बहुत सशक्त करता है प्रधानमंत्री को जनता का यह विशाल जनादेश

शरद सिंगी
भारत में प्रजातंत्र का महाकुंभ एक महाविजय के साथ समाप्त हुआ। चुनावों से पहले हमने मोदी सरकार की पिछले 5 वर्षों की विदेश और रक्षा नीतियों का विश्लेषण और उनके द्वारा अर्जित उपलब्धियों का आकलन किया था। जाहिर है, उन उपलब्धियों पर जनता का आशीर्वाद मिलना ही था।
 
एक पदासीन प्रधानमंत्री पर जिस विशाल बहुमत से जनता ने पुन: विश्वास किया है, उस बहुमत का दबाव केवल मोदीजी समझ सकते हैं। पद बचाने की चुनौती से अधिक अब उनके सामने जनता के इस विश्वास पर खरे उतरने की चुनौती अधिक होगी।
 
इस जीत से देश के अंदर क्या प्रभाव होंगे? उनके बारे में तो अधिकांश मतदाता समझते भी हैं और अपनी राय भी रखते हैं। इसलिए इस आलेख में उस पर चर्चा न करते हुए हम बात करेंगे कि हमारे देश के बाहर किंतु भौगोलिक क्षेत्र दक्षिण एशिया के भीतर इस जीत का क्या प्रभाव होगा?
 
फिर अगले सप्ताह चर्चा करेंगे विश्व में होने वाले प्रभावों की। पिछले कुछ दशकों में (दुर्भाग्य से) भारत की राजनीति गठबंधन के दौर से गुजरी, जहां प्रधानमंत्री के सामने कठोर निर्णयों को न ले पाने की अनेक मजबूरियां थीं और ये मजबूरियां अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी साफ झलकती थीं।
 
चूंकि आज हम बात कर रहे हैं केवल अपने पड़ोसी देशों की तो आरंभ करते हैं पाकिस्तान से। भारत के इन चुनावों पर यदि सबसे अधिक किसी अन्य देश की नजरें थीं तो वह पाकिस्तान की ही थीं। पाकिस्तान के राजनीतिक आका और सेना बिलकुल नहीं चाहती थी कि मोदी पुन: सत्ता पर काबिज हों, क्योंकि कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों और पाकिस्तानपरस्त उग्रवादियों की सफाई मोदी जिस कड़ाई से कर रहे हैं, वह उनके राजनीतिक हितों को चोट पहुंचाती हैं और पाकिस्तानी सेना को चुनौती देती है।
 
इस बहुमत के साथ भारत की जनता ने पाकिस्तान को संदेश दिया है कि भारत का प्रधानमंत्री एक सशक्त प्रधानमंत्री है, जो अपनी शर्तों पर काम करेगा और भारत की जनता अपने प्रधानमंत्री के पीछे पूरे समर्थन के साथ खड़ी है। इस तरह जनता के प्रत्येक वोट ने पाकिस्तान की दूषित मंशा पर सीधे आघात किया है।
 
अब यदि उत्तर में चलें तो नेपाल है, जहां का प्रजातंत्र निरंतर तलवार की धार पर चलता दिखाई देता है। वहां कई बार चीन के हस्तक्षेप से ऐसी स्थिति बनी कि नेपाल, भारत के हाथों से खिसकता दिखाई दिया। इसलिए नेपाल के संदर्भ में जरूरी हो जाता है कि भारत का प्रधानमंत्री इतना सशक्त हो, जो किसी भी अप्रिय स्थिति में तुरंत निर्णय लेने की स्थिति में हो।
 
भारत की जनता का विशाल जनादेश प्रधानमंत्री को यह अधिकार देता है। पूर्व में बांग्लादेश में भी कहने को तो प्रजातंत्र है किंतु वास्तविकता में वहां एक अधिनायकवादी सरकार है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ भारतीय प्रधानमंत्री का मित्रवत व्यवहार तो है ही किंतु बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या को सुलझाने के लिए भारत को कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ सकते हैं जिसके लिए भारतीय प्रधानमंत्री को कोई हिचक नहीं होगी, क्योंकि जनता का विश्वास उनके साथ है। चीन के साथ सीमा विवाद को हल करना एक टेढ़ी खीर है, क्योंकि वहां हमारे सामने वाला पक्ष सभी रूप से सक्षम है।
 
इस जनादेश के कारण भारत के पक्ष में दो बातें जाती हैं- एक तो पूर्वोत्तर राज्यों की जनता ने जिस तरह मोदीजी पर भरोसा जताया है उसका सीधा अर्थ है कि वहां की जनता ने चीन को भी स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के साथ अडिग रूप से खड़े हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों पर चीन की कुटिल निगाहें हैं।
 
दूसरी बात जो भारत के पक्ष में जाती है, वह यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री, जनता के द्वारा बहुमत से निर्वाचित हैं वहीं चीनी राष्ट्रपति कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चयनित हैं। भले ही वे आजीवन काल के लिए चयनित हों। किंतु जो आत्मविश्वास जनता द्वारा निर्वाचन से मिलता है, वह किसी दल के अध्यक्ष बन जाने से नहीं मिलता। यह बात और है कि चीन में एक-दल प्रणाली होने से दल का अध्यक्ष, चीन का राष्ट्रपति बन जाता है।
 
उधर पूर्व का एक पड़ोसी म्यांमार भी है जिसके साथ भी भारत को रोहिंग्या समस्या से निपटना है। अब हम अपने दक्षिण की बात करें तो श्रीलंका और मालदीव दोनों ही देश ऐसे हैं, जहां के प्रजातंत्र कभी-कभी बहक जाते हैं। पटरी से उतर जाते हैं। इन देशों पर भी चीन की नजरें लगातार लगी रहती है स्थिति का लाभ लेने के लिए ताकि भारत को दक्षिण की ओर से घेरा जा सके।
 
ऐसे में भारत को अपने हित साधने के लिए कभी कुछ निर्णय ऐसे भी लेने पड़ सकते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों में उचित न लगें। ऐसे में यदि हमारे देश का नेता कमजोर हो तो अंतरराष्ट्रीय दबाव झेल नहीं सकेगा। और तो और, हमारे देश के 'तथाकथित बुद्धिजीवी' भी उसे चैन नहीं लेने देंगे।
 
अत: स्पष्ट है कि जनता द्वारा दिया गया यह विशाल जनादेश प्रधानमंत्री और सरकार को न केवल अपने देश के लिए मजबूत करता है, वरन दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देशों को भी एक स्पष्ट संकेत देता है कि भारत का प्रजातंत्र एक मजबूत प्रजातंत्र है और उसकी सरकार सशक्त है।
 
आसपास के सभी कमजोर प्रजातंत्र वाले देशों के बीच भारत एक अडिग और सबल जनतंत्र के रूप में खड़ा है और उसकी इसी महक को फैलाने के लिए भारतीय नागरिकों को शतश: नमन।

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