क्यों चल रहा है कालेधन को सफेद करने का कारोबार

Webdunia
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016 (12:31 IST)
नई दिल्ली। सरकारी एजेंसियों का कहना है कि काले धन को सफेद बनाने के काम में जुटे बैंक के अधिकारियों, कर्मचारियों ने उन ग्राहकों के केवाईसी फॉर्मों का जमकर इस्तेमाल किया जिन्होंने बैंक में खाता खुलवाने के बाद महीनों तक उनका मुंह नहीं देखा। ये खाते ऐसे थे जिनमें एक रुपया तक जमा नहीं किया गया था लेकिन नोटबंदी के बाद से काले धन को सफेद करने का कारोबार आखिर चल निकला है। ऐसा लगता है कि देश में बैंकों की अगुवाई में ही काले को सफेद बनाने का अभियान चलाने की नेताओं, दलालों और बैंककर्मियों ने एक समानांतर व्यवस्था कायम कर रखी है।
आम जनता की परेशानियों को बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक की हर रोज बदलती नीतियां और घोषणाएं भी जिम्मेदार रही हैं। कालेधन को पकड़ने के लिए सरकार डाल-डाल तो नोट के सौदागर पात-पात साबित हुए और ये आज भी अपना काम चला रहे हैं। सरकार की एजेंसियां अगर काले धन को पकड़ने का एक तरीका खोजती हैं तो उसे छिपाने वाले दस तरीके निकाल लेते हैं। एटीएम और बैंकों की कतार में लगने वालों को जब बैरंग लौटना पड़ता है तो बरबस ही उनके दिमाग में यह सवाल आ जाता है कि नोट अगर छप रहे हैं, बैंकों-एटीएमों में आ रहे हैं तो जा कहां रहे हैं?
 
सरकार के फैसलों ने भी आग में घी डालने का काम किया। जब लोगों को जरूरत सौ, पचास और छोटे नोटों की है, तो एटीएम से दो हजार और पांच सौ के नोट निकलते रहे। इन नोटों को छोटी रकम की शक्ल में होना चाहिए था लेकिन हफ्तों बैंकों, एटीएम से दो हजार मूल्य के नोट निकलते रहे।
 
चेन्नई शहर में पिछले दिनों कई ठिकानों पर छापे पड़े और 100 करोड़ से ज्यादा की रकम मिली। सवा सौ किलो से ज्यादा सोना भी जब्त हुआ। यह नोटबंदी के बाद एक शहर से यह सबसे बड़ी बरामदगी थी।
 
नोट माफिया, मुख्यमंत्री के लिए प्रसाद पहुंचाने वाले मंदिर के ट्रस्टी, पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार और शहर में नोट पहुंचाने वाले एजेंट इसका हिस्सा थे। शहर के अलग-अलग रिहायशी इलाकों में इन्होंने फ्लैट किराए पर लिए और उन्हें नोटों से भर दिया। जब यहां छापे पड़े तो पांच सौ और हजार के पुराने नोटों के साथ-साथ दो हजार के नए नोट भी मिले। 106 करोड़ में से 10 करोड़ रुपए नए नोटों में थे। अगर चालीस हजार आदमी एटीएम मशीन के सामने घंटों लाइन लगाकर ढाई हजार के हिसाब से नए नोट निकालें तब भी यह आंकड़ा दस करोड़ तक पहुंचता है।
 
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स के एक अफसर का कहना है कि मुंबई में पूरा सिंडिकेट चल रहा है। यह सिंडिकेट हजार और पांच सौ के पुराने नोटों को दो हजार के नए नोटों से बदलता है और इसके एवज में पैंतीस फीसदी का कमीशन लेता है। इसे पकड़ने के लिए आयकर विभाग के अधिकारी खुद ग्राहक बनकर गए। उन्होंने सिंडिकेट के लिए जमीन पर काम करने वाले यानी कि घूम-घूमकर पुराने नोट बदलवाने वाले लोगों को खोजने वाले एजेंटों से संपर्क किया। एक करोड़ के पुराने नोटों के बदले 65 लाख के नए नोट देने पर डील तय हुई लेकिन डील का पैसा देते वक्त उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया गया। करीब तीस लाख कैश उसी वक्त पकड़ा गया था।
 
ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे लोगों के पास बदलने के लिए इतने नए नोट आ कहां से रहे हैं? नागपुर और कोलकाता में ऐसा करने वालों ने बड़े अनोखे तरीके से इस काम को अंजाम दिया। अचानक ही एक दिन एक महिला के खाते में 3.29 करोड़ रुपए जमा हो गए और उसे पता भी नहीं चला। इस महिला के माता-पिता के खातों में भी 96 लाख रुपए जमा करवाए गए थे जिसकी जानकारी उनको नहीं थी। आयकर विभाग ने इसकी जांच की तो विभाग के अफसर हैरान रह गए। 
 
उन्हें पता लगा कि इस महिला ने कई साल पहले अपने पैन कार्ड और बैंक खाते की फोटोकॉपी कोलकाता में किसी को भेजी थी। उस महिला को इसके बारे में याद तक नहीं था लेकिन उन्हीं दस्तावेजों के सहारे नागपुर में रहने वाली महिला का कोलकाता में खाता खोल दिया गया। फिर उसमें करोड़ों रुपए भी जमा कर दिए गए। न जाने कितने लोग पैन कार्ड या खाते की फोटो कॉपी दोस्तों, रिश्तेदारों या मोबाइल सिम लेते वक्त दुकानदार तक को दे देते हैं। ऐसे दस्तावेजों के आधार पर अब काला कारोबार चल रहा है।
 
बैंक के मैनेजर,  कर्मचारियों ने उन ग्राहकों के केवाईसी फॉर्मों का जमकर इस्तेमाल किया जिन्होंने बैंक में खाता तो खुलवा लिया लेकिन महीनों तक उनका मुंह नहीं देखा। पंजाब के संगरूर में पुराने नोट बदलने के लिए मनरेगा के 150 मजदूरो के बैंक खातों का इस्तेमाल किया गया। इन 150 खातों में 24 और 25 नवंबर को पांच-पांच हजार और फिर एक दिसंबर को चौबीस हजार रुपए जमा करवाए गए। जिस दिन पुराने नोट जमा करवाए गए उसी शाम इन खातों से नए नोट निकाल लिए गए।  
 
बेचारे अनपढ़ मजदूरों को यह समझाया गया कि मोदी सरकार नई योजना ला रही है। नई स्कीम का लालच देकर पैसा निकालने वाली पर्ची पर मजदूरों का अंगूठा लगवाया गया। जब एक मजदूर के पढे-लिखे बेटे ने अपनी मां की पासबुक देखी तो पासबुक की एंट्री से इस गोरखधंधे का पता चला। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में एक चाय दुकानदार के जनधन खाते में 12 नवंबर को 27 लाख रुपए जमा कराए गए। अब इनकम टैक्स ने इस दुकानदार को नोटिस भेज दिया है और मामले की जांच हो रही है।
 
बेगूसराय, बिहार में एक गरीब कारीगर के परमानेंट अकाउंट नंबर से करोड़ों का कारोबार हो गया। जब इनकम टैक्स ने नोटिस भेजा तो कारीगर के होश उड़ गए। इन घटनाओं से इस बात का साफ पता लगता है कि नोटों की अदला-बदली के लिए अनपढ़ गरीब मजदूरों के खातों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
हैदराबाद शहर में नोट बदलने का सिंडिकेट डाक सेवा का एक अफसर चलाता था। शहर के डाकघरों में नोटों की अदला-बदली के लिए इस अफसर को करीब तीन करोड़ रुपए के नए नोट मिले जिन्हें हैदराबाद के अलग-अलग डाकघरों तक पहुंचाया जाना था। लेकिन अफसर ने तीन में से 2.95 करोड़ रुपए डाकघर के बजाय कहीं और बांट दिए और ऐसे लोगों से बीस फीसदी का कमीशन खाया। रिकॉर्ड पर दिखाया कि ये नोट शहर के डाकघरों से आम लोगों में बांटे गए। बाद में, सीबीआई ने इस रैकेट के मास्टरमाइंड के. सुधीरबाबू को गिरफ्तार किया।
 
देश में विभिन्न बैंकों की करीब एक लाख से ज्यादा शाखाएं हैं। इनमें भी नोटों की अदला-बदली में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। जानकार बताते हैं कि बैंक के मैनेजर और कर्मचारियों ने उन ग्राहकों के केवाईसी फॉर्मों का इस्तेमाल किया जिन्होंने बैंक में खाता तो खुलवा लिया था लेकिन महीनों तक एक भी रुपया जमा नहीं कराया। विदित हो कि हर बैंक में ऐसे खातों की संख्‍या पचास फीसदी तक होते हैं। नोटों की अदला बदली के लिए सिर्फ दस्तावेज की फोटो कॉपी देनी जरूरी थी जोकि हर किसी के पास आसानी से उपलब्‍ध थी।
 
बिहार के एक सरकारी बैंक की शाखा के मैनेजर ने तो 25 फीसदी कमीशन के बदले एक व्यापारी के एक करोड़ रुपयों को बदलने का एक बेहद सीधा-साधा तरीका बताया। घोटाला करने वाले बैंकों में देर शाम ग्राहकों के केवाईसी फॉर्मों की फोटोकॉपी निकाली जाती थीं। फिर इन फॉर्मों के आधार पर नोट बदले जाते थे। एक बैंक मैनेजर अपने बैंक के ग्राहकों के केवाईसी फॉर्मों को दूसरे बैंक के मैनेजर तक पहुंचाता था और इस तरह दो हजार-चार हजार कर करोड़ों पुराने नोट नए नोटों में बदलते चले गए।
 
दरअसल नोटबंदी से सबसे ज्यादा मुनाफा बैंक के कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों ने ही कमाया। बिहार के एक सरकारी बैंक की शाखा की बात करें तो उसके मैनेजर ने 25 फीसदी कमीशन के बदले एक व्यापारी के एक करोड़ रुपयों को बदलने का एक बेहद सीधा-साधा तरीका बताया - अपने आस-पास के भरोसे के लोगों के पैन कार्ड और पहचान पत्र की फोटो कॉपी इकट्ठा कर लीजिए। फिर इन लोगों के नाम पर नए खाते खोलिए और हर खाते में ढाई लाख रुपए से कम रकम डालिए। इन सभी खातों की पासबुक अपने पास रखिए और जब मामला ठंडा होगा तो धीरे-धीरे इनमें से पैसे निकालते रहिए।
 
देश में करीब पंद्रह लाख करोड़ रुपए के पुराने पांच सौ और 1000 के नोट सर्कुलेशन में थे जिसमें से करीब तेरह लाख करोड़ रुपए के पुराने नोट आरबीआई के पास वापस आ चुके हैं। इसका मतलब है कि ज्यादातर लोगों ने अपनी ब्लैक मनी को व्हाइट करने के लिए किसी ना किसी तरीके से बैंक खाते में जमा कर दिया है। आयकर विभाग के एक वरिष्ठ अफसर के मुताबिक इन तेरह लाख करोड़ में से करीब छह लाख करोड़ रुपए की जांच शुरू हो चुकी है। दरअसल तीस दिन में डेढ़ करोड़ से ज्यादा रकम जमा करानेवाले चार लाख परिवार या चार लाख कंपनियां हैं। 
 
आयकर विभाग सबसे पहले इन्हीं लोगों की जांच कर रहा है और इसके बाद उन खातों की जांच होगी जो अचानक खुले और लबालब हो गए। गड़बड़ी करने वाले बैंकों को भी गिरफ्त में लाने की तैयारियां चल रही हैं लेकिन क्या यह सब इतना सरल है? अलग-अलग शहरों से पकड़े गए नए नोटों में सीरियल नंबर होते हैं और इन नंबरों से यह आसानी से पता चल सकता है कि ये नोट किस बैंक में पहुंचाए गए थे। नोटों पर लिखा यह नंबर बैंक की उस शाखा तक पहुंचा देगा जहां से ये बांटे गए। 
 
अब अगर इस बारीकी से जांच हुई तो सब फंसेंगे ही इसलिए वित्त मंत्री से लेकर वित्त सचिव तक सब कह रहे हैं कि बैंक खाते में पैसा जमा करा देने का मतलब यह नहीं है कि काला धन सफेद हो गया, ब्लैक मनी व्हाइट तभी होगी जब इस ब्लैक मनी की आमदनी का जरिया बता पाएंगे लेकिन इस कवायद के भी पूरी तरह से सफल होने के कितने अवसर हैं क्योंकि लालच और भ्रष्टाचार से वे लोग भी पथभ्रष्ट हो सकते हैं जिनके हाथों में जांच है और वह भी कुछ ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं जिस तरह से बैंकों में हुआ है। क्या इसे नोटबंदी के अभियान की शुरुआती असफलता कहा जाए या नहीं, यह फैसला करना आपके विवेक पर छोड़ा जाता है।
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