लगभग दो महीने से जारी हमारी इस ब्लॉग-चर्चा में हिंदी के बहुत सारे ब्लॉगों के बारे में बातचीत हुई, लेकिन ब्लॉग-जगत के इस पहलू पर हम पहली बार नजर डाल रहे हैं। -‘पहल ू ’ के विभिन्न पहलुओं को जानने-समझने के लिए आज हम चलते हैं, चंद्रभूषण के ब्लॉग पर ।
पिछले कुछ समय से हिंदी में सक्रिय यह ब्लॉग उम्दा गद्य लेखन और उससे भी बेहतरीन कविताओं के लिए पढ़ा जा रहा है। दिल्ली निवासी चंद्रभूषण पेशे से तो पत्रकार हैं, लेकिन तबीयत से कवि-हृदय हैं। उनका अब तक प्रकाशित एकमात्र कविता संग्रह ‘इतनी रात ग ए ’ काफी चर्चित रहा है ।
बात कहने का अपना खास अंदाज उनके ब्लॉग पर भी नजर आता है। रोजमर्रा की जिंदगी की मामूली बातों से लेकर, साहित्य, राजनीति और कला की गंभीर चिंताओं तक विभिन्न विषयों के ऐसे पहलुओं पर ‘पहल ू ’ नजर डाल रहा है, जो एक सामान्य लेखन में अदेखा ही रह जाता है। बहुत से किस्से कथा के शिल्प में बुने जा रहे हैं। अभी हाल की एक पोस्ट बियाहुती को दे देना में उनकी इस शैली की बानगी देखी जा सकती है -
बात कहने का अपना खास अंदाज उनके ब्लॉग पर भी नजर आता है। रोजमर्रा की जिंदगी की मामूली बातों से लेकर, साहित्य, राजनीति और कला की गंभीर चिंताओं तक विभिन्न विषयों के ऐसे पहलुओं पर ‘पहलू’ नजर डाल रहा है।
ससुराल में देवरों-देवरानियों के राज में दाने-दाने और सूत-सूत की मोहताज हुई बटेस्सर पंडित की ब्याहता अपना पहाड़ जैसा बाकी जीवन काटने मायके चली गई ं, जहां बटेस्सर पंडित के लिंग परिवर्तन के बाद भी उन्हीं के नाम का सिंदूर पहनते उनकी मृत्यु हुई। उनके पति के साथ-साथ खुद उनके नाम की विस्मृति में भी पूरे गांव की भागीदारी रह ी, लेकिन गांव की औरतें किसी ऐंठन की शक्ल में उनके दुख की छाप उनकी मौत के काफी साल बाद तक बचाए हुए थीं ।
सबकुछ के बावजूद ‘पहल ू ’ की सबसे बड़ी खासियत वो रचनाएँ हैं, जो कविता के शिल्प में कही गई हैं -
रोशनियाँ बहुत तेज है ं और तुम्हारे सो जाने के बाद भ ी नींद की छाती पर मूँग दलत ी ये यहीं पड़ी रहती है ं फिर भी कैसा चमत्कार क ि बची रह जाती ह ै सलेटी अँधेरों वाल ी कोई कुहासे भरी रात
एक और कविता - भीड़ में दु:स्वप्न :
शाम का वक्त है तुम चौराहे पर पहुँच चुकी हो वहाँ एक भीड़ जमा हो रही है तुरत-फुरत कुछ देख लेने के लिए पंजों पर उचकते हुए लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं
WD
अपने ब्लॉग और हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में उन्होंने वेबदुनिया से लंबी बातचीत की। यह ब्लॉग शुरू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य उन बहुत सारी बीती बातों, अनुभूतियों और स्मृतियों को शब्दों में ढालना था, जिन्हें कहने के लिए कोई और मंच नहीं होता। यह मंच अपना था, यहाँ कुछ भी, कैसे भी कहा जा सकता था। चंद्रभूषण अपने पसंदीदा विषयों विज्ञान और दर्शन के बारे में बात करना चाहते थे, और उन कविताओं के बारे में भी, जो कहीं और नहीं छपतीं, आमतौर पर पढ़ी भी नहीं जातीं।
कुछ मित्रों की मदद और प्रेरणा से ब्लॉग का मोर्चा खुला और कलम चल पड़ी ।
चंद्रभूषण कहते हैं कि ब्लॉग आधुनिक विज्ञान का बहुत सशक्त आविष्कार है। इराक युद्ध के समय वहाँ युद्ध की लपटों में घिरी एक लड़की उस जिंदगी के बारे में लिख रही है और उसका ब्लॉग पूरी दुनिया में पढ़ा जा रहा है। हालाँकि अभी हमारे देश में उसका वैसा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। लेकिन आने वाले समय में इस माध्यम के और विकसित होने की उम्मीद की जानी चाहिए।
चंद्रभूषण की ये तमाम अपेक्षाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। हिंदी ब्लाग का संसार अपनी गति से बढ़ेगा और आकार लेगा। फिलहाल आप इस ‘पहलू’ से अछूते न रहें, क्योंकि ‘पहलू’ बहुत बार कुछ ऐसे पहलुओं को देख पा रहा है, जिसे शायद आप और हम न देख पाएँ।
वे कहते हैं कि ब्लॉग ने ऐसे बहुत सारे लोगों को अभिव्यक्ति का प्लेटफॉर्म दिया, जिनकी लिखित अभिव्यक्ति चिट्ठियों के अलावा शायद ही कुछ और होती हो। हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया अभी जिस अवस्था में है, उसके ढेरों सकारात्मक और नकरात्मक पहलू हैं। विविधतापूर्ण अभिव्यक्तियों के साथ-साथ एक सच यह भी है कि वाहवाही और एक-दूसरे के नकारात्मक पहलुओं पर ताली बजाने का काम यहाँ भी कम नहीं होता। लेकिन इन्हीं सबके बीच अनुपम गद्य और कविताएँ लिखी जा रही हैं। अशोक पांडेय, अनिल रघुराज, प्रमोद सिंह, अभय तिवारी, अविनाश और रवीश कुमार के ब्लॉग उनके पसंदीदा ब्लॉगों में से हैं ।
चंद्रभूषण ब्लॉग को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ज्यादा महत्वपूर्ण एक माध्यम के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि टेलीविजन की तुलना में बहुत-सी अतार्किक और अनुपयोगी चीजें ब्लॉग में ज्यादा समय तक टिकी नहीं रह सकेंगी। लोग उसे नकार देंगे, उसे पढ़ा नहीं जाएगा। कालांतर में सार्थक बौद्धिक, वैचारिक और अर्थपूर्ण चीजें ही टिकी रहेंगी और मजबूत होंगी। हिंदी ब्लॉग का अपना संसार धीरे-धीरे निर्मित होगा, उसकी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताएँ और सवाल होंगे ।
हिंदी भाषा में ब्लॉगिंग का विस्तार हिंदी को भी बढ़ाएगा। ऐसी बहुत-सी विधाएँ जो लुप्त हो रही हैं, ब्लॉग के माध्यम से पुनर्जीवित होंगी। चंद्रभूषण कहते हैं कि विदेशों में रह रहे और हिंदी भाषा से जुड़े लोगों को भी यह काम करना चाहिए कि वे हिंदी भाषा और ब्लॉगिंग के विस्तार के लिए और प्रयास करें। उनका कहना है कि भारत में अपने समय की ऐसी 100 महत्वपूर्ण किताबों की सूची बनाई जानी चाहिए, भले ही वो क्लासिक हों या न हों, और उन्हें नेट के माध्यम से उपलब्ध करवाया जाना चाहिए। इस विधा का इस्तेमाल करते हुए प्रचलित लाइफ-स्टाइल के समानांतर एक नई जीवन-शैली की बातें हों, रचनात्मकता के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श हो, वैज्ञानिकों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से अंतरंग बातचीत हो ।
चंद्रभूषण की ये तमाम अपेक्षाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। हिंदी ब्लाग का संसार अपनी गति से बढ़ेगा और आकार लेगा। फिलहाल आप इस ‘पहल ू ’ से अछूते न रहें, क्योंकि ‘पहल ू ’ बहुत बार कुछ ऐसे पहलुओं को देख पा रहा है, जिसे शायद आप और हम न देख पाएँ ।