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युद्ध की दहलीज पर अमेरिका और ईरान

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अनिल जैन

अमेरिका ने ईरान पर बम बरसाने का इरादा फिलहाल भले ही मुल्तवी कर दिया हो, मगर दोनों देशों के बीच अशुभ टलने के अभी कोई आसार नजर नहीं आते। फारस की खाड़ी में अत्याधुनिक परमाणु मिसाइलों से लैस विशालकाय अमेरिकी नौसेना के बेड़े और ऊपर आकाश में लगातार मंडरा रहे लडाकू विमान इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि अमेरिका और ईरान लगभग तीन दशक बाद एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं।
 
दोनों के बीच पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ते जा रहे तनाव के बीच ताजा मामला है ईरान द्वारा अमेरिका के जासूसी ड्रोन को मार गिराए जाने का। ईरान का दावा है कि अमेरिकी ड्रोन ईरानी हवाई क्षेत्र में मंडरा रहा था, जबकि अमेरिका ने इस दावे को खारिज कर दिया है। कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने ईरान पर उसके इलाके में मौजूद तेल टैंकरों पर हमला करने का आरोप लगाया था। फिलहाल अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने की दुस्साहसपूर्ण कार्रवाई ईरान की बढ़ी हुई तकनीकी और सामरिक क्षमताओं की ओर इशारा करती है।
 
हालांकि अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ने भी और ज्यादा दुस्साहसी कार्रवाई करने का फैसला कर लिया था, जिसके तहत कुछ ईरानी ठिकानों पर बम बरसने वाले थे लेकिन बिलकुल आखिरी क्षणों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना इरादा बदलकर तात्कालिक तौर पर दुनिया को युद्ध से बचा लिया। हालांकि वे अपने इस इरादे पर कब तक कायम रहेंगे, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि उनका बयान आया है कि अमेरिका को कोई जल्दी नहीं है।
 
ट्रंप ने यह भी कहा है कि दुनिया की सबसे बेहतरीन उनकी सेना हर चुनौती का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है। करीब दो महीने पहले भी ट्रंप ने ईरान को पूरी तरह बर्बाद करने की धमकी देते हुए कहा था कि अगर युद्ध हुआ तो ईरान का औपचारिक तौर पर अंत हो जाएगा। 
 
अमेरिका ने ईरान पर बम बरसाने का इरादा फिलहाल भले ही मुल्तवी कर दिया हो मगर उसने ईरान की हथियार प्रणालियों पर साइबर हमले शुरू कर दिए हैं। रॉकेट और मिसाइल सिस्टम को नियंत्रित करने वाली कंप्यूटर प्रणालियों को निशाना बनाया गया है। कहा जा रहा है कि ये साइबर हमले कई हफ्तों तक जारी रहेंगे। इन हमलों के बाद इस प्रणाली पर ऑनलाइन काम करना बंद हो जाएगा और इसका संचालन ऑफलाइन ही किया जा सकेगा। 
 
युद्ध से किसी भी मसले का हल नहीं निकल सकता, यह सार्वभौम सत्य है जो सदियों से दोहराया जा रहा है। इस सत्य को परमाणु हथियारों वाले मौजूदा युग में बाकी दुनिया से ज्यादा अमेरिका जानता है। यह और बात है कि विएतनाम युद्ध से मिले करारे सबक के बावजूद उसका दिल है कि इस सत्य को मानता नहीं।
 
इराक, अफगानिस्तान और सीरिया में भी उसे अपने सैन्य अभियानों से मुनाफा कम और घाटा ही ज्यादा हुआ है। बम बरसाने से शांति आ सकती होती तो ट्रंप के फरमान पर सीरिया में 2017 और 2018 में बम बरसाने से आ जाती। इराक पर रासायनिक हथियार रखने के आरोप में हमला किया गया था, हालांकि निशाने पर इराक के तेल भंडार थे। हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय जांच दल को इराक में कोई रासायनिक हथियार नहीं मिला था। ईरान पर इसलिए तकरार है, क्योंकि ईरान परमाणु बम बनाने का इरादा रखता है, मगर एक बड़ी वजह कहीं न कहीं तेल का कारोबार भी है। 
 
सवाल यह भी है कि किसी देश को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए क्या युद्ध ही एकमात्र समाधान है? क्या ईरान पर तरह-तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाने से अमेरिका या दुनिया को कोई लाभ हुआ है? अमेरिकी आक्रामकता के अनुचित सिलसिले को दुनिया देख रही है और समझ भी रही है। अफगानिस्तान पर 2001 में हमला हुआ, 2003 में इराक की बारी आई और अब अनेक पिपासु अमेरिकी चाहते हैं कि 2019 में ईरान पर चढ़ाई हो जाए। सवाल है कि क्या वार्ता और सुलह के सारे रास्ते बंद हो गए हैं? चूंकि असल मसला परमाणु बम का नहीं बल्कि तेल का है, लिहाजा अमेरिका अपनी चौधराहट वाले तेवर दिखा रहा है। लेकिन वह यह भूल रहा है कि अब दुनिया 2001 और 2003 जैसी नहीं है। 
 
ट्रंप अपनी सैन्य तैयारियों का चाहे जैसा वास्ता दें, लेकिन यह अहसास तो उन्हें निश्चित ही होगा कि ईरान से लड़ने की स्थिति में अमेरिका को 2001 या 2003 की तरह दुनिया का सहयोग नहीं मिलेगा। यही वजह है कि फौरी तौर उन्होंने तनाव बढ़ाने से बचने की कोशिश के तहत ईरान पर बम बरसाने का इरादा स्थगित कर दिया।
 
यूरोप और अमेरिका के सहयोगी देश भी नहीं चाहते कि युद्ध हो। अमेरिका का सबसे भरोसेमंद सहयोगी ब्रिटेन भी अपनी घरेलू दुश्वारियों और जरूरतों में उलझा हुआ है। रूस पूरी तरह ईरान के साथ खड़ा है और चीन भी अमेरिका के खिलाफ है। ऐसी सूरत में ईरान पर हमला करना अमेरिका के लिए आसान नहीं है।
 
यद्यपि यह झूठे सामंती अहंकारों का मध्य युग नहीं है, लेकिन अभी भी कई देश हैं जिनके शासक अपनी घरेलू राजनीति के चलते भी युद्ध की भाषा बोलते रहते हैं और युद्धोन्माद पैदा कर उसका राजनीतिक फायदा उठाते हैं। पाकिस्तान में तो चुनाव के मौके पर अक्सर ही ऐसा होता है। अभी पिछले दिनों भारत में भी आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले इसी तरह का माहौल बनाया गया था। 
 
अमेरिका में भी अगले वर्ष राष्ट्रपति का चुनाव होना है, जिसमें ट्रंप फिर मैदान में होंगे। पिछले सप्ताह फ्लोरिडा में वे अपने चुनाव अभियान की शुरुआत भी कर चुके हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि ट्रंप भी अपनी घरेलू राजनीति के तकाजों के तहत ईरान के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाए हुए हैं। वे चुनाव तक इसी तरह के तेवर दिखाते रहेंगे ताकि अमेरिकी जनता को पहले की तरह भरोसा दिला सकें कि ईरान जैसे देश से निबटने का माद्दा उन्हीं के पास है।
 
बहरहाल, इस पूरे तनाव की मूल वजह अगर वाकई परमाणु बम बनाने की ईरानी इच्छा है, जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है, तो अमेरिका और परमाणु संपन्न अन्य देशों को सोचना पड़ेगा कि किसी और देश को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। हमने बना लिया है, लेकिन आपको नहीं बनाने देंगे का कुतर्क या जिद मनमानी और पक्षपात को दर्शाता है।
 
यह विश्व बंधुत्व और समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। आज की सजग दुनिया में अमेरिका और अन्य ताकतों का रवैया तार्किक और न्यायसंगत होना चाहिए। हमारी धरा संयम और समझदारी की मांग कर रही है। दुनिया के लोग तो यही चाहेंगे कि युद्ध एक या कुछ दिन के लिए नहीं, बल्कि हमेशा के लिए टल जाए।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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