Lockdown suicide: लॉकडाउन में डिप्रेशन’ और फि‍र ‘आत्‍महत्‍या’, लेकिन मां-बाप बचा सकते हैं ‘जिंदगी’

नवीन रांगियाल
कोरोना से बचने के ल‍िए दुन‍ियाभर में लॉकडाउन चल रहा है। लेक‍िन लगातार घर में रहने की वजह से लोगों के मानस‍िक स्‍तर पर भी इसका दुष्‍पर‍िणाम हो रहा है। प‍िछले द‍िनों अलग-अलग राज्‍यों में कई लोगों ने कोरोना के डर से आत्‍महत्‍या कर ली थी। लेक‍िन अब लॉकडाउन बच्‍चों और नौजवानों की मानसि‍क अवस्‍था को प्रभाव‍ित कर रहा है।

दो द‍िन पहले ही मध्‍यप्रदेश के इंदौर शहर की प्रेक्षा मेहता नाम की 25 साल की युवती ने आत्‍महत्‍या कर ली।
डॉक्‍टरों के मुताब‍िक लॉकडाउन की वजह से बच्‍चों पर मानस‍िक असर भी हो रहा है ऐसे में स‍िर्फ पर‍िजन ही है जो बच्‍चों का ख्‍याल रख सकते हैं। उनकी हरकतों पर नजर रखने के साथ ही उनके साथ भावनात्‍मक र‍िश्‍ता कायम कर सकते हैं। ज‍िससे बच्‍चे ड‍िप्रेशन का शिकार न हो।

प्रेक्षा टेल‍ीव‍िजन स‍ीर‍ियल में काम करती थी। वो क्राइम पेट्रोल धारावाह‍िक के साथ ही कई अन्‍य प्रोजेक्‍ट में काम कर चुकी थी। लेक‍िन प‍िछले कई द‍िनों से लॉकडाउन और बाद में काम नहीं म‍िलने की वजह से ड‍िप्रेशन में थी।
उसने इंदौर स्‍थि‍त अपने घर में फांसी लगा ली। घटना के पहले उसने एक सुसाइड नोट भी ल‍िखा था। ज‍ि‍समें उसने कहा था क‍ि

सबसे बुरा होता है सपनों का मर जाना, मेरे टूटे हुए सपनों ने मेरे कॉन्फिडेंस का दम तोड़ दिया है। मैं मरे हुए सपनों के साथ नहीं जी सकती। इस नेगेटिविटी के साथ रहना मुश्किल है। पिछले एक साल से मैंने बहुत कोशिश की। अब मैं थक गई हूं

'क्राइम पेट्रोल' के अलावा प्रेक्षा ने प्रीता 'मेरी दुर्गा' और 'लाल इश्क' जैसे टीवी शो में काम क‍िया था। वो थिएटर के लिए भी काम करती थी। उसने मंटो का लिखा नाटक ‘खोल दो’ प्ले किया था जो उनका पहला प्‍ले था। इसे मिले जबरदस्त रिस्पॉन्स के बाद वो ‘खूबसूरत बहू, बूंदें, प्रतिबिंबित, पार्टनर्स, थ्रिल, अधूरी औरत’ जैसे नाटकों में काम कर चुकी थीं। उन्हें अभिनय के लिए तीन राष्ट्रीय नाट्य उत्सवों में फर्स्ट प्राइज मिला था।

लॉकडाउन के दौरान टीवी एक्टर्स द्वारा की गई यह दूसरी आत्महत्या है, इसके पहले अभिनेता मनमीत ग्रेवाल ने अपने मुंबई स्थित घर पर सीलिंग फैन से लटक कर आत्महत्या कर ली थी।

इधर मुंबई से सटे मीरा-भयंदर इलाके में लॉकडाउन में बाहर घूमने और खेलने का मौका न मिलने के कारण मीरा रोड में 12 साल के एक लड़के ने खुदकुशी कर ली। वो छठी कक्षा का विद्यार्थी था। मीड‍िया र‍िपोर्ट के मुताब‍िक वह 25 मई को ईद मनाने के बाद रात में डेढ़ बजे सोया। उसके पिता बताते हैं कि अगले दिन सुबह छह बजे तक वह अपने कमरे में सोया था। सुबह 7 बजे उसके कमरे में गए, तो उसे पंखे से लटका हुआ देखा।

उसके प‍िता के मुताबकि लॉकडाउन से पहले वो रोज शाम को पार्क में साइकल चलाने और खेलने जाता था। लॉकडाउन के बाद जब घर में रहने लगे तो वो रोजाना बाहर जाने की ज‍िद करता था। लेकिन बार-बार मना करने पर मान गया था। एक बार उसने वॉट्सऐप पर अपने एक दोस्त से घर में बोर होने की बात कही थी। घरवालों को बिलकुल अहसास नही था कि वह बाहर न जान पाने के कारण ड‍िप्रेशन में आ जाएगा। वह बहुत ऐक्टिव था और क्लास का मॉनिटर भी रह चुका था।

क्‍या कहते हैं मनोच‍िक‍ित्‍सक?
मनोचिकित्सक डॉक्टर वीएस पाल के मुताब‍िक

लॉकडाउन का बच्चों पर मानस‍िक असर हो रहा है। बच्‍चे भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। इसल‍िए जल्‍दी ड‍िप्रेशन में आ जाते हैं। लॉकडाउन में बच्चों को लग रहा है क‍ि उनके पर‍िजन उन्‍हें घर में रखने के ल‍िए यह सब कर रहे हैं। ऐसे में बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों के व्‍यवहार में बदलाव आए। वे उदास रहने लगे या क‍िसी अजीब तरीके से व्‍यवहार करें तो तुरंत उनसे बात करें। उनका मन बहलाए। उन्‍हें इनडोर गेम में व्‍यस्‍त रखे। पर‍िजन के ल‍िए जरुरी है कि‍ वे बच्‍चों पर ध्‍यान रखे। उनके साथ भावनात्‍मक स्‍तर पर र‍िश्‍ता बनाए

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