कूटनीति की शतरंज पर भारत की प्रभावी चालें

शरद सिंगी
आक्रामक कूटनीति किसे कहते हैं उसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें इस वर्ष 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण में सुनने को मिला। वर्तमान में पाकिस्तान के संदर्भ में भारतीय विदेश नीति अपने चरम पर है। पिछले दो वर्षों से विपक्ष सरकार को ताने दे रहा था कि पाकिस्तान के नापाक इरादों से लड़ने के लिए सरकार के पास स्पष्ट नीति तो छोड़िए कोई नीति है ही नहीं, किंतु यदि हम वर्तमान सरकार के गत दो वर्षों में सिलसिलेवार उठाए कदमों का विवेचन करें तो पाएंगे कि एक सुस्पष्ट किंतु गूढ़ योजना एवं मजबूत इरादे के साथ भारतीय कूटनीति पृष्ठभूमि में काम कर रही थी। 
कूटनीति की सफलता इसी बात में है कि दुश्मन को चाल के पीछे छिपे इरादों का पता नहीं लगना चाहिए। कूटनीति में शतरंज की तरह ही राजा के सारे मार्ग बंद करके अचानक शह दी जाती है और उसे बचाने के लिए तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। शह मिलने के बाद ही पुरानी चालों का रहस्य समझ में आता है। सच कहें तो लालकिले से पाकिस्तान के मंसूबों को शह दे दी गई। इस शह के पहले की रोचक चालों पर हम पुनः दृष्टिपात करते हैं।  
 
सर्वप्रथम भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका, रूस और जापान के राष्ट्राध्यक्षों के साथ व्यक्तिगत मित्रता बनाकर भारत के लिए उनका बिना शर्त समर्थन हासिल किया। तदुपरांत एक-एक करके पाकिस्तान के सभी मित्र देशों से अपने संबंध मज़बूत किए विशेषकर खाड़ी के देशों से जिनमें सऊदी अरब, यूएई और क़तर जैसे देश शामिल हैं और उन्हें पाकिस्तान से दूर किया। साथ-साथ ही पाकिस्तान को उसके पड़ोसी देशों के माध्यम से चारों ओर से घेरा। पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में ईरान, पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर में ताजीकिस्तान तथा पूर्व में भारत स्थित है। यानी चारों ओर से अब किसी मित्र देश की सीमा उससे नहीं लगती। अफगानिस्तान तो दुश्मन बन चुका है। ईरान से कोई मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं बचे हैं। ताजिक और पाकिस्तानियों में कभी बनी ही नहीं। दूसरी ओर ये तीनों देश अब भारत के मित्र बन चुके हैं।
 
मोदीजी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बिना नाम लिए आतंक और आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाले राष्ट्रों  की कड़ी आलोचना की और निरंतर पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया। अफ़्रीकी और लेटिन अमेरिकी देश जो अभी तक इस समस्या से अलग थे उनका भी समर्थन भारत ने प्राप्त कर लिया। 
 
इस तरह एक योजनाबद्ध तरीके से पाकिस्तान को तन्हा कर दिया गया। यद्यपि मोदीजी ने भरपूर कोशिश की पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को मित्रता के रास्ते पर लाने की। यह जानते हुए भी कि भारत के संदर्भ में सिविल सरकार कोई भी नीतिगत निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है और  पाकिस्तानी सेना ही भारत से संबंधित नीतियां निर्धारित करती हैं। भारत ने अपनी ओर से सिविल सरकार को पूरा मौका दिया ताकि कोई भी देश भारत पर उंगली नहीं उठा सके। इस तरह पाकिस्तान के लिए सारे रास्ते बंद होने के बाद अब भारत ने उसे शह दी। शह देने के लिए जो चाल चली उसको समझने के लिए थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा। 
 
क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान है। सन् 1947 के पार्टीशन में अंग्रेजों ने बलूचिस्तान, पाकिस्तान को नहीं दिया था, क्योंकि बलूचिस्तान चार रियासतों समूह था और उन्होंने स्वतंत्र रहने की घोषणा कर दी थी। आरंभ में मोहम्मद अली जिन्ना ने इन रियासतों के शेखों के साथ रियासतों को विशिष्ट दर्जा देने का समझौता भी किया था, किंतु बाद में जिन्ना पलट गए और सेना भेजकर संपूर्ण बलूचिस्तान को हड़प कर लिया। भारत ने भी कई रियासतों को बलपूर्वक भारतीय  प्रभुसत्ता का हिस्सा बनाया था, किंतु पाकिस्तान और भारत की कार्रवाइयों में बहुत बड़ा फर्क था। भारत ने जितनी रियासतों को बलपूर्वक हासिल किया वहां की जनता भारत के साथ रहना चाहती थी केवल राजा अपने स्वयं के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रतिरोध कर रहे थे। दूसरी ओर बलूचिस्तान की जनता और राजा दोनों या तो भारत के साथ आना चाहते थे या फिर स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसलिए आज तक सेना तथा प्रशासन को बलूचिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाए रखने के लिए दमन और अत्याचार का सहारा लेना पड़ रहा है।     
 
मोदीजी ने अपने भाषण में अप्रत्यक्ष रूप से बलूचिस्तान के लोगों को नैतिक समर्थन देने की घोषणा की। यही पाकिस्तान को शह देने की ऐसी चाल थी जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। अब पाकिस्तान को कोई गली नहीं दिख रही जहां से वह निकल सके। पाकिस्तान वर्षों से कश्मीरियों को नैतिक एवं राजनीतिक समर्थन की बात करता रहा है और भारत को विश्वमंच पर चुनौती देता रहा है। भारत उसकी करतूतों को वर्षों से सहन करता रहा है किंतु जैसे ही भारतीय प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान और पाकिस्तानी कब्जे वाले गिलगिट क्षेत्र की बात की तो कूटनीति का पूरा मंज़र ही बदल गया।  बलूचिस्तान में वर्षों से अत्याचार से पीड़ित लोगों को नई ऊर्जा मिल गई। अब तो सिंध में बसे मुजाहिरों (पार्टीशन में भारत से जाकर सिंध में बसे भारतीय नागरिक) को नई आवाज़ मिल गई। पाकिस्तानी सेना, जो अपनी करतूतों से पहले ही सीमाओं पर कमजोर पड़ चुकी है, घर में फैले इस विद्रोह को दबाने के लिए अब न तो उसके पास समय है और नही संसाधन। 
 
पाकिस्तान अपनी नीतियों से आत्मविनाशकारी ढलान पर तेजी से लुढ़क रहा है। सेना और सिविल सरकार द्वारा विपरीत दिशा में प्रयास किए जाने से उनके परिणाम निष्फल हो जाते हैं। आतंकवादियों की दिशा तीसरी है, अतः उन्हें बिना प्रतिरोध आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे हैं। भारत की शह से पाकिस्तान के पास अब निकलने के दो ही रास्ते बचे हैं या तो शांति का मार्ग अपनाकर विश्व से सहयोग करे या फिर दुबारा टूटने के लिए तैयार रहे। दोनों ही दशा में मात तो उसकी हो ही चुकी है।
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