समर्पण कर देती तो आंतें तो बाहर नहीं आती...

दिल्ली गैंग रेप पर एक महिला का शर्मनाक बयान

स्मृति आदित्य
बलात्कार से भी अधिक शर्मनाक और घिनौना बयान दिया है एक महिला कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनीता शुक्ला ने। इस वक्त उस पर कुछ लिखते हुए भी कष्ट है कि क्या एक 'महिला' ऐसा सोच सकती हैं?

पुलिस विभाग, खरगोन के 'महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता' विषय पर आयोजित सेमिनार में महिला कृषि वैज्ञानिक अनीता शुक्ला ने दिल्ली गैंग रेप पर युवती को जिम्मेदार ठहराया और निहायत ही घटिया भाषण दिया कि, महिलाएं ही पुरुष को उकसाती हैं।

अनीता शुक्ला ने सवाल उठाया कि रात 10 बजे लड़की अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ क्या कर रही थी? रात को बाहर ब्वॉयफ्रेंड के साथ घुमेगी तो यही होना है। उसके बाद तो अनीता ने सारी हदें पार कर दी और कहा कि 'हाथ-पैर में दम नहीं और हम किसी से कम नहीं' की तरह लड़की पेश क्यों आई? जब 6 लोगों से घिरी थी तो उसे चुपचाप आत्मसमर्पण कर देना था। कम से कम आंतें तो बाहर नहीं आती...

मैं अब भी हैरान हूं कि आखिर एक पढ़ी-लिखी महिला इस हद तक गिरे हुए बयान कैसे दे सकती हैं?? क्या उन्हें नहीं प‍ता कि आत्मसमर्पण की सलाह देकर वे अपनी ही गंदी सोच का चरित्र पेश कर रहीं है। उन्हें क्या यह भी नहीं पता कि आत्मसमर्पण के बाद आरोपियों के विरूद्ध केस बनता ही नहीं है। पुलिस जिस तरह के आक्रामक सवाल करती है वह भी बलात्कार से कम नहीं होते हैं। आत्मसमर्पण के बाद तो केस ही उलट जाता कि लड़की स्वयं शामिल थीं। समझ में नहीं आता कि जब तक उस पीड़‍िता की वास्तविक स्थिति नहीं जानते हैं तब तक मुंह खोला ही क्यों जाता है?

शर्म इस बात पर भी आ रही है कि सेमिनार में मौजूद ज्यादातर अफसर इस भाषण पर मौन थे। 'महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता' विषय पर बोलते हुए एक महिला ही अगर इतनी संवेदनहीन हो सकती है तो हम किस से क्या उम्मीद रखें?

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