जनता के आशीर्वाद से पद, प्रति‍ष्‍ठा और सत्‍ता मिलते ही नेताओं के दांत और नाखून क्‍यों निकल आते हैं?

नवीन रांगियाल
‘मौत के तांडव के बीच भी ओ… शासकों शर्म मगर तुम्‍हें आती क्‍यों नहीं’

वे घर-घर गली-गली में जाकर हाथ जोड़ते हैं, कभी धोक देते हैं। बेहद विनम्र और चेहरे पर सौम्‍य मुस्‍कान के साथ वि‍नती करते हैं। वादा करते हैं, वचन देते हैं। सड़क बनवा देंगे। नाली बनवा देंगे और गटर साफ करवा देंगे। बगीचा विकसि‍त करेंगे। साफ पानी आएगा। स्‍ट्रीट लाइट ठीक हो जाएगी। वगैरह, वगैरह।

ये चुनाव के पहले के दृश्‍य हैं जो शहर-शहर में हर गली में नजर आते हैं। झक सफेद कुर्ता-पजामा पहने इन नेताओं की ये तस्‍वीर अखबारों और टीवी चैनलों पर खूब दिखाई जाती हैं। लेकिन दरअसल, यह सब टाइमिंग का खेल है। पॉलिटि‍क्‍स होती ही टाइमिंग का गेम।

चुनाव जीतते ही, सत्‍ता हासिल करते ही और पद मिलते ही इन्‍हीं याचकों की तरह नजर आने वाले नेताओं के दांत और नाखून निकल आते हैं?

इनके चेहरे पर रसूख आ जाता है। कलप लगाया कुर्ता और ज्‍यादा कड़क हो जाता है। इतना ही नहीं, आंखों पर काला चश्‍मा लगा लिया जाता है, जिसमें से दिखता सबकुछ है, लेकिन आभास कराया जाता है हमें कुछ नजर नहीं आ रहा है।

कोरोना काल में इन नेताओं की पोल खोल दी है। लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, मौतें हो रही हैं, यह भयावह आंकड़ा  लगातार बढता जा रहा है, लेकिन नेता अपनी राजनीति‍क दाव खेलने में कोई चूक नहीं कर रहे हैं।

संतों ने अपने चातुर्मास स्‍थल छोड़कर दूर फॉर्म हाउस का रुख कर लिया है, डॉक्‍टरों ने अपने क्‍लि‍नि‍क या तो बंद कर दिए हैं या उनका समय बदल दिया है। उन्‍होंने अपील की है कि अभी सबसे ज्‍यादा सर्तकता की जरुरत है। व्‍यापारियों ने भी सावधानी बरतते हुए दुकानों का समय बदल दिया है।

अगर यह सर्तकता कोई नहीं बरत रहा है तो वो हैं परम आदरणीय नेतागण। इन्‍हें कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता जिए या मरे। हम तो अपनी रैली निकालेंगे। जुलूस सजाएंगे। मुहर्रम निकालेंगे। कलश यात्रा आयोजित करेंगे।
भाजपा के नेता हों या कांग्रेस के। सत्‍ता में बैठे हों या विपक्ष में। हम जनता से अपील करेंगे। वो कहीं न जाएं। घर से निकले और भीड़ न लगाएं। मास्‍क नहीं लगाने पर भी गरीब जनता का चालान कट जाएगा, लेकिन हजारों की भीड़ जमा करने वाले नेता का मजाल है कोई बाल भी बांका हो जाए।

कहां से लाते हो इतनी लापरवाही। जनता से गुहार लगाकर, उनके आशीर्वाद के सहारे और उनके चरण छूकर जो पद, प्रतिष्‍ठा और रसूख आपको मिलता है वो नेताजी बनते ही आखिर कहां काफूर हो जाता है। जिम्‍मेदारी के पद पर बैठते ही कहां से आ जाती है ये खतरनाक नादानी।

आम गरीब आदमी अपना बिजली का बि‍ल भरने कैसे जाए इसके लिए भी डरा और सहमा है। बच्‍चों के लिए दूध कैसे और कहां से खरीदे दस बार सोचता है। आप मंत्री पद पर बैठकर भी कलश यात्राएं निकाल रहे हो, मुहर्रम जुलूस निकाल रहे हो, हजारों की भीड़ सजाकर धार्मिक समारोह सजा रहे हो।

कमाल की राजनीति‍ है, कमाल का वोटबैंक तैयार किया जा रहा है। बस, याद रखि‍एगा जनता सब देख रही है। सब याद रखा जाएगा। कैसे आम आदमी को नि‍यम सि‍खाए गए और कैसे आपने अपने रसूख का फायदा उठाया। वो भी हद दर्जे तक। शर्मिंदगी की हद तक। सब याद रखा जाएगा। फि‍लहाल इतना ही कि जनता की मौत के तांडव के बीच भी ओ, शासकों शर्म मगर तुम्‍हें आती क्‍यों नहीं।

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