरों के परिवार हैं, उनके बच्चे हैं।

जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, इटली, अमेरिका, चीन जैसे प्रभावित देशों कई महीनों से आइसोलेशन में रह रहे इंडियंस वीडियो बनाकर भारतीयों से घर में रहने की प्रार्थनाएं कर रहे हैं। सैकड़ों लोग कई दिनों से कमरों में अकेले बंद हैं। वे तस्वीरों, वीडियों और रिकॉर्डिंग क्लिप्स की मदद से बता रहे हैं कि किस तरह कोरोना ने इन देशों की देह और आत्मा को बदल कर रख दिया है।

वे त्रासदी की भयावहता बता रहे हैं। मौत के आंकड़े गिना रहे हैं। इटली में डॉक्टर और नर्स 10 या 15 मिनट के लिए अस्पताल में जहां जगह मिल रही वहां झपकी लेकर फिर से लोगों के इलाज में जुट रहे हैं। उनके चेहरे पर मास्क के निशान उग आए हैं।

सरकार शवों को सेना को सौंप रही है। घरवाले मौत के बाद अपनों के शवों को घर नहीं ला रहे हैं। इटली में क़ब्रगाह ख़त्म हो गए हैं। दफ़नाने के लिए जगह नहीं बची है।

ये उस इटली की हक़ीक़त है, जिसे डब्ल्यूएचओ ने स्वास्थ्य सेवाओं में दो नम्बर की रैंकिंग दे रखी थी, उस इटली को कोरोना ने ऑलमोस्ट नष्ट कर दिया है। इसी डब्ल्यूएचओ की स्वास्थ्य रैंकिंग में भारत 112 नम्बर पर है। (इस बात को अंडरलाइन कर लीजिए)

सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रॉडकास्ट मीडिया के प्रमुखों से मुलाकात की और मीडिया से विनती कि की भारतवासियों को सिर्फ और सिर्फ़ घर में रहने के लिए जागरूक कीजिए। स्टे होम का नारा दीजिए। ज़ाहिर है प्रधामनंत्री को इस त्रासदी की विकराल पैमाने का अंदाज़ा हो चुका है। जनता कर्फ्यू की घोषणा में उनके चेहरे पर वो आशंका नज़र भी आई थी।

ध्‍यान से टीवी देखिए, अब मीडियाकर्मियों के शक्लों पर भी वही प्रार्थना, आशंका और शिकन नज़र आ रही हैं।

वायरस की गति को देखिए। वो संख्या को मल्टीप्लाय कर रहा है। राज्य सरकारें 144 और कर्फ्यू लगा रही है। फ्रस्ट्रेशन की शुरुआत होने वाली है। गुस्सा, चिढ़, अवसाद आएगा।

हम भीड़ वाली सभ्यता है। ज्यादातर गरीब है। जागरूक नहीं है।

हम भारतवासियों को सिर्फ़ घर में रहना है। टीवी देखना है, फ़िल्म देखना है, किताबें पढ़ना है, संगीत सुनना है, सेक्स करना है, सोना है, उठना है, खाना बनाना है, खाना है, ठिठौली करना है, फ़ोन पर बात करना है, चैट करना है, वीडियो कॉल करना है। फिर से ख़ुद को दोहराना है, बस, देश को नहीं ले डूबना है।

सिर्फ़ अपने चेहरों के हावभाव बदलना है/ कभी ख़ुश होना है, कभी हैरां होना है।

मैं अपने लिखने का जॉनर बदल रहा हूँ ताकि आपको समझ में आए जो हम सबको समझना है।

माफ़ कीजिए, सिर्फ़ घर मे रहकर उपकार कीजिए, देश पर नहीं तो ख़ुद पर कीजिए।

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