Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आतंकवाद के खात्मे के लिए मुफीद केवल 'मोदी शैली'

हमें फॉलो करें आतंकवाद के खात्मे के लिए मुफीद केवल 'मोदी शैली'
webdunia

शरद सिंगी

, रविवार, 12 मई 2019 (12:09 IST)
श्रीलंका के क्रूर और वहशी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन के एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने एक लेख में लिखा कि सामान्य तौर पर यह आम धारणा थी कि यदि जिहादियों और कट्टरपंथी युवकों को शिक्षित कर उन्हें नौकरी के अवसर दिए जाएं तो वे कट्टर पंथ के मार्ग से हटकर मुख्य धारा में शामिल हो सकते हैं।
 
किंतु नए अनुभव से यह सोच बेमानी हो चुकी है, क्योंकि श्रीलंका के आत्मघाती दस्ते में से कई शिक्षित और अच्छे घरों के युवक भी थे। पश्चिमी देशों में तो यह धारणा पहले ही ध्वस्त हो चुकी थी, जब न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर उड़ाने वाले आतंकी अच्छी तरह शिक्षित और प्रशिक्षित थे, यहां तक कि कुछ ने तो पश्चिमी देशों में भी अध्ययन किया हुआ था।
 
श्रीलंका के हमले में हुई तबाही के पश्चात एशिया में भी पल रही यह धारणा समाप्त हो चुकी है। हम पहले भी लिख चुके हैं कि युवा यदि अशिक्षा, शोषण अथवा बेरोजगारी की वजह से आतंकी बन जाते तो आज दुनियाभर में करोड़ों में आत्मघाती दस्ते घूम रहे होते। सीधा अर्थ है मर्ज कुछ और है और दुनिया को दिखाया कुछ और ही जा रहा है। अब स्पष्ट हो चुका है कि आतंकियों का गरीबी, बेरोजगारी व शोषण जैसी समस्याओं से सीधा कोई रिश्ता नहीं है।
 
मार्क्सवादियों और कम्युनिस्टों द्वारा जब चीन और रूस में खून की होली खेली गई थी तब भी इस लेखक के मत के अनुसार उसमें भी सर्वहारा वर्ग का इस्तेमाल ही किया गया था। सच कहें तो विचारधारा की आड़ में वह एक सत्ता की लड़ाई थी। जो नहीं माने, उसका कत्ल करो और अतिवादियों का वर्चस्व स्वीकार करो। सत्ता एक शोषक के हाथों से निकलकर दूसरे शोषक को स्थानांतरित हो गई थी। सर्वहारा वर्ग की स्थिति तो आज भी वैसी ही है, जैसे पहले थी।
 
आधुनिक युग में यही कहानी सीरिया में दोहराई गई। आतंकी संगठन इसिस द्वारा किया गया कत्लेआम किसी विचारधारा की लड़ाई नहीं थी। वह तो धन, स्वहित और सत्ता की लड़ाई थी। यदि विचारधारा तर्कसम्मत और धर्मसंगत होती तो सारे इस्लामिक देश उस संगठन के समर्थन में खड़े हो जाते। 'खलीफा' की विचारधारा जनता को बेचकर सत्ता को हथियाना मकसद था।
 
विचारधारा और धर्म के नाम पर युवकों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है। धर्म के नाम पर अतिवादियों का काम तो और भी आसान हो जाता है। फर्जी विचारधारा को धर्म से जोड़कर युवाओं के दिमाग में जहर भरा जाता है। पाकिस्तान में ऐसा दशकों से हो रहा है।
 
अब यह भी कोई रहस्य नहीं है कि वे कौन लोग हैं, जो इनके दिमागों में जहर भर रहे हैं? तकलीफ इस बात की है कि सरकारों से उन्हें प्रश्रय मिलता है। मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकी इन कारखानों को चलाते हैं, जो हजारों युवा जिंदगियों के साथ आग का खेल, खेल रहे हैं।
 
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत सरकार के प्रयासों से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकियों की सूची में डाला। किंतु आपको शायद यह पता न हो कि मसूद अजहर इस सूची में आने वाला पाकिस्तान का वह 146वां आतंकी था। वैश्विक आतंकियों की सूची में कुल 850 नाम हैं। अफगानिस्तान और इराक के बाद पाकिस्तान तीसरे नंबर पर है जिसके सबसे ज्यादा नागरिक इस आतंकियों की सूची में शामिल हैं।
 
प्रश्न यहां यह है कि इस सूची में एक नाम और जुड़ने से पाकिस्तान को क्या कोई फर्क पड़ता है? अपने आपको आतंक से त्रस्त देश बताकर दुनिया में सहानुभूति बटोरने की कोशिश करने वाले देश में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित दुर्दांत आतंकी मौज कर रहे हैं।
 
ऐसे देशों को कितनी बार भी बेपर्दा कर दो, उन्हें कोई शर्म नहीं आती। जब तक सरकारी सरपरस्ती का साया इन स्वयंभू मौलानाओं से नहीं उठेगा, जब तक ये देश भ्रमित विचारधारा को पोषित करते रहेंगे। जब तक आतंक के सरगनाओं को पनाह मिलती रहेगी तब तक ये आतंकी मानवता पर निरंतर प्रहार करते रहेंगे और मोदी जैसे नेता ही इनको इनकी 'भाषा' में 'जवाब' देते रहेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

'कौन बनेगा पीएम'- लोकसभा चुनाव 2019 में कितने दावेदार?