Nilotpal Mrinal: पढ़िए लेखक नीलोत्पल मृणाल के चुनाव, राजनीति, लेखन-प्रकाशन पर विचार

फिल्मों, जाति व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली और भाषा जैसे विषयों पर बोले नीलोत्पल

WD Feature Desk
गुरुवार, 25 जनवरी 2024 (12:10 IST)
Nilotpal Mrinal: नीलोत्पल मृणाल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत लेखक है। आपकी लिखी किताबें बेस्ट सैलर की  श्रेणी में आती हैं और कविता मंचों पर आपकी उपस्थिति बहुत सराही जाती है।  Webdunia के साथ नीलोत्पल ने अपनी अनूठी शैली में कई मुद्दों पर बात की। प्रस्तुत हैं बात-चीत के अंश। ये पूरा पॉडकास्ट आप वेबदुनिया के Youtube चैनल पर भी देख सकते हैं ।

Nilotpal Mrinal: नीलोत्पल मृणाल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत लेखक है। आपकी लिखी किताबें बेस्ट सैलर की  श्रेणी में आती हैं और कविता मंचों पर आपकी उपस्थिति बहुत सराही जाती है।  Webdunia के साथ नीलोत्पल ने अपनी अनूठी शैली में कई मुद्दों पर बात की। प्रस्तुत हैं बात-चीत के अंश। ये पूरा पॉडकास्ट आप वेबदुनिया के Youtube चैनल पर भी देख सकते हैं ।

प्र. आपके लेखक होने में मुखर्जी नगर की मिट्टी का योगदान है या गाँव की पृष्ठभूमि ने आपको तैयार किया?
दोनों हैं। गाँव की मिटटी को ही मुखर्जी नगर ने बाद में अबीर बनाया। लेखन किसी एक पृष्ठभूमि के अनुभव का परिणाम नहीं होता, उसमें आपके जीवन का पूरा अखाड़ा शामिल होता है।

प्र. आपने बताया है कि आपने ‘डार्क हॉर्स’ 9 दिनों में पूरी कर ली थी। हांलाकि ‘डार्क हॉर्स’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है पर क्या आपको नहीं लगता कि किसी भी साहित्यिक कृति के लिए यह जल्दबाजी है?
देखिए किसी भी कृति को लिखने के बाद इस बात के लिए आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। साहित्य कोई साइंस नहीं है जिसमे आप फ़ॉर्मूला के आधार पर कुछ लिख सकें। ‘डार्क हॉर्स’ ने किताबों की बिक्री का इक इतिहास बनाया है। मुझे लगता है मेरे जैसे साधारण आदमी के हाथ से ये बड़ा काम हो गया।

‘डार्क हॉर्स’ की बिक्री देख कर कई युवा जो लेखक बनना चाहते हैं उन्हें एक आश्वासन मिलता है। तो मैं अब उस किताब के सामने जाकर कोई भी शिकायत नहीं कर सकता। ‘डार्क हॉर्स’ आज के समय में एक कल्ट है। और लेखन में हड़बड़ी को दिन से नहीं मापा जा सकता। दस वर्ष का समय लगाकर भी एक कमज़ोर किताब लिखी जा सकती है और कुछ लोग कम समय में भी एक बढ़िया किताब लिख सकते हैं। तो विचार पकने में कितना वक़्त लगता है ये आप पर निर्भर करता है।

प्र आपका उपन्यास ‘डार्क हॉर्स’ हाल ही में उ।प्र. के मुख्यमंत्री योगी जी ने पढ़ा। क्या प्रतिक्रिया मिली आपको उनकी तरफ से?
ये बहुत से लोगों के लिए आश्चर्य का विषय होगा। किसी भी राजनेता की व्यस्तता कितनी रहती है कोई भी समझ सकता है। ऐसे में उ।प्र जैसे राज्य के मुखिया यदि हिंदी की किताब को पढ़ने के लिए समय निकाल रहे हैं तो ये हिंदी की पठनीयता के लिए एक सुखद सन्देश है।
जब मेरी मुलाक़ात उनसे हुई तो मुझे देखते ही उन्होंने मेरा नहीं बल्कि ‘डार्क हॉर्स’ का नाम लया। अगले आधे घंटे तक उन्होंने मुझसे किताब, उसके चरित्रों और भाषा पर बात की। ये हिंदी भाषा के लिए प्रोत्साहन की बात है। इससे हमारी पीढ़ी के लिखने वालों को निश्चित रूप से प्रोत्साहन मिलता है।
 


प्र. आप खुद को सोशल पॉलिटिकल एक्टिविस्ट कहते हैं, राजनीती की भी आप अच्छी समझ रखते हैं। क्या आने वाले समय में हम नीलोत्पल को सक्रिय राजनीति में देखेंगे?
चुनावी राजनीति और सक्रिय राजनीति अलग-अलग चीज़ें हैं। राजनीति पर बात करना भी सक्रिय राजनीति है। राजनीति के लिए कोई अलग से कोर्से या फॉर्म नहीं डालना है। मेरे पास कलम है। मंच है। मैं हर दल के लोगों से मिलता हूँ। सभी से बातचीत भी करता हूँ। सबकी आलोचना भी कर देता हूँ। हम चुनावी राजनीति से दूर रहकर राजनीति पर बात कर सकते हैं और राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
लेखक होने के नाते मेरी प्राथमिकता लिखना है। इस देश में चुनाव के लिए कई लोग लेखक से पहले कतार में हैं। क्रिकेटर हैं। अभिनेता हैं। लेखक विचार की राजनीति में आगे खड़ा है।

प्र. प्रतियोगी परीक्षाओं को पीछे छोड़ आज आपने अपना मुकाम हासिल कर लिया? पर क्या कभी आपको निराशा या अवसाद का सामना भी करना पड़ा?
नहीं मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। मैंने अटेम्ट देते हुए ही तय कर लिया था कि करियर को एक नई दिशा देनी है।

प्र. 12th फेल एक किताब आई थी। अभी उसी किताब पर इसी नाम से एक फिल्म बनी है। क्या आपको नहीं लगता ये भी मुखर्जी नगर की कहानी है और बड़े युवा वर्ग को प्रेरित करती है?
निश्चितरूप से 12th फेल एक अच्छी किताब है जिसे मेरे सीनियर अनुराग पाठक सर ने लिखा है। ये IPS मनोज शर्मा सर और श्रध्दा मैम की वास्विक कहानी है। उन्हें मैं जनता हूँ। निश्चितरूप से एक बढ़िया किताब पर बढ़िया फिल्म बनी है। बहुत दिनों बाद एक ऐसी फिल्म आई है जिसे हर युवा को देखना चाहिए।


प्र. ओघड़ में आपने देश की जाति व्यवस्था पर बहुत खुल कर बात की? आप इतने युवाओं से मिलते हैं। बात करते हैं क्या देश का युवा जाति व्यवस्था से बाहर निकल क्र बात करना चाहता है?
युवा बात ही करना चाहते हैं लेकिन जाति से निकलना नहीं चाहते।  

प्र. भाषा की अगर बात करें तो कई लोग हिंदी में अंग्रेजी के प्रयोग पर एतराज़ दिखाते हैं। वही हिन्दी में उर्दू शब्दों के इस्तेमाल से भी परहेज़ की बात करते हैं। आप क्या सोचते हैं इस बाते में?
एक व्यक्ति बताइए ऐसा जो ये कर पा रहा हो। हिंदी का आज का स्वरुप उर्दू-फारसी के बिना संभव नहीं। अंग्रेजी आज की ज़रुरत है। जिस भाषा में रोज़गार मिले वो बहुत ज़रूरी है। हिंदी में रोज़गार नहीं है।

प्र. आज जो युवा हिंदी लेखन में अपना करियर बनाना चाहते हैं उन्हें क्या सलाह देना चाहते हैं? खासतौर पर मार्केटिंग के लिए?
मार्केटिंग कुछ नहीं है। किताब जिसमें कंटेंट नहीं वो मार्केटिंग के दम पर नहीं चलती।

प्र. देखने में आया है कि स्थापित प्रकाशक सिर्फ़ बड़े लेखकों को मौका देते हैं। नया लेखक भले वो अच्छा लिखता है लेकिन बड़े प्रकाशक उसकी किताब नहीं छापते?
आज लेखक को प्रकाशक की ज़रुरत ही नहीं है। अच्छा लेखन किसी भी प्रकाशन से आए चलेगा। बड़े प्रकाशक से आने पर भी बुरी किताब नहीं चलती।


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