Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

‘महामारी’ पर तो क़ाबू पा लेंगे, कहीं ‘बीमारी’ बेक़ाबू नहीं हो जाए!

हमें फॉलो करें ‘महामारी’ पर तो क़ाबू पा लेंगे, कहीं ‘बीमारी’ बेक़ाबू नहीं हो जाए!
webdunia

श्रवण गर्ग

राजधानी दिल्ली के चर्चित शाहीनबाग़ और प्रसिद्ध सूफ़ी संत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के बीच ज़मीनी फ़ासला लगभग दस किलो मीटर का है जिसे बीस मिनट में तय किया जा सकता है। पर इस फ़ासले को पहले तो दरगाह वाले इलाक़े में स्थित आलमी मरकज़ बंगलेवाली मस्जिद में हुए तबलीगी जमात के धार्मिक जमावड़े ने हज़ारों किलोमीटर का कर दिया और फिर उस पर स्वच्छता में तीन बार ‘नम्बर वन’ आए इंदौर शहर के एक इलाक़े के कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने नुकीले काँच, पत्थर और कांटे बिछा दिए।

एक कट्टरपंथी मौलाना की ज़िद ने न सिर्फ़ अपने ही मज़हब की महिलाओं की सौ दिनों की लड़ाई को एक ही झटके में कोरोना से संक्रमित कर अनिश्चितकाल के लिए साम्प्रदायिक आयसोलेशन वार्ड में पटक दिया, देश के बीस करोड़ मुस्लिम नागरिकों के सिर भी शर्म से झुकवा दिए।

इसमें कोई दो मत नहीं कि जब भारत का प्रत्येक नागरिक एक बहुत ही नाज़ुक वक्त से गुजरते हुए सारी दुनिया के साथ ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है, ऐसी किसी भी ग़ैर-इंसानी हरकत के तमाम दोषियों के ख़िलाफ़ देश के क़ानून के मुताबिक़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

पर साथ ही इस ख़तरे के प्रति भी सावधानी बरती जानी ज़रूरी है कि जमातियों की तलाश में कहीं एक समूची क़ौम को ही कोरोना के भूकम्प का मुख्य केंद्र नहीं घोषित कर दिया जाए और उसे शाहीनबाग़ या उसके जैसी दूसरी सभी नागरिक अधिकारों की लड़ाइयों के साथ जोड़ दिया जाए।

ऐसी किसी कोशिश का परिणाम यह भी सकता है कि जो ‘अस्थाई’ ‘सोशल डिस्टन्सिंग’ दो व्यक्तियों के बीच एक ‘अज्ञात’ चिकित्सीय महामारी के चलते अमल में है वह आगे चलकर एक ‘ज्ञात’ साम्प्रदायिक बीमारी के कारण दो सम्प्रदायों के बीच ‘स्थायी’ ‘कम्यूनिटी डिस्टेंसिंग’ में बदल जाए। 'महामारी’ पर तो क़ाबू पा लेंगे, ’बीमारी’ बेक़ाबू हो जाएगी।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से आरोप लगाया गया है कि कोरोना संक्रमण के मरीज़ों में अचानक आई वृद्धि का कारण निज़ामुद्दीन में हुआ जमावड़ा है। निश्चित ही यह आरोप सही भी होगा। माना जाना चाहिए कि ऐसे तमाम लोगों की पहचान और उचित कार्रवाई के बाद कोरोना के प्रकरणों की तेज़ी थम जाएगी।

हम पहले से डरे हुए हैं कि ज्ञात-अज्ञात कारणों से देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। अतः कोई भी नहीं चाहेगा कि उसमें एक और कारण बे-ज़रूरत जुड़ जाए। ऐसी स्थिति में महामारी से लड़ाई में तैनात बंदूकों की नलियों के निशाने ग़लत दिशाओं में मुड़ सकते हैं। कोरोना पर जीत हासिल करना ज़रूरी है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उत्तर कोरिया में नहीं कोरोना, कितना सच है दावा?