चीन में संविधान परिवर्तन के संभावित दुष्परिणाम

शरद सिंगी
कहते हैं कि इतिहास में की गईं गलतियों और उसके परिणामस्वरूप आए घातक परिणामों से हमें आगे सावधान रहने की सीख मिलती है इसीलिए इतिहास को पढ़ा जाना चाहिए ताकि उन गलतियों को दोहराने की भूल न हो। किंतु इतिहास से भी कोई सीख लेता है क्या भला? क्या कहीं कंस बनना बंद हो गए या कि जरासंध बनना? क्या रावण का अहंकार चूर होने के बाद दुनिया से अहंकार मिट गया? क्या हिटलर की मौत के बाद नए हिटलरों ने जन्म लेना बंद कर दिया?
 
मानव समाज का इतिहास सहस्रों वर्षों का है। लेकिन अब हमें समझ में आ चुका है कि मनुष्य अपनी किसी भी दुष्प्रवृत्ति को परास्त नहीं कर सकता अन्यथा यह पृथ्वी स्वर्ग से भी बेहतर होती। मनुष्य की हर अच्छी या बुरी प्रवृत्तियां चैतन्य हैं और अमर हैं। बुरी प्रवृत्तियां सत्ता, धन और शक्ति के साथ से और अधिक जागृत होती हैं और फिर उनका अंत भी वीभत्स होता है। आदमी सब जानता है किंतु विडंबना है कि फिर भी उसे लगता है कि उसके साथ वह नहीं होगा, जो पहले किसी रावण या कंस के साथ हुआ था।
 
दुनिया में अनेक तानाशाहों के उदय और उनके वीभत्स अंत का इतिहास हमने देखा और पढ़ा है। इस सप्ताह हम एक नए तानाशाह का उदय देख रहे है। चीन में इस समय नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (जो हमारी संसद का चीनी रबर स्टैम्प संस्करण है) का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिवेशन चल रहा है जिसमें माना जा रहा है कि वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आजीवन के लिए राष्ट्रपति घोषित कर दिया जाएगा। कम्युनिस्ट संविधान के अनुसार कोई भी राष्ट्रपति 2 अवधि से अधिक राष्ट्रपति नहीं बने रह सकता किंतु वर्तमान अधिवेशन में इस कानून को उखाड़ दिया जाएगा। शी जिनपिंग ने पहले ही सारे महत्वपूर्ण अधिकारों को अपने हाथों में केंद्रित कर लिया है। 
 
चीनी प्रधानमंत्री ली किकियांग ने अपने उद्घाटन उद्बोधन में बीजिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों को राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रधानता को 'दृढ़तापूर्वक स्वीकार' करने और उनके विचारों, शब्दों और नीतियों का अक्षरश: पालन करने के निर्देश दिए। वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को भी अपनी कथनी और करनी में शी जिनपिंग का अनुसरण करने के आदेश दे दिए गए हैं यानी शी जिनपिंग चीन के भाग्य विधाता होने का दर्जा प्राप्त करने के समीप हैं। 140 करोड़ जनसंख्या वाले देश की संसद यदि यह सोचती है कि उस देश को चलाने के लिए मात्र एक ही आदमी सक्षम है, तो समझ लीजिए कुछ सामान्य नहीं है।
 
माओ की मृत्यु के बाद बने राष्ट्रपति डेंग जियाओपिंग एक सुधारवादी नेता थे और उन्होंने व्यक्ति पर आधारित राजनीति पर अंकुश लगाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान में संशोधन कर किसी भी राष्ट्रपति को 2 से अधिक अवधि तक राष्ट्रपति बने रहने पर पाबंदी लगा दी थी। साथ ही, सामूहिक नेतृत्व पर जोर दिया गया था और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की व्यवस्था की गई थी जिसने तानाशाही की वापसी की संभावना को कम किया। किंतु चीन के इस समझदार नेता को कम्युनिस्ट पार्टी ने दरकिनार कर दिया है। चीन में डेंग की न तो कोई मूर्तियां लगाई गई हैं और न ही कोई तस्वीर। अब चल रहे अधिवेशन में प्रस्ताव पास होने के बाद शी जिनपिंग असीमित समय के लिए राष्ट्रपति बने रह सकते हैं।
 
सख्त सेंसर होने के बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी के इस कदम से चीन के सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। चीन में मीडिया पर नियंत्रण करने वाले विभाग ने कई शब्दों और वाक्यों के प्रकाशन पर पाबंदी लगा दी है। आलोचकों का मानना है कि चीन अब माओ और लेनिन के युग में लौट रहा है और जनता पूर्णत: असहाय है। इस निर्णय के परिणाम वैश्विक स्तर पर क्या होंगे? पश्चिमी संसार में, जहां लोकतंत्र मजबूत है, वहां शी जिनपिंग एक नायक से खलनायक बन जाएंगे।
 
सच तो यह है कि कुछ राष्ट्र जो उम्मीद कर रहे थे कि अमेरिका के विरुद्ध चीन एक ढाल का काम करेगा अथवा एक जिम्मेदार महाशक्ति की भूमिका निभाएगा, वे कम्युनिस्ट पार्टी के इस निर्णय से हताश हुए होंगे। आज का संसार माओवाद और लेनिनवाद में विश्वास नहीं रखता किंतु चीन का पुन: माओवाद और लेनिनवाद की ओर जाना विश्व के हितचिंतकों के लिए एक गहन चिंता का विषय बन गया है।
 
कोई भी राष्ट्र, राष्ट्र के साथ सहयोग और समझौता चाहता है न कि किसी व्यक्ति के साथ, क्योंकि तानाशाह की सत्ता बदलते ही सारे निर्णय उलट कर दिए जाते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का तर्क भले ही यह हो कि इस निर्णय से राजनीतिक स्थिरता आएगी और नीतियों में दृढ़ता, किंतु विश्व की राय इसके विपरीत है।

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